कोई शक़! - (लघुकथा)
कोई शक़! - (लघुकथा)
कभी जूनियर अमिताभ नाम से जाने वाले अभिनेता मिठुन चक्रवर्ती, सदाबहार महानायक माने जाने वाले अमिताभ बच्चन के साथ टेलीविज़न पर अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव और भारतीय उपचुनावों से संबंधित समाचारों को बड़े ग़ौर से देखकर आपस में चर्चा कर रहे थे। अमरीका और भारत में सड़कों पर चुनावों से संबंधित भीड़भाड़ देखकर उन्हें बड़ी हैरत हो रही थी।
"बड़ा आश्चर्य होता है कि महामारी के प्रकोप में कारगर वैक्सीन का इंतज़ार अभी चल ही रहा है... तब भी लोग गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए बिना मास्क लगाये यूँ भीड़ में नारेबाज़ी, पोस्टरबाज़ी और उछल-कूँद कर रहे हैं अपने प्रिय नेता के पक्ष में, अँय!" अमिताभ ने मिठुन के कंधे पर अपना ज़ोरदार हाथ ऐसे पटकते हुए कहा कि मिठुन अपनी कुर्सी से नीचे गिर पड़े।
"दोनों देश इन दिनों पक्के दोस्त हैं! एक दूसरे के यहाँ की बुराइयों का संक्रमण भी साफ़ नज़र आ रहा है दोनों देशों की जनता में भी!" कुर्सी पर दोबारा बैठ कर अपने ही हाथ से अपने कंधे की मालिश करते हुए मिठुन ने कहा।
"ये जनता भी कोई जनता है छोटू!" अमिताभ ने टेलीविज़न की आवाज़ धीमी करते हुए मिठुन से कहा, "ये जनता इतना भी नहीं जानती कि कब क्या फ़ैसला लेना है अपने हितार्थ! इनको... संदेशों में कितनी बार समझाया गया, फ़िर भी ये है इनका फ़ैसला! न संक्रमण से बचाव और न लोकतंत्र की रक्षा, अँय!"
"बचाव नहीं ... चुनाव है... यह जनता का अपनी फ़ितरतों वाला चुनाव है .. कोई शक़!"
"यार मिठुन! फ़ितरतों का चुनाव तो है... पर किस बात का? नेता चयन का या मनमर्ज़ी चयन का?"
"ख़ुशी का चुनाव, मस्ती का चयन, सड़क पर हो-हल्ला कर अपने टेंशन रिलीज़ करने के तरीक़ों का चयन, भड़ास... झकास... बस! कोई शक़!"
"बेशक़! जनता अपनी हक़ीक़त यूँ अनलॉक कर ही देती है!" यह कहकर अमिताभ अपने माथे पर हथेली से मालिश करने लगे। मिठुन ने लपककर रिमोट उठाया और टेलीविज़न ऑफ़ कर दिया।