कोशिश

कोशिश

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"अरे मार ही डालेगा क्या बहू को, छोड़ पेट से है वो, बच्चे को चोट लगी तो दोनों के जान पर बन आयेगी।" जानकी बेटे पर बरस पड़ी। जो अपनी पत्नी से उसके हाथ की सोने की चूड़ी उतरवा रहा था और निर्मला दे नहीं रही थी। जानकी का बेटा मुन्ना बाबू, खानदान में एक लम्बे समय से केवल कन्या ही जन्म लेती आई थी। खानदान के पहिले चिराग मुन्ना बाबू, दादा दादी नाना नानी मां बाप सबके लाड़ में पले। जिस चीज पे उंगली रखी हाज़िर हो गई। मुन्ना बाबू की आँख में आँसू न आने पाये, सब सेवा में रहते। गोरे चिट्टे, सुन्दर नक्श, गोल मटोल मुन्ना बाबू घर भर की आंख का तारा, धन धान्य से भरे परिवार में एक राजकुमार की तरह परवरिश पाते रहे। पर कहते है न, अति सर्वत्र वर्जयेत। अतिशय प्यार में वो ज़िद्दी होते गये। उनकी ज़िद के आगे घर के लोग हारते गये। आठवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया। अब नहीं पढ़ना, घोषणा कर दी उन्होने। दादा ने कहा-कौन नौकरी करवानी है मुन्ना से, उसकी हवेली में नौकरो की लाईन लगी है"मुन्ना बाबू खुश। दादा के चरण स्पर्श कर लिया। परिवार ने इस घोषणा पर मुहर लगा दी। अब क्या राजदुलारे मुन्ना जी को किसका डर, सारे समय अपने जैसे बिगड़े लड़को के साथ मटर गश्ती करना, ताश पत्ती करना, लड़कियो को छेड़ना।

घर में शिकायतें आने लगी। पर मुन्ना जी को आंच नहीं आने दी घर के लोगो ने। साफ बचा ले जाते उसकी गलतियों को। इस तरह प्रश्रय पा मुन्ना और ऊद्द्ंद, आवारा होता चला गया। सब दिन एक से होते नहीं, अपनी बदचलनी, आवारगी के साथ मुन्ना बाबू जवान होने लगे। उधर दादा, दादी भी दुनिया में नहीं रहे। व्यसनी बेटे के व्यवहार से अब पिता भी दुखी होने लगे। और एक दिन पिता भी हृदयाघात से चल बसे।

पिता की मृत्यु के बाद तो मुन्ना बिलकुल आज़ाद हो गये। खैर भय तो उन्हे पहिले भी किसी का नहीं था, पिता के जाने के बाद मां से क्या डरना ? वो तो उसके सारे अवगुन अपने आँचल में छुपाती आई। पूर्वजो की जमा पूँजी यार दोस्तों के साथ खर्च होती रही। मुन्ना जी की कमाई धेले की नहीं और खर्चे नवाबों से। रात के करीब दो का समय होगा, गहरा अंधेरा था। मुन्ना अब तक घर नहीं आया। जानकी ने कुछ हलचल सुनी अन्धेरे में टोह ली।

मुन्ना अपने तीन दोस्तों के साथ एक लड़की को ले अंदर घुसे, दबी दबी सी चीख लग रही थी। सबने मिल कर उस लड्की को एक कमरे के भीतर ले जा चिट्कनी चढ़ा दी। अंदर से दबी घुटी आवाजें आ रही थी। जानकी दरवाजा पीटते पीटते बेदम हो गई।

जब जानकी को होश आया तो कमरे का दरवाजा खुला था, मुन्ना समेत सब लड़के गायब थे। अंदर कमरे में वो लड्की अर्धचेतन अवस्था में कराह रही थी। जानकी ने देखा वो गरीब भोला कुम्हार की लड्की थी। मुन्ना बदचलन है, आवारा है पर इतनी शर्मनाक हरकत करेगा, जानकी ने नहीं सोचा था। उसने निर्णय लिया भोला कुम्हार की बेटी निर्मला को अपने घर की बहू बना कर ले आई। इस बात को चार साल हो गये। मुन्ना के तीन साल की बेटी है और अभी निर्मला पेट से है। मुन्ना की एक हैवानियत को तो जानकी ने इंसानियत का चोला पहिना दिया पर मुन्ना की बिगड़ी आदतों को न सुधार पायी।

अब भी वो अपने शौक पूरे करने के लिये निर्मला से गहने मांगता, जो जानकी ने बहू को दिये थे। और न देने पर निर्मला पर हाथ छोड़ता, जानकी के बीच बचाव करने पर वह माँ को भी चोट पहुंचा देता। आज भी यही हुआ वो अमानुष की तरह निर्मला को मार रहा था, पता नहीं जानकी में कहाँ से ताकत आई, बेटे को खींच कर अलग किया बहू से, और जोर से धक्का दे दरवाजे से बाहर किया चिल्लाकर बोली--निकल जा इस घर से, अब यहाँ कदम मत रखना। आज से इस घर से तेरा रिश्ता खत्म"और दरवाजा बंद कर दिया।

मुड़कर निर्मला को सहलाती हुई बोली--बेटी मै तेरी अपराधी हूँ, मुझे माफ कर दे"निर्मला ने कहा- मां गलती केवल आपकी नहीं पूरे परिवार की है। हम बबूल का पेड़ लगाकर आम कैसे पा सकते है। उन्हें शुरु से ही सही रास्ते पर लाने की कोशिश करनी चाहिये थी" कुछ रुककर वो बोली-मां वो आपके बेटे है, मेंरे पति है, इन बच्चों के पिता है, इस तरह उन्हें छोड़ देना ठीक नहीं। हम दोनों मिलकर एक कोशिश कर के तो देखे। शायद बबूल में आम लग जाय "कहकर मुस्करा दी वो।


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