Laraib Khan

Abstract

4.6  

Laraib Khan

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कीमत

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"कैसे हुई क्या मतलब मांँ बाप ने कर दी शादी " भाभी ने एक सर्द लेते हुए बताया

"लेकिन वो तो, सोना ने बोलने के लिए मुँह खोला ही के

" लेकिन वेकिन कुछ नहीं बेटा अच्छी बेटियां एसी ही होती है" भाभी ने नरमी से कहा

भाभी ने एक नज़र उसे देखा और हांडी में तेज तेज हाथ चलाने लगीं कुछ पल रूकी फिर कहना शूरू किया 

"किरण की बड़ी बहन के शादी के लिए राहिल के बाप से एक लाख रूपे लिए थे जो उनहोंने कुछ दिनों के बाद देने का वादा किया था मगर किरण के इकलौते भाई ने बाहर ही शादी कर ली और घर पर एक पैसा न देता , घर के हालात बद बदतर हो गए राहिल के बाप ने रकम मांगनी शूरू किया "या रकम दे या फिर किरण से राहिल की शादी करे " बेचारे मांँ बाप क्या करते एक गई न थी के दूसरी सर पे थी ऊपर से कर्जा वो भी भारी किरण सादगी से राहिल के घर की हो गई रकम भी निपट गई और बेटी भी दोनो का बोझ उतर गया " भाभी ने चूल्हा बंद किया और बातें भी ;

सोना ने सलाद के कटे पलेट को किनारा किया और टेबल लगा ने के लिए बाहर निकल आई

"किरण की शादी छोटे भाई से करने का कितना मन था सब घर वालों को लेकिन मांँ ने साफ मना कर दिया कि उसकी चाची ने मांँग रखा है फिर हमें क्या जरुरत है रिश्ता देने की, मेरे बेटे के लिए लड़की की कमी है क्या" सोना सोच रही थी "कितना अच्छा होता छोटे भाई की शादी किरण से होती ,

" भाभी तो जैसे भाई को ले उड़ी थी"

इस बार मांँ कि पसंद नाकाम रही और यही गम मांँ के लिए कम न था, सब ने खाना खाना लिया और अपने अपने कमरे का रुख किय सोना मांँ के कमरे में आ गई कुछ देर इधर उधर की बातें की फिर बोली "मांँ मुझे किरण से मिलना है आप भी मेरे सगं चले ना"

"नहीं बेटा मेरे घुटने में दर्द है, तू शाम को जाके मिल आना" 

"किस्मत की बात है न मुझे अच्छी बहु मिली और न उसे अच्छा पत्ति " इस ने सिर उठा कर देखा मांँ के चेहरे पर अफसोस ही अफसोस नजर आया 

साल भर की गुड़िया को गोद में उठाया वो किरण के घर जा बैठी, शाम ढ़कना को अभी समय था चारपाई पर बैठी हाथ मे चाय का कप के लिए वो किरण के साथ साथ घर का भी जायजा ले रही थी किरण जैसा घर की भी हालत खराब थी। 

पहले किरण कितनी खूबसूरत थी, सुनेहरा रंग बड़ी बड़ी काली आँखें ,लम्बे घने बाल और चमकते गालों में पड़ने वाले डिमपल का भवँर यूँ कहो चलती फिरती खुशबू हुआ करती थी| लेकिन जो सामने बैठी है वो तो हड्डीयों का ढांचा है बिखरे बाल, धूप में जला रंग, आँखों की लो मध्धम, डिमपल तो शायद अभी भी हो लेकिन गालों की चमक कहीं गुम हो गई थी|

खपरेल घर की हालत खराब नज़र आई, कच्चे आगंन जहां देखो मिट्टी मिट्टी, चापाकल के पास का पक्के भी उखड़े थे सोना अभी चारो ओर नज़र दौड़ा दौड़ा कर देख रही थी तभी " ध ध ड़ा म म "से दरवाजा खुलने की आवज आई

"किरण ऐ किरण कहां है मर गई क्या, पानी ला" लरखड़ाती आवज पर सोना ने गर्दन मोड़ के देखा, पतला दुबला नशे मे हिलता डुलता सामने राहिल ने अपने बच्चे को खड़े खड़े एक लात मारा और एक गदीं गाली दी और वहीं पे रखी दूसरी चारपाई पर ढे गया । किरण चुप चाप उसे देखती रही जैसे कुछ हुआ ही नही 

"रर हि ल ल ऐसे ही करता है रोज" सोना हिचकीचाते हुए पूछ ही ली ।

"छोड़ो ये सब ,ये तो होता ही रहता है तुम अपना बताओ" उसने टालते हुए कहा

"तुमहारे मांँ- बाप शादी के लिए कैसे तैयार हुए" सोना ने आखिर पूछ ही लिया।


" तैयार क्या होना, मेरे पिता को कर्ज उतारन था, रहिल के बाप को घर चलाने के लिए और ये सब बर्दाशत करने के लिए बहु चाहिए थी बस हो गई शादी " किरण के होंटों पे दर्द भरी मुस्कुराहट आई| " यही दो बेटे है, बेटी नहीं है " " अच्छा ही है बेटी नहीं है, बेटी होने की बड़ी कीमत अदा करनी होती है " उसके आँखों में आँसू तैरने लगे| बस यही आँसू उसकी दासतान ब्यान करने को काफी थे| मेरे बदन में सनसनी होने लगी, किरण और भी बहुत कुछ कह रही थी लेकिन मेरे कानों में बस एक ही बात गूँज रही थी| "बेटी होने की क्या सच में बड़ी कीमत अदा करनी होती है? " 

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