Namrata Pandey

Inspirational

4.2  

Namrata Pandey

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किसान- मेरा गांव मेरा देश

किसान- मेरा गांव मेरा देश

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गजेंद्र का एक ही सपना था, अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा अफसर बनाना।खेती-बाड़ी में क्या रखा है कभी बाढ़ कभी सूखा। हर समय कोई ना कोई चिंता लगी रहती है।

उसने खुद तो जैसे तैसे अपनी जिंदगी काट ली पर अपने बेटे को खेती-बाड़ी में नहीं झोंकेगा।उसने खुद तो जीवन भर मेहनत की। न दिन को दिन समझा न रात को रात। हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद भी जैसे तैसे गुजारा हो पाता था।

परिवार छोटा था तो जैसे तैसे जिंदगी कट रही थी पर अब और नहीं,उसने सोचा। अपने बेटे को तो वह बड़ा अफसर बनाकर ही रहेगा।

गजेंद्र का बेटा विवेक भी पढ़ाई लिखाई में बहुत अच्छा था हर साल कक्षा में अव्वल आता था। उसने जीवन भर गजेंद्र और अपनी मां को खेतों में ही खटते देखा था।गजेंद्र ही क्या आसपास के सभी किसान खेतों में जी तोड़ मेहनत करते थे। 

12वीं कक्षा में आते आते,विवेक काफी समझदार हो गया था और उसने सोच रखा था कि वह पढ़ लिखकर अपने गांव को एक खुशहाल गांव बनाएगा। गांव के लोग भी तरक्की करेंगे ऐसा सपना वह देखने लगा था। पर पिता के सामने उसने कभी अपनी इच्छा नहीं बतायी क्योंकि वह जानता था कि पिताजी अपने जीवन में जो नहीं प्राप्त कर पाए, अपने बेटे को उन सब से वंचित नहीं रखना चाहते थे।

विवेक अपने पिता से बहुत प्यार करता था और उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था। इस प्रकार पिता और बेटे के सपने अलग थे। जहां गजेंद्र चाहता था, विवेक शहर जाकर बड़ा अफसर बने, वही विवेक चाहता था, वह पढ़ लिखकर अपने गांव का नाम रोशन करें। पर इन दोनों ही सपनों को पूरा करने के लिए एक बात समान थी, कि विवेक उच्च शिक्षा प्राप्त करें।

12वीं की परीक्षा में विवेक बहुत अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हुआ और अपने विद्यालय में पहला स्थान प्राप्त किया और आगे उसने एग्रीकल्चर से बीएससी करने का फैसला किया और चंद्र शेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। यहां भी उसकी मेहनत रंग लाई। यहां भी वह अव्वल रहा और उसे दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति महोदय ने स्वर्ण पदक से सम्मानित किया पर अभी विवेक की मंजिल बहुत दूर थी। 

उसने कृषि में शोध कार्य के लिए अपना नामांकन कराया और लंदन यूनिवर्सिटी ने उसे शोध के लिए आमंत्रित किया शोध कार्य के दौरान उसके सहपाठी तथा प्रोफेसर उसकी काबिलियत का लोहा मान गए। विदेशियों के बीच में वह भारतीय हुनर का लोहा मनवाने में कामयाब रहा। अब तो उसके लिए नौकरियों की लाइन लग गई थी।सभी अच्छी कंपनियां उसे अपने यहां नौकरी देकर मुंह मांगी तनख्वाह देने के लिए तैयार थे, पर अब तो वह दिन आया था जब विवेक को अपना सपना पूरा करना था। वह जानता था कि पिताजी भी उसके इस फैसले पर बहुत खुश होंगे,वह यह भी जानता था कि पिताजी सिर्फ उसकी खुशी की वजह से उसे खेती नहीं करने देना चाहते थे पर साथ ही साथ वह यह भी जानता था कि पिताजी की जान उनके खेतों में बसती है पर भारत में कृषि की जो समस्याएं हैं उन्हें देखते ही वे अपने बेटे को उन समस्याओं से दूर रखना चाहते थे।

रोज की तरह गजेंद्र अपने खेतों पर काम कर रहे थे।जब से विवेक लंदन गया था, गजेंद्र अपने खेत पर थोड़ा बहुत जो भी उगा पाते थे उसी में संतोष कर लेते थे।खेतों में उनकी और उनकी पत्नी के भरण पोषण लायक पैदावार हो जाती थी।

वो खुश थे कि विवेक विदेश में आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहा है। फोन पर कभी-कभी विवेक से बात हो जाती थी। विवेक ने उन्हें कभी भी अपने मन की बात नहीं बताई थी वह तो उन्हें एक बहुत बड़ा सरप्राइस देना चाहता था। खेत पर काम करते हुए उन्हें किसी ने आवाज दी, पिताजी.....उन्होंने चौक कर देखा, अरे विवेक और यहां। वह लंदन से कब आया। सब काम छोड़ कर वे भाग कर विवेक के पास गए। विवेक ने उनके पैर छुए। गजेंद्र ने उसे सीने से लगा लिया। वो बोले, छुट्टी लेकर आया है क्या? विवेक बोला नहीं पिताजी छुट्टी लेकर नहीं आया बल्कि उन्हें छुट्टी दे कर आया हूं और हंस पड़ा।

गजेंद्र आश्चर्य से विवेक की ओर देखने लगे। आज विवेक ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताया, जो सपना उसने बचपन से देखा था।जब वह पिताजी को कड़ी धूप में खेतों पर काम करते हुए देखता था तो पिताजी उसे अपने सुपर हीरो जैसे दिखते थे। विवेक ने बताया, पिताजी मैं हमेशा ही आपके जैसा ही बनना चाहता था और अब मैं आपके जैसा ही बनूंगा।

गजेंद्र बोले, अरे पागल हो गया है क्या। इतना पढ़ लिखकर गांव में खेती करेगा।विवेक बोला,क्यों क्या पढ़े लिखे लोग खेती नहीं कर सकते।मैं खुद तो खेती करूंगा ही और साथ ही गांव के जो लोग गांव से पलायन कर रहे हैं उन्हें भी अपने साथ जोड़ूंगा और फिर देखिएगा, जब यह खेत सोना उगलेंगे।

इतने सालों में मैंने जो मेहनत की है,अब उस मेहनत का फल मिलने वाला है।अब देखियेगा आप और मैं मिलकर अपने गांव की काया पलट देंगे।विदेशों में मैंने कृषि की नई नई तकनीक, बीज, फसलों की नई नई प्रजातियां,सिंचाई की नई तकनीक सब कुछ सीखा है। पिता जी आपने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बारे में तो सुना ही होगा। यह एक तकनीक है जिससे वर्षा के दिनों में जो पानी जगह-जगह भर जाता है, नदी नालों में बहकर बर्बाद होता है, उस पानी को हम एकत्रित करेंगे। जमीन के नीचे टैंकर बनाकर उस पानी को इकट्ठा किया जाएगा और पूरे साल जब भी पानी की आवश्यकता हो तो हम उसका उपयोग अपने खेतों तथा अन्य जरूरतों के लिए कर सकते है। इससे भूगर्भ जल का स्तर भी बढ़ेगा। इस तरह ना जाने कितनी ही तकनीकें मैं विदेश से सीख कर आया हूं और वहां तो हमें यह भी बताया गया कि संसाधनों के मामले में कोई भी देश भारत का मुकाबला नहीं कर सकता है। बस जरूरत है हमें उन संसाधनों के सही इस्तेमाल का तरीका पता होने की। अब यही तकनीक हम जनमानस तक पहुंचायेंगे। मेरे कई दोस्त भी जरूरत पड़ने पर यहां गांव में आकर गांव के लोगों को यह सभी तकनीकें सिखाएंगे।अब मैं अपने गांव को स्वर्ग बना दूंगा और गांव में रहने वाले मेरे संगी साथी सभी को समुचित रोजगार मिलेगा। जिनके पास खेत हैं उन्हें खेती के नए तरीके पता चलेंगे और जिनके पास खेत नहीं है, जो शहर में जाकर मजदूरी करते हैं, उन सभी को अब अपने गांव में ही रोजगार मिलेगा।

अब हम अपनी फसल को भी अपने तरीके से बेच सकेंगे इन सभी में हमारा साथ देंगी सरकार द्वारा चलाई जा रही ग्रामीण योजनाएं। जिनके बारे में हमें पता तो था लेकिन हम कभी उसका सही फायदा नहीं उठा पाए।क्योंकि हम पढ़े-लिखे नहीं थे। पिताजी आपने मुझे पढ़ा कर सिर्फ मेरा भविष्य ही नहीं उज्जवल किया है बल्कि हमारे पूरे गांव का भविष्य उज्जवल किया और मैं चाहता हूं कि अब हमारे गांव में कोई भी बच्चा अनपढ़ न रहे और इसीलिए मैं विदेश में नौकरी करके सिर्फ अपना फायदा नहीं कर सकता बल्कि मुझे आपके साथ मिलकर पूरे गांव का फायदा करना है।

गजेंद्र की आंखें खुशी से चमक उठी। वह विवेक को लेकर घर वापस आ रहे था ताकि विवेक की मां को भी सरप्राइस दे सकें। घर लौटते वक्त पिता और पुत्र दोनों गा रहे थे - मेरे देश की धरती.....मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती,मेरे देश की धरती......। 


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