Kunda Shamkuwar

Drama

2.5  

Kunda Shamkuwar

Drama

कठपुतली

कठपुतली

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आज बेटी के साथ बाजार जाना हुआ।थोड़ी देर छुटपुट ख़रीदारी करने के बाद हम इधर उधर घूमने लगे।भीड़ देखकर बेटी ने एक जगह रुकने की जिद की।मैंने भी देखते है की क्या हो रहा है कहते हुए भीड़ में थोड़ा अंदर झाँक कर देखा तो वहाँ कठपुतली का खेल शुरू था।

बेटी की जिद और उसकी खुशी के लिए मैं उसके साथ कठपुतली का खेल देखने लगे।

बेटी खुश होकर कहने लगी,"देखो मम्मा, वह आदमी कठपुतली को कितने अच्छे से नचा रहा है। मुझे तो कठपुतली और उसके खेल में बड़ा ही मजा आ रहा है।"

मैंने उसे समझाते हुए कहा,"कठपुतली का खेल मज़ेदार होता है फ़नकार के इल्म और अदायगी पर, जो धागों को जितनी ख़ूबसूरती से साधता है वह उतना ही बड़ा फ़नकार होता है !"

बाजार से वापस घर आकर मैं अपने रोजमर्रा के कामों में लग गयी।शाम को घर मे पति के साथ ऑफिस से उनके कोई मित्र आये। मेहमानों की आवभगत के साथ साथ चाय पर हमारी बातचीत होने लगी।

पति मेरी तरफ इशारा करते हुए अपने मित्र से कहने लगे, "मैं सोच रहा हूँ कि इनके मम्मी डैडी का एक पुराना घर है जो उनके नहीं रहने पर अब इनके पास है।उसे हम बेच कर आप जो बता रहे है वही 3 बेड रूम वाला फ्लैट ले लेते हैं।"

उन दोनों की बातचीत से मेरे जहन में माँ से कही वे सारी बातें कौंध गयी। मैंने माँ से वादा करते हुए कभी कहा था, "माँ,इस घर में हमारी तीनों की बहुत सी यादें जुडी हुई है।इसलिये मैं इस घर को हमेशा अपने पास ही रखूंगी आप दोनों की अमानत, प्यार और आप लोगों की सारी यादेँ सहेजकर। इसे जिंदगी भर नही बेचूंगी।"

उन सारी बातों को दिल में किसी कोने में दबाते हुए मैंने कहा, "अरे चाय तो लीजिए आप लोग। देखिये सारे पकौड़े भी ठन्डे हो रहे हैं।"

मित्र के साथ पति देव ने मुस्कुराते हुए पकौड़े के साथ चाय पीने लगे।

मैंने कहा, "उस घर मे मेरे माँ- बाबा की बहुत सी यादें जुडी हुई है इसलिए मैं उस घर को बेचना नहीं चाहती हूँ।"

पति मुस्कुराते कहने लगे,"उस पुराने घर का क्या करोगी तुम ? छोड़ो वह सब। मिस्टर वर्मा जो फ्लैट बता रहे हैं वह ले लेते हैं। जिंदगी में नये रास्तों पर चलकर ही आगे बढ़ना होता है।

वर्मा जी कहने लगे,"आप सही planning कर रहे हैं।"

मैंने चाय का घूंट लेते हुए पकौड़ों की तरफ़ हाथ बढ़ाया।अनायास मुझे लगा कि चाय और पकौड़े भी जज़्बातों की तरह ठंडे हो गये हैं।

पति के चेहरे पर पसरी खुशी से मुझे दोपहर को बाजार में देखे हुए कठपुतली के खेल की याद आयी।

लगा जैसे कठपुतलियों का खेल फिर से शुरु हुआ है ....


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