कुल्हड़ में हुल्लड़
कुल्हड़ में हुल्लड़
सुबह से ही बेचैन हुए इधर-उधर घूम रहे धुरंधर सिंह के चेहरे के भावों को पढ़ती धुरंधर की पत्नी खिसयानी बोली, "क्यूँ जिराफ़ की तरह गर्दन अकड़ाये घूम रहे हो ? थक गए होंगे, जाकर अपनी कुर्सी पर कलम तोड़ लो।"
"तुम्हारे जिस किसी ने भी तुम्हारा नाम खिसयानी रखा है न, बिल्कुल सही रखा है। मैं लघुकथा का कथानक सोच रहा हूँ और तुम्हें टाँग खिचाई की सूझ रही है। अरे ! तुम चूल्हा-चौका करने वाली को क्या पता लिखने के लिए सोचना कितना मुश्किल है। फिर प्रतियोगिता के लिए लिखना हो तो सबसे अलग लिखना होता है जो सबसे मुश्किल है।"
"हूँ ! इसमें क्या मुश्किल है ? देश, समाज मे इतना कुछ भरा पड़ा है किसी पर भी साफ-सुथरा या मिर्च-मसाला लगाकर चेप दो, और शीर्षक के आगे लिख दो लघुकथा है। एक-दो वाह, वाह तो मिल ही जायेंगे, फिर किसी संगठन से जुड़े होगे तो शायद...... "
"खिसयानी तू रहेगी तो खिसयानी की खिसयानी ही। लघुकथा लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं यह गागर में सागर भरने जैसा कठिन काम है। ऐसा नहीं है कि जब फुर्सत मिली मोबाइल उठाया और की-पैड पर अंगूठे चलाए और कुछ भी लिख दिया तो वह लघुकथा बन गयी। अरे, कपोल काल्पनिक नहीं हकीक़त से भी नाता होना चाहिए कथा का फिर कहीं लेखकीय प्रवेश, कही कालदोष, कहीं, कुछ तो कहीं कुछ। पूछो न क्या-क्या प्रतिबद्धताएँ हैं लघुकथा लेखन में।"
"मुझे तो कुछ पता नहीं मैं ठहरी चूल्हे-चौके वाली, मैं क्या जानूँ तुम लेखकों की बातें पर इतना तो मालूम है दुनिया भर की लघुकथाएं लिखी जा रही हैं एक-एक दिन में।"
धुरंधर सिंह, खिसयानी से किसी तरह पीछा छुड़ाकर लघुकथा प्रतियोगिता के लिए कुछ धमाकेदार लिखने के लिए फिर से दिमाग़ के घोड़े दौड़ाने लगा। खिसयानी भी अपने मोबाइल में घुस गयी, लघुकथा का कथानक उसके दिमाग़ में उपज चुका था। इस बीच उनकी बेटी कल्पना ने उनकी इस नोकझोंक पर एक व्यंग्यात्मक रचना लिखकर प्रतियोगिता के लिए पोस्ट भी कर दी।