Kanchan Hitesh jain

Drama

3.3  

Kanchan Hitesh jain

Drama

कमी आपके संस्कारो मे है

कमी आपके संस्कारो मे है

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"मम्मीजी आपका खाना लगा दूँ ?" रिया ने पूछा।

"बड़ी आई खाना लगाने वाली, तू कौन होती है मुझे खाना देने वाली ? ये घर मेरा है और हाथ पैर सही सलामत हैं मेरे। तेरा क्या भरोसा खाने में जहर मिलाकर दे दे। लगता है माँ बेटे का झगड़ा लगवाकर चैन नहीं मिला। उसे बुरा बनाकर खुद मेरे सामने अच्छा बनने का नाटक कर रही है। तू क्या समझती है, मैं कुछ जानती नहीं ? ये बाल धूप में सफेद नहीं किये मैंने। अच्छे से समझती हूँ मैं तुम जैसी घर तोड़ने वाली बहुओं को।"

सुषमाजी बिना रुके बोले ही जा रही थीं और रिया चुपचाप सुन रही थी, क्योंकि ये उनका रोज का नाटक था। विपुल (रिया का पति) और सुषमाजी (विपुल की माँ), लगता है माँ बेटों के बीच सुबह सुबह जब तक तकरार नहीं होती खाना हज़म नहीं होता था दोनों का। पर सब कुछ होने के बाद सुषमाजी सारा दोष अपनी बहू पर डाल देतीं।

तीन ही महीने हुए थे रिया और विपुल की शादी को। लव अरेंज थी शादी, इसलिए सुषमाजी रिया को कम पसंद करती थीं। विपुल सुषमाजी और महेश जी का इकलौता बेटा था। शादी से पहले ही विपुल ने रिया को समझा दिया था कि उसे सब मंजूर है लेकिन माता पिता से अलग होना नहीं। और शायद यही एक वजह थी कि रिया सुषमाजी के जहर से भी ज्यादा कड़वे घूंट चुपचाप सह लेती थी।

बिन माँ बाप की बेटी, मामा मामी के घर पली बड़ी रिया का हमेशा से एक ही सपना था कि उसे सास ससुर के रूप में माँ बाप मिल जाएं। ससुर तो पिता से भी बढ़कर थे, लेकिन शायद माँ का प्यार उसके नसीब में नहीं था। तीन महीने हुए थे उसकी शादी को लेकिन इन तीन महीनों में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता होगा जब सुषमाजी ने रिया को खरी खोटी न सुनाई हो। बिन माँ बाप की पली रिया हर परिस्थिति का हंस के सामना कर लेती। तकदीर ने उसे कठिन परिस्थितियों का सामना करना स्वतः ही सीखा दिया था।

रात को ऑफिस से घर लौटते ही विपुल माँ की गोद में सर रख सो गया। सर में हाथ फेरते हुए सुषमाजी ने ऐसी तीखी नजरों से रिया की ओर देखा मानो वे कह रही हों "तू चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, मेरे बेटे को मुझसे अलग नहीं कर सकती।"

रिया अच्छे से जानती थी कि चाहे वह अपनी माँ से कितना भी लड़-झगड़ ले, पर उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनेगा और इसलिए इस बारे में उससे बात करना व्यर्थ होगा। लेकिन इस समस्या का कोई न कोई हल तो निकालना होगा।

अगले दिन सुबह...

"बहू विपुल का नाश्ता लगा दे।"

रिया नाश्ता ले आई "ये क्या बहू ? नाश्ता गरम तो कर लेती, ठंडा कैसे खायेगा ? इसे तो ठंडा बिल्कुल नहीं पसंद।"

"चलेगा माँ" विपुल ने कहा।

"हाँ भाई अब तो सब चलेगा, वरना मेरे सामने तो सौ नखरे करता। पर अब बीवी के सामने एक नहीं चलती।"

"माँ आप बात का बतंगड़ बना रही हो" विपुल ने जवाब दिया और फिर शुरू हुई विपुल और सुषमा जी की बहस। उस दिन तो बात बहुत बिगड़ गई। दो घंटे तक माँ बेटा बहस करते रहे, विपुल बिना नाश्ता किये ही ऑफिस चला गया। विपुल के जाने के बाद रिया ने अपनी प्लेट लगाई और नाश्ता करने लगी।

"कैसी औरत है, पति बिना नाश्ता किये चला गया और खुद आराम से बैठ नाश्ता कर रही है ? पता नहीं क्या जादू टोना कर दिया है मेरे बेटे पर, बिन माँ बाप की जो है। मामा मामी ने तो कुछ सिखाकर भेजा नहीं, अच्छे संस्कार दिये होते तो..।"

"बस करो मम्मी जी, आप जब तक मुझपर इल्जाम लगा रही थी मैं सह गई। लेकिन अपने माता पिता (यानि मामा मामी) के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुन सकती मैं। बड़ी मुश्किलों से पाल पोसकर बड़ा किया हुआ है उन्होंने मुझे, वरना बिन माँ बाप की बेटी के लिए कौन करता है इतना कुछ?

"अगर जादू टोना ही करना होता तो सबसे पहले आपको बस में करती। और रही बात संस्कारों की, तो अगर संस्कार नहीं दिये होते तो तीन महीनों से मैं आपके बेवजह के इन इल्जामों को चुपचाप नहीं सहती। संस्कारो में शायद आपके कमी रह गई, इसलिए आप डरती हो कि आपका बेटा आपको छोड़कर ना चला जाए। पहले मैं सोचती थी शायद मैं आपको पसंद नहीं हूँ, इसलिए मुझसे नाराज हैं, समय के साथ आप मुझे अपना लेंगी। लेकिन नहीं मम्मीजी, किसी की नाराजगी तो दूर की जा सकती है, लेकिन नफरत नहीं। मैं आपको जितनी इज्ज़त देने की कोशिश कर रही हूँ, आप उतना ही मुझे नीचा दिखाती हैं।

विपुल और आपके बीच हमारे शादी से पहले भी नहीं पटती थी, लेकिन आप सब कुछ जानते हुए भी बेवजह मुझपर इल्जाम पर इल्जाम लगाये जा रही हैं। वे आपसे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी आपकी इज्ज़त करती हूँ। लेकिन ये नफरत की आग जो आपके अंदर है एक दिन सब कुछ जलाकर राख कर देगी। अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मत मारिये मम्मीजी। अंत में बस इतना कहना चाहुँगी मैं आपकी पसंद की बहू तो नहीं, पर अगर आप माँ बनकर सिर पर हाथ रख दोगी तो मैं भी बेटी बनकर सारे फर्ज निभाऊंगी। आगे आपकी मर्जी।"


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