कोलकाता का काली घाट मंदिर
कोलकाता का काली घाट मंदिर
माना जाता है कि कोलकाता में काली घाट की देवी की कृपा से शहर में एक भी इंसान भूखा नहीं सोता। शक्ति प्रभाव की अधिष्ठात्री देवी काली का वरदान लाखों कोलकाता वासियों पर है।
समस्त भारत-वर्ष में यह मंदिर अन्यतम स्थान रखता है। कहा जाता है, छाया सती (सती का शव) को सर पर उठाए अत्यंत क्रुद्ध शिव के तांडव नृत्य के दौरान सती के दाहिने पैर का अंगूठा इस स्थान (कालीघाट कोलकाता) पर गिरा था। भारत में 51 शक्ति पीठ हैं, जिनमें से एक कालीघाट शक्तिपीठ है। यहाँ की काली खूब जागृत हैं।
सन 1809 मंदिर में पक्की मिट्टी का काम था, जो समय के थपेड़ों के साथ नष्ट होता चला गया,पर लोगों की श्रद्धा दिनानुदिन बढ़ी ही है।
काली प्रतिमा का आधा भाग अदृश्य है, मुख मंडल काले पत्थरों से बना है, जिव्हा, हाथ और दाँत सोने से मढ़े हुए हैं, मुंड चाँदी से और गले की मुंडमाला सोने और चाँदी से निर्मित है। देवी के माथे का मुकुट सोने से और छतरी चाँदी से बनी है।
मंदिर के एक हिस्से में कई बलि वेदियाँ नजर आती हैं, जहाँ पशुओं की बलि दी जाती है, खासकर दशहरे के वक्त।
यह भी कहा जाता है कि प्रारंभ में प्रतिमा का सिर्फ मुख, आँखें और जीव्हा का निर्माण हुआ था, भुजा का निर्माण बाद में किया गया। कालीघाट की काली की खासियत उनकी सोने की विशाल जिव्हा है।
प्रत्येक वर्ष स्नान यात्रा के दिन विग्रह को स्नान कराया जाता है। पर देवी को स्नान कराते समय प्रधान पुरोहित की आँखों पर पट्टी बांध दी जाती है।
कालीघाट काली मंदिर करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र है।