Akansha Rupa chachra

Tragedy Inspirational

4.0  

Akansha Rupa chachra

Tragedy Inspirational

कुम्मा की बहादुरी

कुम्मा की बहादुरी

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सात वर्षीय कुम्मा गरीब वर्षीय परिवार में रहती थी । माँ -बाप ,भाई, बहन और बूढ़ी दादी।

बापू जी गुजर बसर बहुत मुश्किल से करते माँ मेहनत में कसर न छोड़ती थी। हर मौसम का खौफ पेट भरने की चिंता में जिंदगी कट रही थी।

अचानक एक दिन ऐसी घटना घटी जिसने परिवार के अस्तित्व को हिला कर रख दिया। कुम्मा की बहन की हालत इतनी खराब हो गई की उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं बची थी। उसकी बहन को जो बीमारी हुई थी वो इतनी बड़ी थी कि उसको ठीक करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।

अरे! कुम्मा की माँ.....

हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।

पिताजी ने रोते हुए कहा।

कुम्मा की दीदी ' दिशा ' मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजर रही थी। घरेलू हिंसा की शिकार ,उसकी खूबसूरती ही

उसकी बदकिस्मती बन गई। उसके बड़े पापा ने दिशा का शारीरिक शोषण कर डाला।

दिशा की बड़ी माँ भगवान को प्यारी हो गई थी। जब वह छ: महीने की थी।

अक्सर उसे बड़े पिता का स्पर्श असहनीय प्रतीत होता।

उसकी दिल की बात सुनने वाला कोई न था।

माँ को बताना चाहा पर कोई सुनने वाला नहीं था।

कुम्मा पर पहाड़ टूट पड़ा जब उसने सुना की उसकी दीदी के साथ घरेलू हिंसा शारीरिक शोषण का शिकार हुई । उसने माँ -बाप को रोते हुए देखा। कुम्मा ने आक्रोश में आकर आँसू बहाते बहाते एकाएक भागते भागते पुलिस स्टेशन पहुँच कर सारी बात हाँफते हाँफते एक ही साँस में बता डाली ।

पुलिस कुम्मा को लेकर घर आयी। उसकी दीदी को इन्साफ दिलाने के लिए कुम्मा के माता-पिता को समझाया कि समाज में छिपी इस बुराई का अंत होना अति आवश्यक है।

घरेलू हिंसा के घिनौने इस अपराध को छिपाना भी उससे बड़ा अपराध है।

समाज से घिनौने अपराधों सामाजिक बुराई का पर्दाफाश करना नागरिकों का भी परम कर्तव्य होना चाहिए।

कुम्मा ने इस अपराध का विरोध कर अपनी दीदी को इंसाफ दिलाया।

हमारे समाज को शुद्ध स्वच्छ बनाने में  घरेलू हिंसा का विरोध करना अति आवश्यक है।

इन बुराइयों को बढ़ावा देना भी सामाजिक अपराध है।

समाज को इन बुराइयों से मुक्त करना चाहिए।


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