क्या जीत लिखूं क्या हार !
क्या जीत लिखूं क्या हार !
जीवन और जीवन साथी की आवश्यकता के अनुसार अब इन हालात में पांडिचेरी में रह रही कुमकुम और दिल्ली में रह रहे जीवन के चौथेपन को बिता रहे के.के. को एक जगह साथ साथ रहना चाहिए था। लेकिन हालात कुछ ऐसे बनते जा रहे कि वे फिर से एक नाव पर ज्यादा देर तक सवार नहीं रहना चाहते।उन दोनों को अपना अपना स्पेस चाहिए था। अक्सर ऐसा होता है अगर आप संस्कार और परम्परा से बंधे नहीं होते तो जीवन आवारापन की ओर बढ़ चलता है। व्यक्ति सोचता है कि वह जीवन को छल रहा है और जीवन..? जीवन उस व्यक्ति को छलता है। युगों पहले संभवतः जब मनुष्य जाति विघटित थी, किसी डोर में नहीं बंधी थी, पशु पंछियों के समान जंगल पहाड़ पर विचरण कर रही थी तब आदिदेव शंकर ने विवाह परम्परा का चलन इसीलिए किया कि सभ्य मानव परिवार और समाज का गठन हो सके, यौन क्रियाओं का अनुशासन बन सके, मनुष्य का परिवार बनता चले और आदर्श समाज की स्थापना हो सके। मनुष्य इन्हीं मायनों में विशिष्ट होता चला गया और आज अपनी उच्चतम अवस्था तक पहुंच चुका है। लेकिन प्रकृति या परमात्मा यह नहीं सोच सकते थे कि विकसित अवस्था में पहुंच चुकी मानव प्रजाति अपनी यौनिक स्वतंत्रता की आकांक्षा के वशीभूत होकर घर, परिवार, समाज और विवाह संस्था के बन्धन को ठुकरा कर एक नये समाज का भी निर्माण कर सकता है। अन्तर्जातीय,अन्तरदेशीय, अन्तरवर्णीय जोड़ो का चलन शुरु होगा। उससे भी ऊबे तो लिविंग का चलन शुरु होगा। ऐसे में अगर कोई मानव समाज का इतिहास लिख रहा होगा तो वह क्या लिख रहा होगा? क्या वह प्रकृति को जीतने वाले या जीतने के लिए अग्रसर मानव की जीत का इतिहास लिखेगा या परम्परा, मूल्य, नैतिकता, अनुशासन की नई परिभाषा गढ़ रहे मानव समाज की हार का इतिहास लिखेगा? इस उधेड़बुन में के.के. पड़े थे कि डा. अग्रवाल का फोन आ गया।"हेलो, मैं डा.अग्रवाल बोल रहा हूं।" "जी, डाक्टर साहब,नमस्कार।" के.के.बोल उठे।" डियर के.के., आप क्या कुछ समय निकाल कर आज शाम मेरे घर चाय पीने आ सकेंगे?' "जी,अवश्य। लेकिन कुछ ख़ास बात है क्या?"के.के.कु छ असहज होकर बोल पड़े।" असल में कल शाम या परसों तक आपकी वाइफ़ मैडम कुमकुम हास्पिटल से डिस्चार्ज हो जाएंगी और उसके बाद उनकी विशेष देखभाल की ज़रूरत होगी। उसी के बारे में आपसे विमर्श करना है।" डा.अग्रवाल ने अपनी बात पूरी की।" ओ.के. डाक्टर साहब। आइ विल बी देयर ।" के.के.फोन रख चुके थे।
शाम होते ही के.के.ने ड्राइवर से डा.अग्रवाल के घर चलने को कहा। उनके समझ में नहीं आ रहा था कि डा.अग्रवाल क्या प्रस्ताव रखने वाले हैं?...और यह भी कि वे महज़ एक सज्जन परिचित होने के नाते कुमकुम के आगे के स्वस्थ जीवन के लिए इतना ख़याल रख रहे हैं या कुछ और भी बात है! डा.अग्रवाल अपने ड्राइंग रुम में बैठे मिले। उन्होंने तपाक से के.के. का उठकर स्वागत किया। उनके पास उनके एक पुराने मित्र प्रोफ़ेसर राधे रमण शर्मा अपना रोचक संस्मरण सुना रहे थे। के.के. को न चाहते हुए भी उस मित्र की बकबक को सुनना ही पड़ा... " कल मुझे बनारस में एक विशेष अनुभव हुआ, जो मैं आप लोगों से साझा कर रहा हूँ। मैं सिक्कड़ बाबा का दर्शन करने शूल टंकेश्वर मंदिर गया था। थोड़ी देर बाद वहां एक आदमी आया जो मुझे 35 से 40 वर्ष का लग रहा था। उसने एक हाफ पैंट और ऊपर एक लाल रंग की टी -शर्ट पहन रखी थी । बाबा ने मुझे बताया कि ये नंदनगर, करोंदी से साइकिल से मुझसे मिलने आये हैं । ये एक बहुत आश्चर्य की बात थी क्योंकि शूल टंकेश्वर मंदिर बी.एच.यू. के मुख्य द्वार से 11किलोमीटर दूर है । सिक्क्ड़ बाबा ने उससे मेरा परिचय ये कह कर कराया के ये भी एक टीचर हैं और बच्चोंं को म्यूजिक सिखाते हैं। देखने में वे बेहद साधारण, मामूली कपड़े पहने ......लेकिन व्यक्तित्व में कुछ अलग से नजर आये । मैंने सोचा ये कोई ऐरा- गैरा इंसान होगा। मैंने उससे कहा कि मेरे कोचिंग में यदि म्यूजिक का कोई छात्र आएगा तो मैं उसे आपको दे दूँगा। उसने मुझे धन्यवाद बोला। उसने मेरे बारे में पूछा और बोला कि मैंने आपको कही देखा हैं। आपने कहाँ से पढ़ाई की हैं? मैंने कहा कि मैंने बी.एच.यू. से केमिस्ट्री में एम.एस.सी. किया है। उसने पूछा कि क्या आप प्रोफेसर मिश्रा को जानते हैं तो मैंने कहा" जी हाँ, उन्होंने मुझे एम.एस.सी.मेें न्यूक्लियर एनर्जी पढाई है। अब उस व्यक्ति ने कहा कि प्रोफेसर मिश्र ने उसके पापा के गाइडेंस में पी.एच.डी. की थी। मैंने पूछा आपके पिता जी का परिचय ? .....तो उसने बोला कि मेरे पिताजी वहीं पर प्रोफेसर रहे और उनका नाम पी..एन. शुक्ला है। मैंने कहा कौन पी. एन शुक्ला ? जो कई यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर भी रहे ? वो बोला," जी हाँ।" तब मैं चौक गया। मैंने बोला कि आपकी माताजी श्रीमती शुक्ला भी तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थी, गायकानालजी में ...और , और आपकी माता जी ने इंग्लैंड से पी.एच.डी. किया था ,..वे ही ? " उसने कहा" जी हाँ । उसके बाद मैंने उसकी शिक्षा के बारे में पूछा कि क्या आपने बी.एच.यू. से म्यूजिक सीखा है? तो उसने बोला नहीं मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमएससी किया है तो मैंने चौंकते हुए कहा - " क्या ?.... तो फिर फिजिक्स में आगे पढ़ाई क्यों नहीं की ? " वो हँस के बोला कि भाई ऐसा नहीं है। मैंने अमेरिका से पी.एच.डी. किया और अमेरिका में मैंने कई साल फिजिक्स पढ़ाई भी । फिर मैं साधु बन गया और इंडियन क्लासिकल म्यूजिक व् फोक सांग गाने लगा । मैंने उससे उसके बारे में और जानना चाहा तो वो फिर हँस कर बोला कि आप विकिपीडिया में शर्मा आर.आर. टाइप कर के पढ़ लेना. फिर वो मेरे बेटे से बात करने लगा और बोला कि मेरे बेटे से बात करना उसे बहुत अच्छा लग रहा हैं। उसने कहा कि आप बेटा बहुत निश्छल हैं और बहुत तेजस्वी हैं. मैंने कहा कि ये तो पब्जी खेल कर बर्बाद हो गए हैं। वो जोर से हँसा बोला इन्हें आप फ्री छोड़ दे। घर आकर विकिपीडिया में जब उसके बारे में पढ़ा, तो अंदर से हिल गया। सचमुच वे यू.के. में आठ विषयों में गोल्ड मेडलिस्ट थे । संत स्टीफेन कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी के भी वे गोल्ड मेडलिस्ट थे । अमेरिका में उन्हें उनकी यूनिवर्सिटी ने बेस्ट टीचर का अवार्ड भी दिया हैं उसे..... उसे फिजिक्स और म्यूजिक के क्षेत्र में कई इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुके थे । उसके बाद भी वो इतने साधारण ढंग से मिला। .......... ऐसा आदमी साइकिल से जाकर सिक्क्ड़ बाबा के यहाँ बर्तन धो रहा था।....."शाम अब रात में बदल चुकी थी। के.के.हांलांकि इस बातचीत का आनन्द उठा रहे थे लेकिन अब उनकी इवनिंग ड्रिंक काभी समय हो रहा था। उठने को हुए कि डा.अग्रवाल उनकी ओर मुखातिब हो कर बोल उठे ;" डियर के.के., मैं नहीं जानता कि आप और मिसेज कुमकुम के बीच के रिलेशनशिप की क्या और कैसी गुणवत्ता है । लेकिन जीवन के इस उत्तरार्द्ध में आप दोनों को एक दूसरे के केयर की ज़रूरत है। ....खासतौर से अब कुमकुम अकेले रहने लायक नहीं हैं। अगर आगे फिर दूसरा अटैक होता है तो फिर यह उनके जीवन के लिए यह बेहद ख़तरनाक होगा। ""तो ! ...तो आप मुझसे क्या उम्मीद करते हैं ? .....क्या ..क्या मैं सारा घर बार छोड़कर यहाँ ...दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर आकर मैडम की नर्सिंग करूँ ?" के.के.उत्तेजित थे। शायद उनको यह आभास नहीं था कि डा.अग्रवाल ऐसा कुछ कहेंगे।
"ओ.के.डियर ! मैंने खामखाह यह विश्वास मन में पाल लिया था कि आपलोगों का अब एक ही स्पेस है एक ही टार्गेट है !..ओ.के., फिर आप और वे मिलकर फालो अप के बारे में आपस में तय कर लें। नाऊ आई एम फ्री फ्राम आल दि बर्डन ..!"
बिना कुछ बोले के.के. ड्राइंग रूम से बाहर आ गए थे। उनके मन में उथल पुथल तेज़ हो गई थी। घर आकर उन्होंने ड्रिंक लेना शुरू किया और टी.वी. फुल वाल्यूम पर चला दिया था।
"ख़बरदार !"
"आओ "....
" जो किसी ने मेरी पत्नी की तरफ हाथ भी उठाया फिर ..."
"ही.. ही ...ही ..तेरा ही इंतज़ार था। बहुत याराना लगता है क्यों....ही.. ही ..ही ..मैं हाथ नहीं मुंह लगाऊँगा .....कुत्तों की तरह भाैं- भाैं कर के चाटूंगा ..."
" गब्बर "......
"उसके बाद ..उसके बाद तेरी हड्डी को चबा - चबा कर खाऊंगा ...सुना तूने मैंने क्या कहा ? "
"गब्बर सिंह ..... जैसे आये हो अपने साथियों के साथ वैसे ही वापस चले जाओ वरना कोई भी अपनी टांगों से वापस नहीं जा पायेगा। एक एक की टांगे तोड़ दूंगा मैं !"
"ही.. ही... ही... ही.., पैर तोड़ेगा ...अरे सुना तुम लोगों ने पैर तोड़ेगा ..ही ..ही.. ही ..ही..ईंट का जवाब पत्थर से .....ईंट का जवाब पत्थर से ...."
अचानक बिजली चली गई और टी.वी.बंद हो गया। कमरे में फ़ैल चुके घुप्प अँधेरे से नशे में डुबकी लगा रहे के.के. को कोई फर्क नहीं पड़ा । नशा चढ़ने के साथ - साथ उनको डा. अग्रवाल का सुझाव बार - बार याद आ रहा था...
"ओ.के.डियर ! मैंने खामखाह यह विश्वास मन में पाल लिया था कि आपलोगों का अब एक ही स्पेस है, एक ही टार्गेट है !..ओ.के.,फिर आप और वे मिलकर फालो अप के बारे में आपस में तय कर लें। नाऊ आई एम फ्री फ्राम आल दि बर्डन..."
हिचकी लेते हुए के.के.बोल उठा ;
"साला , ........बड़ा याराना लगता है स्साला ! "
