Bhawna Kukreti

Drama Horror Fantasy

3.3  

Bhawna Kukreti

Drama Horror Fantasy

किस्मत-5 (आखिरी क़िस्त)

किस्मत-5 (आखिरी क़िस्त)

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मैंने, वो सब गहने पहने हुए थे जो इज़ाबेला के दराज़ में थे। मैने उन्हें रात की सारी बात बताई। मांजी बोली, वो शायद तुम्हे उस जगह ले जाना चाहती थी जहां उसे सबने आखिरी बार देखा था।

पता चला इज़ाबेला का रोड एक्सीडेंट के बाद एक पैर कमजोर हो गया था,और एक दिन वह गाड़ के पास खड़ी थी । उसका संतुलन बिगड़ और वो पानी में गिर गयी, उसका वहां मौजूद पत्थर पर सर लगा, वो बेहोश हो गयी और फिर...देर रात उसका शरीर सबको पानी मे उतराता मिला।

उस रात गांव में जागर हुआ। सुबह से ही आंगन में गोबर से लिपाई में मांजी और गांव की औरतें लग गईं थीं। रात में थाली एक अलग तरह से बजवाई गयी और पूरा गांव अपनी भेंट लेकर उस आंगन में अपनी अपनी जगह पर आ गया। क्या बच्चे क्या बूढ़े सबकी आस्था चरम पर थी। विभूति जी,मां जी सौकार थी । भगार और जगरिये आ चुके थे। मां जी ने आसन तैयार किया था। नगाड़े लिए दो लोग भी चले आये थे। बीच की जगह पर वे लोग थे और सब उनको घेरे हुए बैठे थे। जगरिये ने वंदना शुरू की, हुड़का बजने लगा। उनमे से एक व्यक्ति उठा और सब पर जल छिड़कने लगा। मुझ पर भी वो जल गिरा सीधा मेरे चेहरे पर,उस पानी से गौमूत्र की तेज महक मुझे लगी। मांजी बड़ी सी थाली में चांवल पैसे और धूप जला कर कंबल के ऊपर रख रही थी। वातावरण में ब्रह्मा विशनु महेश के आह्वाहन के स्वर एक लय में चलने लगे। धीरे धीरे ढोल, नगाड़ा, थाली, हुड़का सब लयबद्ध हो कर बजने लगे । जगरिया जी लोक देवी "मां....' का आह्वाहन करने लगे। उस क्षण मुझे अपने शरीर में कम्पन महसूस हुआ। नवीन जी मेरे बगल में बैठे थे मैंने उनकी बाँह कस कर पकड़ ली। मुझे लगा जैसे मेरा शरीर हल्का हो कर उड़ने लगेगा। बचकानी बात लगेगी लेकिन मैंने ये नवीन जी के कान में फुसफुसा कर कहा भी। वो अपनी आदत के अनुसार हंस पड़े । बोले, "देवी कहीं यहां ही तो अवतरित नहीं हो रही ?!" मेरा चेहरे का उड़ता रंग देख कर वे फिर बोले, "तुम्हारा ब्लड प्रेशर लो हो रहा होगा। सुबह से जबरदस्ती का व्रत कराया हुआ है तुम्हे। " फिर उन्होंने अपनी जेब से हाजमोला की दो तीन टिक्की निकाल के दीं और मेरा मुह खोल कर डाल दीं। बोले" चुप रहना, फटाफट खा लो ...मैं पानी लाता हूँ। " 

अब तक जगरिया झूमने लगे थे। उन्होंने जोर की हुंकार भरी और वे एक हाथ ऊपर कर खड़े हो नाचने लग गए। अचानक से सब शांत हो गया।  

सुबह हो चुकी थी । मैं बिस्तर पर थी। मेरे सामने मांजी, विभूति जी, गांव की दो औरतें (जिसमे एक बच्चे को गोद मे ली हुई थी), एक कोई बुजुर्ग और उनके पीछे नवीन जी डेस्क पर टेक लगाए मोबाइल पर किसी से बात करते दिखे। मुझे अपना बचपन का एक दृश्य याद हो आया। जब काफी समय बाद शहर से गांव लौटने पे अगली सुबह मेरे दगाडिया मेरे सुखपाल के चारों और मुझे घेर के खड़े थे। और यहां मेरी आँख खुलते ही मां जी बोली " सब ठीक ह्वे जालु चिंता कज कुई बात नी च! "," दीसा... म्यार बाबू खुण कुछ बतै दिया ति, कब बटी बोललु यो। " उस औरत ने मेरे सामने अपना बच्चा कर दिया। बच्चा मुझे टुकुर टुकुर देख रहा था और में उसे । मांजी ने झट से उसे पीछे किया और गढ़वाली में झिड़का। मुझे सब अजीब लग रहा था। मैंने देखा मेरे हथेली में बीच मे जलने का निशान है । अचानक से हाथ के जलन महसूस होने लगी और सारा शरीर दुखने लगा। नवीन जी फोन को जेब मे रखते हुए तुरंत मेरी तरफ बढ़े।

"मुझें ये क्या हुआ है ? ये कब ..कैसे हुआ...बहुत जलन हो रही है। " 

दोपहर को खाने पर विस्तार से सब मुझे बताया गया। मैं सोचने लगी कि क्या "किस्मत " इसलिए ही मुझे यहां लेकर आई थी ? 

संक्षेप में,नवीन जी के जाने के बाद जगरिया ने मुझे इशारा करके अपने पास बुलाया और मेरे उसके पैर छूते ही " होsss होss ...मेरी दीसा ऐ गैsss ..."कह कर वह जोर जोर से मेरे हाथ पकड़ कर झूमने लगा था। उसने मुझे अपने पीठ पर बच्चे की तरह बैठा लिया और घोड़े की तरह कूद कर वहां पूरा एक चक्कर घूमा और फिर गिर गया, मैं भी साथ के साथ अजीब तरह से गिरी। तभी दूसरा भी चीत्कार करता हुआ वहीँ लोटने लगा। और मैं चुपचाप उठ कर सिद्धासन में बैठ गयी। जो गिर गया था वो उठा और उसने जलती धूप का गोला मेरी हथेलियों पर रख दिया। मांजी ने बताया कि मैं तब भी शांत रही ।  

लेकिन, नवीन जी ने तुरंत आकर मेरे हाथों से धूप के गोले गिराए। लेकिन उस जगरिया ने नवीन जी पर बहुत क्रोध किया। कहा कि वो नहीं जानते कि वे किसके स्वामी होने का भरम पाले हैं। नवीन जी भी भिड़ गए थे। वो मुझे वहां से उठाने लगे लेकिन नवीन जी ने बताया की मेरा वजन इतना ज्यादा हो गया था थी उनसे मुझें उठाते न बना। विभूति जी ने आकर नवीन जी को आश्वस्त किया कि ये विशेष पूजा है। मेरे लिए ही हो रही है। उसमें बाधा न बनू। धीरे धीरे जो देवी आयी थीं वे सारे भेद खोलने लगी। उनके कहे अनुसार मुझमे पूर्व जन्म के प्रभाव से नागलोक की (!!) दिव्यता मौजूद थी। जिसे मेरे परिवार ने बचपन मे ही शांत करवा दी थी। मैं लोगों को देखते ही उनके जीवन मे घटित होने वाली अनहोनी को बता देती थी। पहले नन्ही बच्ची है समझ कर लोग टाल जाते थे। लेकिन बाद में ये गंभीर होने लगा। तब मेरे भविष्य की चिंता में मेरे उस दिव्य आभास को "बांध" दिया गया था। लेकिन मेरे कुछ समय पूर्व ये किसी विशेष वन स्थल में जाने के कारण, वह "बंध " दैव योग से स्वतः खुल गया । बाकी मुझे यहां तक पहुँचाने के लिए ही मेरे शरीर मे कष्ट बढ़ रहे थे।  

 मगर नवीन जी को जो बात बेहद नागवार लगी वो ये थी कि मेरा विवाह निषेध करना चाहिए था और मुझें साध्वी बना कर किसी मंदिर को दान में दे देना चाहिए था।

 बहरहाल,उसी दोपहर नवीन जी और हम अपने घर की ओर लौट आये।

लौटते समय मांजी ने पूछा " वो कब लौटेगा?", मुझें कुछ कहने को सूझा ही नहीं। बस सर में तेज दर्द उठा और पहाड़ से नीचे को आती उफनती नदी और उसकी बहुत ऊंची लहर का दृश्य दिमाग मे कौंध गया। और एक लम्बा तगड़ा अधेड़ ढेर सारी गाद के नीचे...मेरी आँखों से आंसू निकल गए। मेरे आंसू देख कर मां जी ने मुझें कस के गले लगा लिया। बोलीं " रेsss दीसा" और वे मेरे पैर छू कर घर के अंदर चली गईं।  

  रास्ते मे विभूति जी ने बताया कि उनके भाई की मृत्यु की खबर उन्होंने अभी तक मां को नहीं बताई थी, वे हाल ही में उत्तराखंड में आई आपदा की भेंट चढ़ गए थे। मरने से कुछ दिन पहले उन्होंने उनसे संपर्क किया था और कहा था कि अब वो वापस लौटना चाहते हैं मगर किस्मत ...उसको कुछ और ही मंजूर था।


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