दायरों से निकल कर
दायरों से निकल कर
पिछले एक घंटे से सोफे पर बैठी साक्षी गंभीर मुद्रा में मन ही मन जैसे अपने आप से बातें किये जा रही थी। पता नहीं आजकल घर का माहौल तनाव भरा क्यूँ है? पता नहीं अजय आजकल इतना बदल क्यों गए हैं? शादी से पहले तो ऐसा नहीं था? तब तो हम इतना प्रेम करते थे कि... कहीं ऐसा तो नहीं हम दोनों के बीच में तीसरा कोई... नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता ...। क्षीण होते वैवाहिक सम्बन्धों के असंख्य प्रश्नों कि पोटली से उसका मन बोझिल हुआ जा रहा था।
चुपचाप अख़बार के पेज पलटता हुआ अजय अचानक कह उठा “क्या सोच रही हो?” फिर से लड़ने कि तैयारी है क्या?
साक्षी - हाँ, हाँ, मैं ही लड़ती हूँ, जैसे आप तो कुछ करते ही नहीं...
अजय - अब फिर से शुरू मत हो जाना, मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो?
साक्षी - (शांत होकर) कुछ नहीं, बस ये सोच रही थी कि तुम कितने बदलते जा रहे हो, शादी से पहले तो मुझसे मिलने की, बात करने की, मेरी मुश्किलों की बड़ी चिंता किया करते थे। अब क्या हो गया? कही कोई और तो...
अजय - (मुस्कराकर), तुम महिलाओं की हर बात में संदेह करने कि आदत ही तुम्हारी परेशानियों का सबब है।
साक्षी - अरे इसमें संदेह क्यों न हो... आपके बदलते व्यवहार का कारण जानना मेरा हक है... आखिर धर्मपत्नी हूँ आपकी...
अजय - बिल्कुल जानना चाहिए कारण... जरा याद करो, हमारी शादी होने से पहले तुम अपने घर वालों से छुपकर 24 घंटों में से कितने घंटे मेरे और केवल मेरे बारे में सोचा करती थी??
साक्षी - लगभग अठारह से बीस घंटे...
अजय - मेरा भी यही हाल था... और जब ग्रीन पार्क के कोने पर पेड़ के नीचे मैं तुम्हारा इंतजार करता था, तब मुझसे मिलने के लिए तुम अपने घर वालों से कितना झूठ बोलती थी??
साक्षी - तुम्हारे लिए घर वालों को खूब धोखा दिया है मैंने... बहुत झूठ बोला है मैंने... एक बार तो मेरा झूठ पकड़ा भी गया था, वो तो बातें बनाकर छुटकी ने संभाल लिया था...
अजय - मैंने भी कम झूठ नहीं बोला अपने परिवार से... तुमसे मिलने के लिए ...याद है एक बार चाचा जी ने कालेज में तुमसे लाइब्रेरी का पता पूछा था।
साक्षी - हाँ... हाँ... याद आया
अजय - उस दिन वो तुम्हें देखने गए थे... मेरी बुक में उन्होंने तुम्हारा दिया हुआ वैलेंटाइन ग्रीटिंग और फोटो देख लिया था। मुझे एक थप्पड़ भी मारा था बाद में, पापा को बिना बताये, उन्हें शादी के लिए राजी भी चाचा जी ने ही किया था।
साक्षी - अच्छा जी... ये तो मुझे पता ही नहीं था।
अजय - याद करो... मेरे बारे में थोड़ा सा बुरा-भला कहने पर उस दिन कैंटीन में तुमने अपनी बेस्ट फ्रेंड ईशिता को थप्पड़ मार दिया था।
साक्षी - हाँ, तो ...वो फालतू बकवास कर रही थी तुम्हारी पर्सनैलिटी को लेकर..
अजय - अजी, तुम्हारी ये अदा ही तो मुझे भा गयी और तुम मेरी जिंदगी आ गयी।
साक्षी - रहने दो ...बातें ना बनाओ।
अजय - बातें नहीं हकीक़त है।
साक्षी - तो अब कौन से कांटे निकल आये मुझमें, जो बात-बात पर गुस्सा करते हो।
अजय - गुस्सा मैं नहीं तुम करने लगी हो या यूं कहा जाये हम दोनों... क्योंकि जब कोई अपने दायरों से निकलकर हमारे लिए कुछ सकारात्मक कार्य करता है या हमारी भावनाओं का सम्मान करता है और बदले में हमसे कोई अपेक्षा नहीं रखता तब विश्वास और प्रेम पनपता है। फिर ये प्रेम सुखद अनुभूति प्रदान करते हुए सम्बंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करता है और ये सम्बन्ध एक दूसरे के हर विचार, हर आदत को स्वीकारते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
साक्षी - (शांत स्वर में) तो क्या अब मेरे प्रेम में कोई कमी हो गयी या विश्वास कम हो गया। मैंने अपना तन-मन सब कुछ तो तुम्हें सौंप दिया।
अजय - (साक्षी को रोकते हुए) अरे यार कोई कमी कहीं नहीं है ...मैं जो समझाना चाहता हूँ उसे समझने की कोशिश करो। मैंने जो शादी से पहले की बातें याद दिलायी, वो इसलिए कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो बिना किसी अपेक्षा के, उसकी सभी आदतों को स्वीकारते हुए केवल अपने दिल की आवाज पर अपने अन्य सभी रिश्तों के दायरों से बाहर आकर सारा समय उसी शख्स के नाम कर देते हैं। ...किन्तु, जब हम परिणय-बंधन में बंध जाते हैं, तो एक दूसरे की उन्हीं आदतों को बदलने का प्रयास करते हैं, जिन्हें हमने स्वीकार किया था। साथ ही अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं और फिर अपने नये दायरे तय होने लगते है जिससे व्यवहार में बदलाव आते हैं साथ ही इन मशीनी शहरों में मशीनी जिंदगी जीने के कारण समय कम हो जाता है। हमें अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए कभी उपहार तो कभी छोटी-छोटी पार्टियों का सहारा लेना पड़ता है और इन सब बातों में समय लगता ही है।
(साक्षी को हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचते हुए) अजय ने शांत स्वर में कहा, और हाँ, ये जो तुमने अभी कहा तन-मन सौंप दिया तो मैं तुम्हें बता दूं कि “प्रेम, यौन समर्पण का नाम नहीं, मौन समर्पण का नाम है।”
एक बात तुम्हें बता दूं कि दो दिन बाद मुझे छुट्टी मिल रही है हम दोनों शिमला के लिए रवाना होंगे।
एकटक अजय को निहारते हुए साक्षी मुस्करा उठी, शायद उसे अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे और उसका पुराना अजय लौट आया था।