कुमुद (भाग ०१)
कुमुद (भाग ०१)
जिन्दगी के संजीदा लम्हों का ताना बाना रिश्तों के लिबास को खूबसूरती तो देता है, लेकिन रिश्तों की गर्माहट की उम्र कितनी है,ये हमारा लहज़ा और जीने का अंदाज़ बताता है। हम जब जब अपने नर्म लहज़े में अपनी मासूमियत और इंसानियत को शामिल कर किसी की परवाह करते हैं,तब तब रिश्तों की डोर को मजबूती मिलती है और रिश्तों की ये मजबूती हमारी जिन्दगी को ना केवल खुशनुमा करती है बल्कि आसान भी बनाती है।
कुमुद की इस तरह मन छू लेने वाली बातें राजीव को प्रभावित कर रहीं थीं, हालांकि मन के अधिकांश हिस्से पर अब कुमुद का अधिकार हो चुका था ।कुमुद याने कुमुदनी जिससे राजीव की शादी तय हुई थी। दस दिन बाद दोनों की शादी है और आज घर वालों को बिना बताए राजीव और कुमुद एक दूसरे से मिलने दिल्ली के पालिका बाजार पहुंचे थे ।
बहुत ही खूबसूरत होते हैं ये पल जिन्हें नवयुगल अपनी यादों में बसा लेना चाहता था ।राजीव की आंखों में जैसे चमक आ गई थी।उसने अपने बैग से एक खूब सूरत सोने की अंगूठी कुमुद को भेंट करते हुए कहा ,"ये तुम्हारे लिए, आज की मुलाक़ात का एक छोटा सा गिफ्ट"।
कुमुद ने अपना हाथ राजीव की तरफ बढ़ाया ।राजीव ने जैसे ही अंगूठी नर्म उंगली में पहनाई ,एक अनायास, मीठी,अनजानी सी छुअन से दोनों के शरीर में बिजली सी दौड़ गई। शायद ,पहली छुअन का अहसास दोनों की भावनाओं को एकाकार कर प्रेम का अनुभव करा रहा था।सचमुच जीवन के अनगिनत क्षणों में कुछ पल यादों की किताब में अपनी विशेष पहचान बना ही लेते हैं।
क्रमशः......