किसको दोष दें?

किसको दोष दें?

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सुबह उठते ही रोमी ने चादर उतार कर एक तरफ की और मम्मी आवाज लगाता हुआ रसोई की तरफ गया,


"मम्मी मेंरी चप्पल नहीं मिल रही"।


“अच्छा, अभी देती हूँ” और शीना उसकी चप्पल ढूंढने लग गई। उसे पता था कि किचन में कितना काम पड़ा था।


जैसे ही चप्पल दे कर हाथ धोकर किचन में पहुंची तभी, “मम्मी तौलिया कहाँ है?” आधा काम छोड़कर उसको देने के लिए गयी फिर वहाँ पर ही उसने उसकी यूनिफॉर्म, मौजे, रूमाल सब रख दिये। थोड़ी देर में फिर आवाज लगाएगा। आदतें तो शीना की ही बिगाड़ी हुईं थीं।


वो तो अपने पति सुमित को भी हाथ में सामान देती थी। सामने पड़ा सामान कभी दिखाई ही नहीं दिया उन्हें। जो सुमित की मम्मी यानी शीना की सास ने नहीं सिखाया था, वही शीना कर रही थी। रात को ही पॉलिश करके शूज रख देती थी। सुबह उसको फुर्सत ही नहीं मिलती थी। उसकी रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ती और उन दोनों के जाने के बाद धम्म से सीधे सोफे पर बैठती। दोनों एक गिलास पानी भी नहीं लेते थे। खाने की फरमाइशों की झड़ी लगा देते और शीना को काम में समय का पता ही नहीं चलता।


समय बीत रहा था उम्र के साथ शीना को भी थकान होने लगी। कामवाली लगा ली थी पर बर्तन धोकर जाती उसके बाद भी बहुत काम हो जाता। सुमित और रोमी तो शीना पर अब तक र्निभर थे। रोमी बड़ा हो गया और घर में शीना की बहु सायरा भी आ गयी। रोमी की कम्पनी में ही थी क्योंकि वो भी नौकरी पर थी तो शीना जितना काम की उम्मीद करना बेकार था।


सुबह शीना अब दो की जगह तीन का टिफिन लगाने लगी। कमर का दर्द बढ़ गया था शीना का। सब सुबह जाते, ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन थी पर कपड़े डालना, सुखाना, तय बनाना तो करना ही था। दूध उबालने रख देती। तब फ्रिज में पानी की बोतलें भरती, अपने और सुमित के लिये घड़े को भरना होता। इतने खाना बनाने का समय हो जाता। थकान बढ़ने लगी।


सुमित ने छोटे कामों में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। एक दिन जब बुखार में तपती शीना को काम करते देखा तो सुमित को दुख हुआ। लेकिन रोमी और सायरा को जरा भी दुख नहीं था। सुमित ने रोमी और सायरा को कह दिया कि टिफिन और कपड़े अब शीना नहीं कर पायेगी।


तब रोमी ने सायरा के बोलने से पहले ही कह दिया-“पापा, सायरा से उम्मीद मत करना वो थक जाती है। मम्मी टिफिन हम दोनों को मत देना हम लंच कैन्टीन में कर लेंगे। कपड़े हम शनिवार, इतवार को धो लेगें”


दोनों बाहर खा लेते, कभी देर से आते, सुबह जल्दी चले जाते नौकरी पर। छुट्टी पर दोनों का दोस्तों के साथ बाहर का प्लान होता। गलती तो शीना सुमित अपनी मान रहे थे कि काश लाड़-प्यार में बिगाड दिया था, वो इतने बेपरवाह हो चुके हैं कि मम्मी-पापा का दुख दिखता ही नहीं था। बात करे हुये भी सुमित, शीना से बहुत दिन हो जाते।


लेकिन एक दिन, “माँ आज शाम को आप और पापा तैयार रहना आज बाहर खाने जायेंगे”


मन में प्रश्नों की झड़ी लग गयी आज अचानक कैसे हमारे साथ? सुमित ने तो शीना से साफ मना कर दिया और कहा कि कभी दो मिनट आकर नहीं बैठते दोनों, जैसे हम घर में हैं ही नहीं। शीना ने फिर भी बेटा नाराज ना हो सुमित को मना ही लिया।


शाम को चारों होटल आये। तो सायरा ने कहा, “रोमी तुमने मम्मी-पापा को बताया नहीं”


रोमी ने कहा “तुम ही बता दो”


सायरा खुशी से चहकती बोली, “पापा हम दोनों पेरिस जाएंगे। हमने ट्रांसफर ले लिया। अगले महीनें जाना है। हम दोनों का सपना था बाहर जाने का”


शीना, सुमित की आँखें छलक गयीं। पर गिरते आँसु रोक नहीं पाये।


रोमी बोला, “मम्मी हैं ना खुशी की बात! सोचा घर में मजा नहीं आयेगा बताने का”

“पर हम...” ( इतना ही बोला शीना ने शायद वो कहना चाह रही थी कि हम तो वहाँ कैसे रहेंगे)


“हाँ मम्मी, मैं भी आपकी ही बात कहने वाला था हम आते रहेगें, बुला भी लेंगे”


सुमित मन में सोचने लगा, “मम्मी का मन रखने को ही सही, साथ ले जाने कि बात तो करता हम से”


दोनों चले गये अगले महीनें।


फोन पर कभी बात होती तो बेटा कहता “माँ आपके हाथ का बना साग और कढ़ी खाने का मन कर रहा है”


साल में आये एक बार तो एक दिन घर का बना खाना खाया। बाहर ही दोस्तों के साथ घूमते रहे। भारत बहुत दिनों में आये थे। तब मम्मी के बने हाथ के खाने का ध्यान भी नहीं आया।


शीना, सुमित मन को दुखी करके रह गये। रोमी के बेटी हुई। खुशी के मारे शीना ने मिठाई बाँटी आस-पड़ोस में, कीर्तन कराया। सायरा के मम्मी, पापा गये थे। डिलीवरी के समय दस दिन में ही आ गये। जब वो वापस आ गये तो रोमी ने बुला लिया शीना और सुमित को।


बच्ची के प्यार में दौड़े चले गये विदेश। सारा घर सँभाल लिया था शीना ने। सायरा को लडडु, पंजीरी, दलिया, हरीरा, ना जाने कितना बना कर खिलाती थी शीना। काफी समय बाद नौकरी पर सायरा भी जाने लगी। रोमी और सायरा नौकरी पर जाते तो शीना, सुमित घर और बच्ची का ध्यान रखती। दोनों बस एक बार घुमाने ले गये थे। फिर तो ऐसे ही हो गया जैसे भारत में रहते थे। बात करने का समय ही नहीं था।


एक दिन सुमित रात को बाहर पानी लेने उठा तो रोमी और सायरा की आवाज आ रही थी। चलो मम्मी “पापा आ गये अच्छा रहा। आया भी मिलती नहीं यहाँ। अगर, खाना बनाने वाली, बच्ची सम्भालने वाली रखते तो महँगा बहुत पड़ता। जब तक बच्ची बड़ी नहीं होती तब तक रखेंगे”


सुमित के पैर कांपने लगे... बड़ी मुश्किल से संभला। और जोर से रोमी को आवाज लगाई। रोमी, सायरा, बाहर आ गये।


“क्या हुआ पापा?”


“निर्दयी हो गया रोमी। नौकर बना कर लाया” गुस्से से चेहरा गर्म हो गया। तेरी मम्मी खुशी में ये सब कर रही थीं पर शरीर तो जवाब दे रहा था। पर एक पल भी माँ पर तरस नहीं आया।


वहीं दूसरी तरफ शीना सोचने लगी इतनी देर हो गयी। ऐसे में शीना बाहर सुमित को देखने आई। लेकिन वो सब सुन चुकी थी। लेकिन ना सुनने का नाटक करने लगी। सुमित ने कहा, “सुना शीना तुमने?”


शीना ने अंदर चलने को कहा, कोई भाव नहीं था। सुमित बोला “कोई भाव नहीं चेहरे पर तुम्हारे, इसका मतलब सब जानती थीं तुम”


शीना रो रही थी, “हाँ जब आये थे तभी सायरा को सहेलियों से फोन पर बात करते सुन लिया था”


“बताया क्यों नहीं?” जोर से बोला था सुमित। “इस बच्ची की वजह से उसको जरूरत थी और गलती मेरी थी। सिर चढ़ा कर रखा था बचपन में। उसने कद्र ही नहीं की शुरू से ही। मेरी गलती की सजा मुझे ही तो मिलेगी”


सुमित ने कहा, “सामान बाँधो मैं टिकट कराता हूँ। जिन बच्चों को माँ-बाप की जरूरत नहीं हमें भी उनकी जरूरत नहीं”


रोमी और सायरा सिर झुकाये खड़े थे, “माफ कर दो मम्मी। हमारा...वो मतलब नहीं था”


सुमित ने बस कहा, “एक बेटा हुआ वो भी निर्दयी। एक बहु लाये थे बेटी बनाकर रखा था। सुना था बेटियों में ममता होती है पर कभी मिली नहीं। हम तो माँ-बाप बने पर तुम बच्चे नहीं बन पाये”


सुमित ये कहकर शीना का हाथ पकड़े कमरे में आ गया। गलती माँ-बाप की ही थी। काश... बचपन में डांटा होता, समझाया होता, तो ऐसा ना होता। थोड़ी तो ममता होती बेटे में। बहुत लड़कों को ममता कम होती है, पर लड़कियों में तो होती है। जहाँ माँ-बाप बहू नहीं बेटी समझते हो वहाँ भी एडजेस्ट नहीं होते बच्चे।


बच्चों को आजकल घर का काम करने में बेइज्जती होती है। लड़कियाँ ये बताने में भी शर्म महसूस करती हैं कि वो रोटी बना रही थी या रसोई के काम में थीं। उन्हें ये नहीं पता घर का काम करना, माता-पिता का ध्यान रखना, उनकी भावनाओं को समझना कितना जरूरी है। उनको प्यार और समय चाहिये।


आजकल बच्चों में प्यार नहीं रहा। वो इसे जेनरेशन गेप समझते हैं। कुछ गलती माता-पिता की भी होती है। वो भी बच्चों को जब समझाने, डाँटने का समय होता है तब वो नहीं करते। उन्हें छोटे-छोटे काम खुद करने कि आदत डालें। अपने ऊपर पूरी तरह निर्भर नहीं होने दें। एक समय साथ खाना खाने का नियम बनायें। छोटी-छोटी बातें हैं जो संस्कार बचपन से बच्चो में दिये जाते हैं। 


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