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Mirza Hafiz Baig

Drama

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Mirza Hafiz Baig

Drama

बकरे की अम्मा

बकरे की अम्मा

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बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाती।

जब वे आ पहुँचे तो बकरे की अम्मा रोने लगी, "देखिये आराम से। ज़्यादा तकलीफ न हो। बड़े नाज़ों से पाला है...."

"आप चिंता न करें मैडम ! हम किसी पर जुल्म नहीं करते। फिर हमारी व्यवस्था भी पूरी तरह लोकतांत्रिक है। हम अपने बकरों को भी मताधिकार देते हैं। हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं..."


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