करियर और प्रयोरिटीज़
करियर और प्रयोरिटीज़
मायके आनेवाली बेटी की दबी हँसी देखकर माँ को कुछ अंदेशा हुआ।कुरेदते हुए माँ ने बेटी से पूछा,"बेटी,सब ठीक है ना?'
बेटी फिर से हँसती है...वही दबी सी हँसी.....
माँ सिहर उठी और फिर से कुरेदने लगी।
टूटते हुए लफ़्ज़ों से बेटी ने अपनी अलहदगी का इशारा दिया.......
माँ सिहरते हुए कह उठी,'शादी गुड्डे गुड़ियों का खेल है जो छोटी छोटी बात पर तोड़ा जाए?'
माँ को वह कैसे समझाएँ की उनकी इस यूनिवर्सिटी टॉपर बेटी को कम अक़्ली के ताने देना क्या कोई छोटी बात है?
माँ से वह कैसे पति की वे सारी बातें कहे? कैसे बताएँ पति के उलाहनें जो बात बात पर उसे कहता है 'तुम दिन भर घर में क्या करती हो?'
कैसे कहे माँ से पति की ये बातें जो उसे चाबुक सी लगती थी। शादी के लिए उसने माँ के कहने पर ऊँचे ओहदे की नौकरी जो छोड़ी थी।
माँ ने उसे शादी के लिए यह कहते हुए मनाया था, "मल्टीनेशनल कंपनी के रीजनल हेड का रिश्ता है। ऐसा रिश्ता फिर नही मिलेगा..."
अपने अनुभवों के मद्देनजर माँ नज़रें चुराते हुए बेटी को कहने लगी,"बेटियों को ससुराल में एडजस्ट करना होता है.."
वह माँ से कैसे पूछे की अपने करियर को छोड़कर फैमिली को प्रायोरिटी देने का निर्णय क्या कम एडजस्टमेंट वाला होता है? और उसका कोई मोल क्यों नहीं होता है?