Poonam Mishra

Tragedy

3.9  

Poonam Mishra

Tragedy

कोरा कागज

कोरा कागज

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 नीता परिवार की सबसे बडी बेटी, विधवा माँ, छोटी बहन व भाई के साथ एक किराए के मकान मे रहते थे । नीता की स्नातक की शिक्षा पूरी होते ही उसे एक ऑफिस मे नौकरी मिल गयी । माँ को पिता की पेंशन मिलती थी उसी मे तीन बच्चे ,घर का किराया , पढाई, कालेज की फीस सब काम होता था , माह अंत तक तो घर मे पांच रूपये भी नही मिलते थे । माँ नीता से बोलती , चलो अब जस तस तुम्हारी नौकरी से ब्याह के लिए कुछ रूपये बच जाएंगे तो दहेज इकठ्ठा कर सकेगे , नही तो हमारी लडकियों से कौन व्याह रचाएगा , बस माँ , अब रहने दो ये बाते दिन भर माँ  चिंता  में बुदबुदाती रहती थी । नीता माँ से कहती, माँ चुप हो जाओ, हमे नही करनी शादी , तुम काहे चिंता करती ,माँ बीच मे ही टोकते हुए बोल उठती , तो क्या तुम यहाँ मेरे ही घर बैठी रहोगी ,क्या कहेंगे रिश्तेदार, मोहल्ले वाले , हम क्या जवाब देंगे, नीता जोर से चिल्लाती और किवाड़ बंद कर लेती है ।

नीता मन ही मन सोचती माँ भी सही सोच रही है उसे तो सबको उत्तर देना होता है ,लेकिन मेरी शिक्षा तो अभी पूरी हुई है ,शादी के लिए पैसा नही है , हे भगवान ये कैसी जिंदगी है , ना यहाँ हंसी है ना रोना । भाई भी छोटा है बहन की पढाई पूरी करनी है । पिता की अचानक मृत्यु ने नीता को पूरी तरह से तोड दिया था । माँ पढी लिखी नही थी कि पिता की जगह नौकरी कर सके , बस उनकी पेंशन से घर चलता था । 

नीता नौकरी की कोशिश कर रही थी , और उसे एक ऑफिस मे नौकरी मिल जाती है । घर पर सब खुश होते है कि दीदी को नौकरी मिल गयी ,हम खर्च के लिए दीदी से पैसा मांग सकते है । 

आज नीता को पहली तनख्वाह मिली, उसने आते हुए सबके लिए कुछ ना कुछ खरीदी करती है , माँ के लिए साडी लाती माँ तो खुशी से फूले नहीं समाती, बहन के कपडे और भाई को एक घडी देती है । माँ ने नीता से पूछा कि तुम अपने लिए क्या खरीदी ?  "माँ , मेरी इतनी तनख्वाह नही कि सब कुछ हम आज ही खरीद लें , अभी छुटकी की कालेज की फीस भरनी है तो भाई को पैसे देने हैं । "

नीता को काम करते करते छ महिने हो गए , वहीं रोज सुबह उठ बस से ऑफिस जाना व शाम को घर लौट आना बस यही जिंदगी थी । भाई तो कुछ करते ही नही बस एक झोला कंधे पर लटका कर सुबह लाइब्रेरी निकल जाते वहां से कुछ किताब व उपन्यास उठा लाते और उसमे ही समय व्यतीत करते । नीता ऐसी उदास जिंदगी से ऊब गयी थी । क्योकि घर की जिम्मेदारी लेने कोई तैयार ही नही था ।

नीता आज बहुत उदास मन से ऑफिस जाती है । ऑफिस का सफर भी आज भारी लग रहा था ना कोई जीवन मे उमंग थी ना कोई चाह बस जिंदगी एक कोरा कागज बन गयी थी , मन मे जीवन साथी की तमन्ना थी, अनेकों सपने बुने जाते थे लेकिन समय ,पैसा के साथ वे भी साथ छोड देते थे । जीवन की डगर कठिन लगने लगी थी ना जाने हम माँ को कब खुशियाँ देंगे ऐसे विचारो मे नीता घिरी रहती थी । आज ऑफिस पहुँचते ही नीता चुपचाप अपने काम मे मग्न थी  ना किसी से कोई बात ना हाय-हैलो !!! इतने मे रामू काका नीता के पास आते है , "मैडम जी सर केबिन मे आपको बुला रहे हैं ," नीता रामू को देखती है , शायद रामू काका की ऑखों मे लिखा हो कि सर क्यों बुला रहे , रामू बस इतना कह कर निकल जाता है , नीता साडी का ऑचल ठीक करती है और धीरे से दरवाजा नाॅक करती सर ने अंदर आने की इजाजत दे दी , सहमी नीता कोने मे हाथ बांधकर खडी है सर उसे सामने रखी कुर्सी पर बैठने कहते है । धीरे से कुर्सी पीछे खींचकर नीता बैठ जाती है । सर ने नीता से अनेकों प्रश्न पूछे जैसे घर परिवार, इत्यादि, नीता सभी का उत्तर देती है और वो बाहर आती है फिर काम मे लग जाती । 

नीता सोच मे पड गयी कि सर ने अंदर मुझे क्या मेरा परिवार पूछने के लिए बुलाया था । शाम हो गयी ऑफिस से घर आती है । आज रात भर नीता के मन मे कई प्रश्न उठ रहे थे , फिर भी उसे लगा था कि कोई गलती हो गयी है इसलिए अंदर बुलाए हो लेकिन नही बस सर ने ऑफिस संबंध कुछ पूछताछ ही नही करी, नीता वापिस काम मे लग गयी ना काम की गलती बतायी ना तारीफ करी सर ने फिर क्यों ??? इस क्यो का पता कैसे चलेगा , बस इसी सोच मे नीता के दस दिन निकल गए  , नीता मन ही मन सोचती कि अंदर जाऊँ और सर से पूंछू की आपने अंदर क्यों बुलाया था । लेकिन!!! हिम्मत नही हुयी ।

एक दिन सुबह सुबह घर के दरवाजे पर घंटी बजती है माँ अंदर से ही बुदबुदाती हुई दरवाजा खोलती कि ना जाने काम के वक्त कौन आ गया, सामने एक सुन्दर नौजवान को देख वो चुप हो जाती है अंदर से आवाज आती है "माँ कौन आया है ," माँ कुछ नही बोलती तो नीता जो कपडे धो रही थी उसी अवस्था मे बाहर आती है , सामने सर को देख वो अपना ऑचल ठीक करने लगती है और सर से अंदर बैठने कहती है , "माँ यह मेरे सर हैं, मै इनके यहाँ नौकरी करती हूँ,"  माँ नीता से कहती "तूने हमे बताया नही कि वो आज घर पर आने वाले हैं" नीता सर की ओर देखती, माँ मुझे मालूम ही नही था कि सर आज आने वाले , अरे बेटा, माँ बीच मे बोल उठती ,मै कुछ नाश्ता पानी का इंतजाम करती , इतने मे सर खुद ही बोल उठते "नही माॅ जी मैने नीता को नही बताया कि मै आज सुबह आपसे मिलने आने वाला , मैने सोचा आज ऑफिस आने से पहले आप के घर की चाय पीता जाऊं", "हाँ हाँ बेटा क्यो नही मै अभी बनाकर लाती"! माँ अंदर चाय बनाने लगती इतने मे छोटी बहन उठकर मीठी- सी अंगडाई लेते बाहर आती है ,सर की नजर उसपर पडती है छोटी बहन नीना (छुटकी) संकोच मे अपने कमरे मे भाग जाती है , नीता चाय बनाकर लाती सर के साथ चाय पीती और सर माँ को प्रणाम  कर ऑफिस निकल जाते , नीता भी अपने समय पर ऑफिस पहुँचती । आज सर से कुछ बातें नही हुई, नीता की हिम्मत भी नही हुई की सर से पूंछु कि आज आप अचानक कैसे घर आ पहुंचे , तो क्या सर ने उस दिन मुझसे पता इसलिए पूछा था । ऐसे नीता के मन मे अनेक प्रश्न उठते और स्वयं मन ही उत्तर भी सोच लेता, बस इसी तसल्ली मे नीता जीवन की रस्सी मे उलझी रहती थी कि वो भी दिन आएगा जब समय बदलेगा और जीवन मे खुशीयां होगी ।


आज नौकरी करते नीता को दो बरस हो गए थे । वो यहाँ नौकरी मे खुश थी । छोटी बहन की भी शिक्षा पूरी हो गयी थी , और परीक्षा के रिजल्ट भी आ चुके थे और नीना मेरिट मे थी , वो बहुत खुश थी और नीता उसे आगे पढने के लिए भी कहती है लेकिन नीना यह कह कर बात टाल देती कि नही अब मै भी नौकरी करूंगी और आपकी हम अब इस घर से डोली उठाने की तैयारी करेंगे ,नीता जोर से हंस देती है आज कई बरस बाद घर मे हंसी की आवाज दीवारों ने सुनी थी , लेकिन नीता ने मना कर दिया की नही तुम और आगे पढो फिर मै शादी करूंगी , तुम्हें साधारण नौकरी नही एक अच्छी नौकरी करना है ,नीना को बात समझ जाती और वो कहना मान जाती व आगे की पढ़ाई के लिए कालेज मे दाखिला लेती है । नीना की तस्वीर आज सभी अखबारों मे छपती है कि युनिवर्सिटी मे नीना ने टाप किया था । नीता के सर ने यह खबर पढी तो उन्होंने नीता को बधाई दी , नीता बोल उठी सर मेरी बहन को आप बधाई दे मैने टाप नही किया है , 

सर भी नीता की बात मान जाते और रात आठ बजे सर पुष्षगुच्छ लेकर नीता के घर पहुंच जाते, उन्हे घर मे देख सब आश्चर्य कि आज सर फिर आ गए , सर नीता से बोलते कि मैने आपकी बात मान ली कि आप स्वयं नीना को बधाई दे तो मैने सोचा इससे अच्छा मौका नही आप लोगो से मिलना भी हो जाएगा । और "मै यहाँ नीना का स्वागत करने आया हूँ" , माँ नीना को बुलाती है नीना बडे ही शर्माते हुए आती है नजर नीचे झुकी है और सर की नजर नीना के काले घुंघराले केश पर टिक जाती है ,वे नीना को बथाई देते है । मिठाई का डिब्बा हाथ मे देकर वो निकल जाते है । नीना खुशी से फूली नही समाती कि उसका कोई ऐसा सत्कार भी करेगा , फूलों के बीच उसे एक दिल आकार का स्टीकर भी दिखाई दिया लेकिन वो चुप रही कि यह तो फूलों संग होता है । 

 समय की रफ्तार आगे चली ,नीना अपने कालेज के कार्यक्रम मे व्यस्त थी , आज कालेज मे संगीत प्रतियोगिता थी जहाँ नीना का संचालन था , बस नीना घर मे उस की तैयारी करती रहती , आज वो सुबह से ही सुन्दर साडी मे सजकर कालेज जाती है वैसे भी नीना का रंग साँवला था लेकिन व्यक्तित्व मे  काफी आर्कषण था घुंघराले केश, बडी बडी ऑखे और बात करने का अंदाज भी कुछ अलग था जो भी नीना से एक बार मिलता तो उसकी ओर आकर्षित हो जाता । और आज तो संचालन था वो भी गीत संगीत का कार्यक्रम था फिर तो समां ही बांधना था , क्योंकि संचालन यदि अच्छा हो तो ऐसे कार्यक्रम की रौनक बढ जाती है । बस सुन्दर नाजुक सी नीना के कंधे पर आज के कार्यक्रम की पूरी बागडोर थी , शहर के सभी सुप्रसिद्ध संगीत प्रेमी आज यहाँ शिरकत करने वाले थे , कुछ शहर के उद्योगपतियों को भी आमंत्रित किया गया था । सांझ को सुरमयी बनाना था , लेकिन उसके पहले ही मौसम का मिजाज बदल जाता और हवा बहने लगी हवा के सुर ने मौसम को खुशनुमा बना दिया था ।

सारे मेहमान मंच पर स्थान ग्रहण कर चुके थे , नीना का संचालन एक वंदन के साथ आरंभ होता है , फिर सरस्वति वंदना होती है , अतिथियो का सत्कार फिर कार्यक्रम का आगाज होता है , सभी प्रतिभागियों ने सुन्दर गीत की प्रस्तुति करी तो उतना ही सुन्दर संचालन नीना का था हर प्रतिभागी को शायराना अंदाज मे मंच पर आमंत्रित कर नीना ने सभी का दिल जीत लिया था । कार्यक्रम समाप्त होते ही नीना कालेज के गेट पर खडी ऑटो का इंतजार कर रही थी , कि अचानक एक कार वहां आकर रूकती है , और एक नौजवान कार से बाहर आकर नीना को पुष्षगुच्छ देता है नीना नजर उपर करती तो सामने और कोई नही सर ही खडे थे , नीना आवाक रह जाती है वो कुछ बोल भी नही पाती कि सर कार का दरवाजा खोलते और नीना को कार मे बैठने के लिए कहते नीना चुपचाप कार मे बैठ जाती , दोनो शांत , इतने मे सर ने नीना के संचालन की तारीफ करनी शुरू करी तो नीना के बदन मे एक उमंग की लहर दौडने लगी वो कुछ समझ ही नही पा रही थी कि वो कैसे पूछे कि आप यहाँ कैसे पहुंचे , वैसे सर की रूचि की जानकारी किसे नही थी, लेकिन वे संगीत विशारद थे साथ ही तबला वादन मे भी उन्होंने शिक्षा हासिल करी थी , तो स्वाभाविक है ऐसे कार्यक्रम मे उनकी उपस्थिति रहेगी  लेकिन इन सब जानकारी से ना नीता परिचित थी ना नीना , वे तो बस अपने सर को केबिन तक ही जानते थे । कार का सफर खत्म हुआ नीना कार से नीचे उतर गयी साथ ही सर भी बाहर आते है और घर तक नीना को छोडते है ,दरवाजे की घंटी बजती नीता दरवाजा खोलती है सामने नीना और सर को साथ देख आश्चर्य मे पड जाती सर नीना साथ मे कैसे ? खैर नीना कमरे मे अंदर चली जाती है और सर पूरी बात नीता से बताते तब नीता के मन का तूफान शांत होता है । सर वहां से सीधे घर पहुंचते लेकिन आज उनका भी मन का समुंदर मे रह रहकर लहरे उठ रही थी , वे आज पहली बार बेचैन थे, आज सर रातभर करवट बदल रहे थे , इधर नीता के मन मे भी सर के प्रति आर्कषण होने लगा था । सुबह आज नीता ऑफिस पहुँचती तो सर केबिन मे नही थे, नीता सोचती शायद कही बाहर गए होंगे । शाम चार बज गए सर नही आए ,आखिर रामू काका से सर की जानकारी लेती है तो पता चलता कि सर आज घर पर ही है । 

नीता मन के तूफान कोषशांत कर काम समाप्त कर ऑफिस से घर निकल जाती, बस का सफर नीता का तो सपनो का सफर होता उतने देर मे नीता अपना घर संसार बसा लेती , घर पहुंचते ही हकीकत की दुनिया मे शामिल हो जाती । 


नीना तो दो दिन से कालेज ही नही गयी ना घर पर कोई ज्यादा बातचीत होती , माँ की तबियत इधर नर्म गरम चल रही थी , सारा काम दोनो बहने कर लेती फिर शाम को ही उनकी मुलाकात होती बस ऐसे ही एक हफ्ता निकल गया था, यहाँ ऑफिस मे नीता सर से बात करना चाहती लेकिन संभव नही हो सका । 

आज सर ने ही नीता को केबिन मे बुला कर बैठने को कहा और सर एक फोन पर ही लगे रहे करीब दस मिनिट हो गए थे फिर भी बात चल रही थी नीता बाहर आ जाती और गुस्सा से चेहरे का रंग लाल हो जाता कि जब फोन पर बात करनी थी तो क्यों अंदर बुलाया सर ने , थोडी देर मे सर खुद उठकर बाहर आते और नीता की टेबल के पास खडे हो जाते नीता भी सहम कर खडी हो जाती , सर माफी मांगने लगते नीता चुप से खडी है सर अंदर बुलाते है , और बातचीत का सिलसिला शुरू होता है वैसे तो नीता का आर्कषण सर की ओर बढने लगा था , नीता धीरे से मुस्कुराते सर को देखती और नीना के कालेज कैसे पहुंचे पूछ रही थी कि अचानक सर ने संगीत के प्रति उनकी रुचि और संगीत विशारद की बात बताई , सर नीना की बहुत तारीफ करने लगे , और नीना की पढाई की पूरी जानकारी नीता से लेते । नीता सब बाते खुलकर बता देती , और बाहर आ जाती, नीता सर को पसंद करने लगी ऐसा नीता का मन कह रहा था, वो अपने मन को वादियों मे ले जाती और खुश रहती । यहां नीना की परीक्षा थी और वो पढाई मे लगी थी ,ना घर का काम करती ना खाना बनाती, सारा काम नीता ही करती तो शाम को थक कर कभी कभी चिड भी जाती । नीना के पेपर चल रहे थे तो वो कमरा बंद कर सब बाते अनसुनी कर देती , नीता जानती थी कि नीना बाद मे जिम्मेदारी उठा लेगी और वो घर के काम से व पैसे से उसे मुक्ति मिल जाएगी । लेकिन इंतजार लंबा हो रहा था । यहां नीता घर आए रिश्ते भी ठुकराने लगी थी , वो अभी कोई निर्णय लेना नही चाहती जब तक नीना पूरी जिम्मेदारी ना उठा ले ,भाई तो कोई रूचि ही नही लेता था, आज नीना की परीक्षा समाप्त हुई तो नीता को राहत मिली , शाम को नीता देरी से घर आती है ऑफिस मे काम निकालकर बैठी रही , शाम को सर ने नीता को छोड दिया लेकिन वो अंदर नही आए । नीता मन हल्का कर माँ से हालचाल पूछती , व भोजन कर सब सो जाते ।

सुबह सर नीता के घर आते और माँ से बात करना है कहकर बैठ जाते , माँ की तबियत ठीक नही थी फिर भी बाहर आती है सर माँ के समीप बैठ कर दोनो बेटियों की तारीफ करते , माँ का मन खुश होता कि उनकी बेटियां एक काबिल इंसान बनी है । नीता चाय लेकर आती , लेकिन मन सर की बाते व नजरें सर पर ही टिकी है , कि शायद आज सर मेरी तारीफ करेगे या सर भी मेरी ओर आकर्षित है ऐसा वो कहेंगे नीता के कान कुछ ऐसा सुनने के लिए आतुर थे ,लेकिन ऐसी कोई बात नही हुई बस आज सर ने अपना पूरा परिवार अपना जीवन की बातचीत करी । और चले गए । फिर आज अधूरी बाते हुई सोचकर नीता काम मे लग गयी, ऑफिस जाती है लेकिन सर आज फिर नही आए तो मालूम हुआ कि सर घर गए है अपने तीन दिन बाद ही लोटेगे और नीता के लिए खत रामू काका को दे गए थे । रामू काका ने खत नीता को दिया नीता खत खोलकर पढ़ती है तो उसमे ऑफिस की सारी जिम्मेदारी की बाते लिखी थी और शाम को चाबी साथ ले जाने के निर्देश भी थे , कैश की चाबी व उसका हिसाब भी लिखने के आदेश थे , यह सब देख नीता खुश तो हुई लेकिन अचानक जाना , व इतनी बडी जिम्मेदारी देना सब चौंकाने वाला था । नीता ऑफिस से देरी से निकलती सारा हिसाब एक डायरी मे लिख देती , और चाबी साथ लेकर घर पहुंचती, नीता के मन मे अनेकों विचार आ रहे थे कि कितना विश्वास है सर को मुझपर तभी इतनी बडी जिम्मेदारी दी है मुझे, नीता के मन की तरंगें उठने लगी एक कोरा जीवंत अब इन्द्रधनुषी रंगो से सजने लगा था , अब नीता और ज्यादा सज संवर कर व खुश मन से ऑफिस जाती उसे अपने मन पर विश्वास था कि सर उसे पसंद करते है तभी तो इतनी बडी जिम्मेदारी देते है । चार दिन बाद सर आज ऑफिस आते है व नीता को अंदर बुलाते है सारे काम की रिपोर्ट लेते है , तो नीता भी खर्च की डायरी तुरंत सर के सामने रख देती व सारा हिसाब भी समझा देती , और फिर बाहर आकर काम मे लग जाती । आज एक हफ्ता हो गया था सर घर से वापिस आए लेकिन कोई विशेष बात सर ने नही करी , नीता का मन तो बस उथल पुथल करता रहता कि सर घर से आने के बाद शांत है कुछ बातें नही करी । आज तो शनिवार है कल रविवार ऑफिस बंद होगा फिर भी सर कोई बात नही कर रहे, दोपहर को भी वे घर जाते लंच के लिए , अब तो नीता सोच मे पड गयी कि उसका तो मन कह रहा था कि सर को बता दूं कि वो आपको पसंद करती है लेकिन हिम्मत जुटा नही पाती । 

आज रविवार नीता देरी से उठती है अपने अलसाए शरीर को आराम देती , आज नीना का काम होता है घर की सफाई करना , सुबह सब अपने अपने काम मे लग जाते खाना बनाते , व दोपहर आराम करते , या बाजार चले जाते । 


शाम पांच बजे घर के सामने दो गाडिय़ा रूकती है और दरवाजे की घंटी बजती है , नीना अपने बिखरे केशों को संवारते हुए दरवाजा खोलती है तो सामने सर , एक सुंदर बूढी औरत के साथ खडे थे , नीना तुरंत अंदर आती और माँ व नीता को बाहर आने के लिए कहती , सर बाहर ही खडे थे ,नीता उन्हें अंदर आने को कहती सर अपनी माँ का पहले परिचय कराते फिर सोफे पर बैठते। घर की बाते होती नीता अंदर बाहर  कर रही थी नीना कमरे मे किताब पढने लगी माँ सर से बातें करने लगी । लेकिन नीता का मन बेचैन हो रहा था आज तो सर माँ को लेकर आए है , सर का विश्वास भी है ,वो मन ही भन खुश हो रही थी ,व बाते सुन रही थी , कि इतने मे माँ नीना को बाहर बुलाती है सर की माँ ने नीना को अपने पास बिठाया और उससे बाते करने लगी , नीता के दिल की धडकन तो अब तेज हो गयी क्या वो मेरी पसंद नापसंद नीना से पूछ रहे , नीता को पसीना छूटने लगा , वो ना अंदर बैठ पा रही थी ना बाहर बैठ पा रही थी ,माँ अंदर नीता से चाय व नाश्ता बनाने को कहती है , लेकिन सर स्वंय बाहर आकर दूसरी कार के डाईवर को सारा सामान निकाल कर कमरे मे रखने को कहते है , नीता यह सब देख खुशी से फूली नही समा रही थी कि आज तो सर ने उसे कितना बढा सरप्राइज दिया है , लेकिन नीना अभी भी सर की माँ के पास ही बैठी है नीता उसे इशारा भी कर रही अंदर आने का लेकिन वो नही आ रही वो गुमसुम सी बैठी है बस समय को समझ रही थी कि सर ने माँ से नीता को बाहर आने के लिए कहा नीता धीरे से बाहर आती है सर की माँ को प्रणाम करती और बैठ जाती है ,सर ने सबके सामने नीना का हाथ मांगते है बस इतना सुनते ही नीता के होश उड जाते है , फिर भी बहन की खातिर वो शांत बैठी रही , वही नीना कुछ समझ नही पा रही थी , लेकिन चेहरे पर आनंद झलक रहा था वो मुस्कुराती है और सर की माँ उसे सिर पर चुनरी डालती है व मिठाई व फल के पिटारे देती है और नीना को हाथ मे अपने कंगन पहनाती है । नीता का मन कुछ समझ ही नही पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया , आखिर सर ने नीता को बाहर बुला कर सब बाते बतायी नीता उनके सामने खुश होने का नाटक करती है । और अपने मन से लडाई करती है कि क्यो उसे इतने सपने दिखाए  नीता पूरी टूट जाती है ,  लेकिन शादी की तैयारी भी नीता को ही करनी थी , और नीता करती भी , आज विवाह है नीना का  नीना को सुदर दुल्हन के जोडे मे देख नीना खुश होती है बहन की खुशी मे नीता की खुशी है बस यही समझ नीता सब काम करती मेहमानों का स्वागत , तो सजावट , खान पान बडे ही सुन्दर ढंग से काम को अंजाम तक नीता ने पहुंचाया , आज नीना की बिदाई है , बस यही सोच नीता की ऑखे भर आती है माँ खुश भी है कि एक बेटी का विवाह हो गया लेकिन नीता को लेकर माँ चिंतित है बस समय का खेल है और नीता को भी कोई मिल जाएगा माँ इसमें ही तसल्ली कर लेती लेकिन बेटी की दुविधा माँ समझ नही पाती है , । नीना की बिदाई के बाद नीता टूट गयी , उसका दिल आज पूरा बिखर गया था जिस दिल मे नीता मन को सजा रही थी, जहां रंगीन सपनो से दिल को सजाती थी आज वही दिल कोरा हो गया था । नीता का जीवन एक *कोरा कागज* फिर बन गया था ।


पूनम मिश्रा *पूर्णिमा*


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