कहकशां
कहकशां
'कहकशां, कौन हो तुम? कौन जानता है तुम्हें मेरे सिवा । मैने तुम्हें कितना चाहा यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है। कौन जानता है कि तुममे मेरी रूह बसती है । तुम मेरी हसरतों की दुनिया हो। तुम मेरा पहला प्यार हो। तुम तब से मेरे हसीन ख्वाबों का अटूट हिस्सा हो जबसे मैने अपने वजूद को जाना, अपने वजूद के लिए तुम्हारी जरूरत महसूस की। अभी मैं कमसिन ही तो था....
और यह कोई नई बात नहीं थी । न कोई अजीब बात । मैने तो बहुत मुहब्बत से तुम्हारी तामीर की। तुम्हारा निर्माण किया। तुम्हारी एक एक ईंट से मुहब्बत की । एक एक कोने को तराशा । और कितनी मुहब्बत से तुम्हे नाम दिया, कहकशां। तुम सिर्फ एक बेजान मकान तो नहीं मेरे लिए। तुम्हारे एक एक जर्रे में निहा है मेरे हाथों का मुहब्बत भरा स्पर्श । और यह कोई अजीब बात तो नही है। अजीब बात तो यह है कि यह सब मैने सिर्फ ख्वाबों में किया। जिंदगी की जद्दोजहद में
वक्त ही कहाँ मिला। और अब तो जिंदगी के लिए भी वक्त कितना बचा।
कहकशां, तुम्हारे बगैर मैंने कितने धक्के खाये। कितनी रुसवाइयों से दो चार हुआ। लोग मुझे हारा हुआ समझते हैं ....लेकिन मैं हारा नहीं हूं। वक्त अब भी है। हां, मैं अब भी साबित कर सकता हूं, तुम्हारे वजूद को। और कोई वहाँ से मुझे नही कहेगा मकान खाली करने को। मैं हमेशा साथ रहूंगा तुम्हारे। मेरा अपना मकान होगा।'
इतना लिखकर उसने डायरी बन्द की, और हिफाज़त से शेल्फ में रख दी। दराज़ से लेटरपैड निकाला और....
अगले दिन के अखबारों में एक छोटी सी खबर थी। एक शख्स ने पंखे से फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। वजह नामालूम। कारण अज्ञात। उसकी जेब से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ जिसमें लिखा था- "कुछ पैसे छोड़ जा रहा हूँ। इससे मेरे मदफ़न के अलावा मेरी कब्र पर संगेमरमर का एक बड़ा सा पत्थर लगाया जाए, जिसपर बड़े बड़े हर्फों में लिखा हो- कहकशां।"