Shubham rawat

Drama Tragedy

4.5  

Shubham rawat

Drama Tragedy

खिड़की

खिड़की

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सूरज की किरणे खिड़की से होते हुऐ ललित के गालो में पड़ी। उसने खिड़की की तरफ देखा। समय ५.५०मिनट हो रहा था। दिन-प्रति-दिन सूरज जल्दी आने लगा था पर ललित को इस से कोई फरक नहीं पड़ता। वो खिड़की से नीजे को झांकता है और देखता है की जमादार गली के एक झोर से छाड़ू लगाते-लगाते आ रही है और एक लड़की हाथ में कॉपी पकड़ कर सायद अपने ट्यूशन को जा रही है। वही कुछ लड़के सायद दौड़ लगा कर अपने घर को वापस लौट रहे है। पर ललित को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता।

नाश्ता उसके लिए उसके पास ही आ जाता है। नास्ता करने के बाद वो पुरे दिन किताबे पड़ता टिवी देकता और जब इन सब से भी मन भर जाता तो फिर से उस खिड़की के पास आ जाता और देखता की अब गली में क्या हो रहा है। कितने लोग उस गली से गुजर रहे है। उन सब की गिनती करता। पर हमेसा से ऐसा काम तो वो नहीं किया करता था।

शाम को उसका छोटा भाई उसको उसकी व्हीलचेयर में बैठा कर उसको उस गली में घूमाने ले जाता। उस गली से वो फिर उस खिड़की की तरफ देखता जहाँ से वो गली को देखा करता है।


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