आत्मा की शांति
आत्मा की शांति
आज पिताजी का श्राद्ध है। भाभी ने 1 किलो ठग्गू के लड्डू और पशमीना का शॉल पंडित जी को देने के लिए मंगवाया है। यह वही भाभी है, जो पिताजी की बीमारी के समय दो दिन अस्पताल में नहीं रुक पाई। भैया भी अपने बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर चले गए थे। तब मैंने और माँ ने जैसे तैसे किसी भी तरह अस्पताल और घर को संभाला था। पिताजी को ठग्गू के लड्डू बहुत पसंद थे। वे जब भी कानपुर जाते तो वहां से ठग्गू के लड्डू ज़रूर लाते।
भैया भी जब पिछले साल कानपुर गए तो पिताजी ने उनसे लड्डू लाने के लिए कहा, लेकिन भैया ने व्यस्तता का बहाना करके लड्डू लाने की बात टाल दी। और रही बात पशमीना के शॉल की, तो पिताजी का देहांत सर्दियों में हुआ था, इसलिए भाभी का मानना था कि यदि पंडित जी को पशमीना का शॉल उपहार में दिया जाएगा तो पिताजी की आत्मा को शांति मिलेगी। जीते जी भाभी पिताजी के लिए कभी कुछ लाई हो, ऐसा मुझे याद नहीं।
चलो ,श्राद्ध के बहाने ही सही भैया भाभी ने पिताजी के लिए कुछ तो किया। हां, यदि यह सब वे पिताजी के जीते जी करते तो उनकी आत्मा को ज्यादा शांति मिलती।