करने दो अपने मन की
करने दो अपने मन की
"मन को मारकर खुश नहीं रहा जा सकता"
"इसलिए मैं अपने घर की बहू बेटी को कभी कभी अपने मन की कर लेने देती हूँ."जब रजनीजी ने अपनी पड़ोसन सुषमा से यह कहा तो सुषमा को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्यूँकि रहन सहन और पहनने ओढ़ने के तौर तरीके से उसे लगा नहीं था कि रजनीजी इतने खुले विचारों वाली महिला होगी.वैसे तो रजनीजी सुषमा की हमउम्र नहीं थी पर एक तो सुषमा अजमेर से बिलासपुर नई नई आई थी और रजनीजी उसकी सबसे नजदीकी पड़ोसन थी. दूसरा रजनजी का व्यवहार बहुत ही ज़िंदादिल था.वो सबसे बहुत जल्दी हिलमिल जाती थी. सुषमा से भी उनकी बहुत जल्दी दोस्ती हो गई थी और उन्होंने सुषमा को कह रखा था कि, किसी भी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो वह कभी भी उनके पास आ सकती है.अभी थोड़ी देर पहले ही सुषमा रजनीजी के घर आईं थी और कुछ बात करती तभी वहाँ रजनीजी की बेटी शिवि आ गई.इस बार नवरात शुरू होने से पहले ही शिवि ने मम्मी से ज़िद किया था कि वो भी नवरात में पुरे नौ दिन का व्रत रखेगी. जब रजनीजी ने मना किया तो उसके पास इसका तर्क मौज़ूद था."मम्मा, पिछले कई साल से मैं नवरात में माँ दुर्गा का का व्रत रखना चाहती थी पर तब स्कूल या कॉलेज में क्लास चलते रहने की वजह से आप मुझे व्रत करने को मना करती तो मैं मान जाती थी पर अब तो ऑन लाइन क्लासेस चल रहें हैँ, ऐसे में मैं आसानी से व्रत रख सकती हूँ, और फिर इस साल भाभी भी तो व्रत रखने वाली हैँ."शिवि ने जोर दिया तो रजनीजी मान गईं पर उन्होंने कहा कि, "एक बार भाभी से भी पूछ लो कि वो व्रत रखना चाहती है कि नहीं ?"यह सुनकर शिवि के साथ उनकी पड़ोसन सुषमा भी चौंक गई.
सुषमा की सास को पूजा पाठ, व्रत त्यौहार मनाने में बहुत रूचि थी इसलिए सुषमा को भी पूजा पाठ की तैयारी बहुत अच्छी तरह करनी पड़ती थी.उसकी सास थोड़े दकियानुसी विचारों की थीं इसलिए नवरात के एक दिन पहले उन्होंने फ्रिज की सफाई कर अंडे वगैरह फेंकने को कह दिया था.तभी सुषमा के बेटे आशीष ने उन अंडो को फेंकने नहीं दिया और उन्हें उबालकर खाने की ज़िद की तो सुषमा को याद आया,रजनीजी के यहाँ तो दो चूल्हे हैँ. व्रत का सात्विक खाना और प्रसाद वगैरह तो ऊपर के गैस चूल्हे में ही बनता है तो नीचे के गैस चूल्हे में अपने बेटे आशीष के लिए अंडे उबालने लेकर आई थी. अब कल से तो नॉनवेज खाना क्या उसे छूने तक की भी इज़ाज़त नहीं थी.पर यहाँ तो रजनीजी को एकदम खुले विचारों का देखकर उसे बहुत आश्चर्य हो रहा था. अभी इस घर की नई बहू अंजलि को ब्याहकर आए हुए कुल जमा आठ महीने ही तो हुए हैँ, उसे तो व्रत रखना ही चाहिए. भला घर की बहू से क्या पूछना. ये बात सुषमा के गले नहीं पड़ रही थी. वो उम्र में तो रजनीजी से छोटी थी पर उसके ख्यालात बड़े पुराने थे.खैर, थोड़ी देर में नई नवेली बहू अंजलि चाय नाश्ता लेकर आ गई. उसे देखकर एकबार तो सुषमा चौंक ही गई. उसके पहनावे और शिवि के पहनावे में ज़्यादा फर्क नहीं था.सिर्फ अंजलि के माथे पर सिंदूर की महीन रेखा और हाथों में चंद चूड़ियाँ. बाकी उसने भी शिवि की तरह जींस और कुरता पहन रखा था और साथ में एक स्टाइलिश स्टॉल उसके गर्दन की शोभा बढ़ा रही थी.खैर... अब मुद्दे पर आते हैँ.
चाय पीने के बाद रजनीजी ने अंजलि से पूछा कि कल से नवरात शुरू हो रहे हैँ वो व्रत रखना चाहती है तो बता दे और अगर ना भी रखना चाहे तो कोई बात नहीं.अभी सुषमा ये सुनकर कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करती उसके पहले ही उसने सुना अंजलि ने थोड़ा संकोच करते हुए कह रही थी."मम्मीजी, मुझसे भूखा नहीं रहा जाता. अगर व्रत रख भी लूँगी पुरे समय मन मार कर बैठी रहूँगी और सिर्फ तरह तरह की खानेवाली चीज़ों के बारे में सोचती रहूँगी. इसलिए क्या मैं सिर्फ पूजा करके खाना खा सकती हूँ. मैं एकदम भूखी नहीं रह सकती. इसलिए आजतक मैंने कोई व्रत नहीं रखा."अंजलि के इतना कहते ही रजनीजी बोल पड़ी,"कोई बात नहीं बेटा, तुम व्रत नहीं रखना चाहती तो ज़बरदस्ती व्रत मत रखो. यूँ मन मारकर खुश नहीं रहा जा सकता, कर लो अपने मन की और खुश रहो ".अंजलि सुनकर बहुत खुश हो गई. वैसे भी वो व्रत रख भी लेती तो पुरे समय सिर्फ खाने के बारे में ही सोचती रहती. उसे अपनी सासूमा पर बड़ा प्यार आया तो एकदम से रजनीजी से लिपटकर बच्चों की तरह कहने लगी "थैंक्यू मम्मा".सुषमा बड़े ही आश्चर्य से इस अनोखी सास बहू की जोड़ी को देख रही थी जो सास बहू कम माँ बेटी ज़्यादा लग रहीं थीं.सुषमा से नहीं रहा गया तो उसने रजनीजी से पूछ ही लिया."दीदी,आपको नहीं लगता आप अपनी बहू को कुछ ज़्यादा ही छूट दे रही हैँ. भला घर की बेटी व्रत रखे और बहू नहीं. बड़ी अजीब बात है ये.""मुझे अपने समय में मायके और ससुराल हर ज़गह ज़बरदस्ती व्रत रखना पड़ता था. कई बार तो परिक्षाओं के समय भी मन मारकर पूजा पाठ में शामिल होना पड़ता था. तब लगता, काश कि ज़बरदस्ती ना किया जाता तो अच्छा था. किसी भी त्यौहार में पकवान तो बहुत बनते पर खाने को व्रत खोलने पर ही मिलते. दिन भर मन मसोसकर रह जाना पड़ता. ऐसे में पूजा पाठ में मन कहाँ से लगता जब मन हमेशा खाने की चीज़ों में अटका हुआ हो ".अतीत में खोई हुई रजनीजी बोले जा रहीं थीं,एकबार तो मैंने चुराकर एक लड्डू खा लिया था, बाद में माँ और दादी से इतनी डाँट पड़ी कि देर रात तक रोती रही थी मैं. ससुराल में भी कमोबेस यही अवस्था थी. हर पूजा में आयोजन इतना वृहद पैमाने पर होता कि काम से थकावट तो होती ही थी, ऊपर से व्रत भी रखना पड़ता तो यह आयोजन ख़ुशी के बदले बोझ सा लगने लगा था. तभी सोच लिया था, अपनी बेटी और बहू से ज़बरदस्ती व्रत उपवास नहीं करवाऊँगी."अपना अनुभव बताते बताते रजनीजी जैसे अतीत में खो सी गईं.
उन्होंने गौर किया ना जाने कब उनकी आँखों के कोर भी सज़ल हो आए थे उन्हें पोंछते हुए उन्होंने जब सुषमा और अंजलि की ओर देखा तो दोनों बड़े ही ध्यान से उनकी बातें सुन रहीं थीं.दोनों कुछ कहतीं उसके पहले ही नटखटशिवि भी आ गई और प्यार से अपनी भाभी को चिढ़ाते हुए बोली ,"जो व्रत रखेगा, मातारानी उसे ही आशीर्वाद देंगी. खाऊ लोगों को नहीं "."तो मेरे बदले में तु ही खुश कर दे ना मातारानी को, मुझे भी व्रत का फल मिल जायेगा और भूखा भी नहीं रहना पड़ेगा."अंजलि चिहुँककर बोली तो शिवि भी हँसने लगी. दोनों हमउम्र सहेलियों की तरह हँस बोल रही थी.इतने में ऋषभ और रमेशजी दुकान से वापस आ गए तो अंजलि और शिवि में उनके लिए चाय बनाने की जैसे होड़ लग गई.यह सब देखकर सुषमा को बिल्कुल नया अनुभव हो रहा था. अपने बेटे आशीष की बहू के साथ भी वो ऐसे ही मिलजुलकर रहेगी. यही सोचते सोचते सुषमा अचानक मुस्कुरा पड़ी तो सबने पूछा,क्या बात है? यूँ मंद मंद क्यूँ मुस्कुरा रही हो?""मैं अपने बेटे आशीष की बहू के साथ भी ऐसे ही हिलमिलकर रहूँगी ". बेसाख्ता सुषमा के मुँह से निकल गया."पर वो तो अभी छोटा है. आठवीं क्लास में पढ़ रहा है. अभी उसकी शादी को तो बहुत देर है ".रमेशजी ने कहा.फिर सब एकसाथ ठहाका लगाकर हँस पड़े.उस घर में आपसी समझ और प्रेम की खुशबू थी जिसे सुषमा महसूस कर रही थी. उसे बड़ी शिद्धत से एहसास हो रहा था कि वो कितना मन मारकर जीती आई है आजतक. उसने रजनीजी के घर की खुशहाली को देखकर निश्चय किया कि धीरे धीरे वह भी अपनी सास के विचारों में परिवर्तन लाने की कोशिश करेगी और यूँ मन मारकर नहीं जियेगी अब.
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