Pawan Mishra

Drama

5.0  

Pawan Mishra

Drama

कॉलेज वाला प्यार

कॉलेज वाला प्यार

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हाँ सहिये याद आया तैतरिया नाम था उनकर --गोरी , छरहरी काया ,मीठी मुस्कान, मीठी आवाज मानिये मने की सरोसती सवार थी उनके माथे ,उनके कठं ---इससे बेसी जो याद है मुझे वह मैं यहाँ लिख नहीं सकता ,कभी मिलिये तो जरूर बताऊंगा-----हाँ लेकिन स्टायल मारने में नम्बर एक और पढाय लिखाय में गोबर गणेश ऐतना तो खुलम्म खुल्ला कहिये सकते हैं आप सब को---

हाँ मने कि हम पगला जा रहे हैं तो तुम हमरे लिए कुछो नाय करेगा जी --भरदम रसगुल्ला और कलाकन्द मुझे खिलाने बाद मेरे सीनियर लालमुचून्द मुझसे बोल रहे थे --हाँ यह जगह था उ समय का 'कावेरी' शहर का सबसे बढियका मिठाय दुकान --! 

 बड़ी विनम्रता से जो कह पाये थे हम उनसे त कहिये ना हमको क्या करना होगा भैइया----

और रात आठ बजे हम लिख रहे थे लालमुचून्द भैया के नाम से प्यार इजहार वाला चिठ्ठी पत्री तैतरिया के वासते--!

हर दो तीन दिन बाद, मैं यह प्यार इजहार वाला चिठ्ठी पत्री लिखने लगा था और मुझे मिलने लगा था कभी आइसक्रीम तो कभी ड़ोसा ,समोसा और बढिया बढिया नाश्ता पानी ---,

हेय मायरी तोह लिख दो यार जो कहेगा तुझको देगा हम लेकिन झकास वाला चिट्ठी लिखो पढकर उछल जाये तोहर होय वाली भौजाई-----

बस फिर क्या था बड़ जतन से लिखने लगे उनकर ---हाय लीला कथा प्यार का कोई गंभीरता से पढ ले तो जरूरे कहेगा लड़का बड़ा तेज है बहुते जल्दी लाल पीला बत्ती लगलका गाड़ी पर घूमेगा इ छोहरा---, तैतरिया बड़ी किस्मत के तेज है--

राजदुत फटफटिया पर भाय बाप संग सवार तैतरिया का अइसे पिछा होता था उ लालमुचून्द भैइया द्वारा सायकल और कभी कभार बजाज फोर स्ट्राक फाटफिटया से मने कि क्या कहा जाय ठीक वैसे जैसे मिग सेभनटीन पुरनका लड़ाकु विमान से भेद दिया अमेरिकी नयका लड़ाकू विमान -----को । ठीक तैतरिया के गाड़ी का धुल देखते मने ख्याली राजकुमार , मान लेता था जीत लिये जंग --कर लिया दुनिया मुट्ठी में।

सीन देखकर ऐसे ही लगता था जैसे तेज गति से सफेद चमचमाती दौड़ती कार पर शिवपहाड़ चौक पर कुकुर भौकियाता है, हपकने के लिए उछल पड़ता है, लेकिन भरपुर असक्षम प्रयास करता था बेचारा।

आज रात सात बजे टीन बाजार चौक पर खड़े खड़े सोच ही रहा था , कि कास मै भी इस खिले गुलाब को उपहार कर दिया होता अपने जज्बात को , यह गुलाब अपने छाती में एक संकल्प कर रोप लिया होता जन्नत पाने को , अपनी मंजिल प्राप्ति को तो शायद आज दिन कुछ और होता , जिन्दगी ही गुलजार होता--!

तभी भारी भरकम झोला लिये खुब्बे मोटी सी औरत एकदम सामने रूक कर कहती है

आयं हो मतलब पहिचाने

जी नहीं तो --प्रणाम (दोनों हाथ जोड़कर) मैं कहता हूँ ।

 एक ठो बात पुछना था मने की उ चिट्ठीया सब आपही लिखते थे का , उ ल्छेदार भाषा त आज भी यादे है----- , ----!

 अरे हमहूं आप ही के साथ जायेंगी--

लेकिन मेरे गाड़ी में तो पीछे अटकन नहीं है, कहीं फेंका गयीं तो--मैंने कहा,

 अरे नाही ना गिरून्गी ,दोनों हाथे से कसकर पकड़ लूंगी !

मैंने कहा अरे अगर चिन्कुवा की मम्मी देख लेगी तो अभी अपने तीन चार फाईल पर रिसर्च कर उ रोज पूछ ताछ कर रही है अब ई नया माजरा माथे मोल लेना पड़ेगा---'मने मन सोच रहे थे तभी वो बोल पड़ी----

 अरे धत् आप वही रह गये हमरा कोनो नियत नहीं ना गड़बड़ है ,-- जो कोई कुछ बोलेगी।

बिना विलम्ब किये उ छपट कर बैठ गयी थी हमरे के टी एम मोटर सायकल के पिछले सीट पर और हम बिना देरी कर ले दु नम्बर गियर पर ही झटका मार के गाड़ी का एक्सलेटर दबा दिये।


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