कोल्हू का बैल

कोल्हू का बैल

3 mins
1.5K


बात कुछ ४०-४५ साल पुरानी है जब मैं चौथी या पांचवी क्लास में पढ़ता था। हम लोग पंजाब के एक गांव में रहते थे और जब हम स्कूल जाते थे तो रास्ते में कई खेत पड़ते थे। तब खेतों में मोटर वगैरह का कोई चलन नहीं था और खेतों को पानी देने के लिए कुँए में से बैल पानी निकालते थे।

हम हर रोज बैल को पानी निकालते हुए देखते थे। जब बैल चलता था तो खाली डिब्बे नीचे की और जाते थे और पानी भर भर के ऊपर ले के आते थे। फिर पानी को वो एक हौदी सी में उड़ेलते थे जहाँ से पानी खेतों में जाता था।

बैल के पास ही एक लड़का बैठा होता था जो या तो खेत के मालिक का बेटा था या उसका नौकर। उसका बस ये काम था के जब भी बैल गोल गोल घूमते-घूमते रूक जाये तो उसे छड़ी से मार कर फिर से चला दो।

एक दिन हमने देखा कि वो लड़का वहां नहीं है और बैल भी लगातार चल रहा है। जब हमने ध्यान से देखा तो पाया कि बैल की गर्दन से ऊपर की तरफ एक छड़ी बंधी है और उस से कुछ घास लटक रही है जो की बैल के मुँह से थोड़ी दूरी पर है। असल में बैल उस घास को खाने के लिया कोशिश करता और आगे चलता रहता पर उस तक पहुँच नहीं पाता था। हमें बैल पर बहुत तरस आ रहा था कि बेचारा कुछ घास के लिए बिना आराम किये लगातार चले जा रहा है।

मेरे पिता जी का एक छोटा सा बिज़नेस था। वो सुबह ८ बजे घर से निकल जाते थे और शाम के ८-९ बजे ही घर आते थे। जब कभी मैं उनसे पूछता के आप जल्दी घर क्यों नहीं आते तो वो कहते, ''बेटा, पैसा कमाना इतना आसान नहीं, आदमी को कोल्हू के बैल की तरह काम करना पड़ता है।''

ख़ैर वक्त के साथ हम बड़े हो गए। मैंने दसवीं के बाद मेडिकल ले लिया, पी एम टी का टेस्ट भी पास हो गया और मैं डॉक्टर बन गया। बीवी भी डॉक्टर मिल गयी और हम दोनों ने एक नर्सिंग होम खोल लिया।

नर्सिंग होम में इतना व्यस्त हो गए कि एक दूसरे के लिए कम ही वक्त निकाल पाते थे। फिर दो बेटे भी हो गए, बेटे भी घर की नौकरानी के पास ही ज्यादा रहते थे, हालांकि हम भी कोशिश करते थे के उन्हें कुछ वक्त जरूर दें। एक दिन मेरे छोटे बेटे का बर्थडे था घर में ही समारोह रखा हुआ था। सात बजे केक काटने का वक़्त था पर ज्यादा मरीज होने के कारन मैं आठ बजे ही घर पहुँच पाया, सब लोग मेरा ही इंतजार कर रहे थे। समारोह के बाद रात मैं मेरा बेटा मुझे पूछने लगा कि पापा आप मेरे जन्मदिन पर भी लेट हो गए, आप को मरीज मेरे से ज्यादा प्यारे हैं ? मुझे अपने पिता जी की वो पुरानी बात याद आ गयी कि बेटा पैसा कमाने के लिए कोल्हू का बैल बनना पड़ता है।

बेटे अब बड़े हो गए हैं, दोनों घर से दूर बड़ी-बड़ी कंपनी में नौकरी पर लग गए हैं। घर भी २-३ महीने बाद ही आना होता है। दोनों की शादी भी हो गयी है और जीवन की इस जद्दोजहद में कोल्हू के बैल की तरह जुत गए हैं। मैं और मेरी पत्नी अब अकेले रहते हैं।

जीवन के इस पड़ाव में जब अकेला बैठा होता हूँ तो सोचता हूँ कि शायद हम सभी लोग पैसा कमाने के चक्कर में कुछ हद तक उस कोल्हू के बैल की तरह अपने आराम और खुशिओं की उपेक्षा तो करते ही हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama