ख़ुशी
ख़ुशी
इंद्र एक बहुत बड़ी कंपनी में काम करता था और काफी अच्छी पोस्ट पे था। उसकी उम्र ४० के करीब हो गयी थी। सैलरी अच्छी थी इसलिए एक अच्छा आलीशान घर भी बना लिया था। २५-३० साल की उम्र में नौकरी और प्रमोशन के चक्कर में शादी नहीं की और अब शायद शादी की उम्र निकल गयी थी। नौकरी की दौड़ धूप जयादा होने के कारँ बाल भी सफ़ेद हो गए थे।
पड़ोस में एक नया किरायेदार आया था, उसका नाम आनंद था, इंद्र उससे अभी मिला नहीं था। एक दिन ऑफिस जाते वक्त आनंद ने इन्दर को अपने घर आने के लिए कहा पर इंद्र टाल गया पर अगले दिन उसने दुबारा बुलाया तो इंद्र मना नहीं कर पाया।
घर की हालत बहुत ख़राब थी, फर्श टूटा हुआ था और दीवारों से प्लास्टर उखड़ा हुआ था। फर्नीचर की हालत भी कुछ अच्छी नहीं थी। इसके बावजूद आनंद के चेहरे पर कोई चिंता के भाव नहीं थे। उसकी पत्नी भी उसकी तरह ही खुशमिज़ाज़ थी, उनके एक बेटा और एक बेटी थे जो बहुत सुंदर थे।
आनंद की पत्नी ने चाय बनाई और साथ में मिठाई भी ले आयी। इंद्र ने बताया के वो मिठाई नहीं खा सकता क्योंकि उसको शुगर है। आनंद को थोड़ा आश्चर्य हुआ की ४० की उम्र में ही इंद्र को शुगर है पर वो कुछ बोला नहीं। इंद्र के सामने ही बच्चे मिठाई का भरपूर आनंद ले रहे थे।
घर आकर इंद्र मन में सोचने लगा के ये लोग गरीबी में भी कितने खुश रहते हैं। बच्चों के कपड़े भी बहुत पुराने थे पर उनका चहचहाना उसे अब भी याद आ रहा था। वो ये भी सोचने लगा की मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं इतनी चिंता किस चीज़ की करता हूँ। कई बार तो उसे नींद की गोलियाँ भी लेनी पड़ती थीं। इंद्र अब जब भी उस परिवार को देखता तो उसे अपनी जिंदगी के खालीपन का एहसास होता। पति पत्नी में बहुत मधुर सम्बन्ध थे। गरीब होते हुए भी आनंद हफ्ते में एक बार बच्चों को या तो मूवी ले के जाता था या आइसक्रीम खिलाने ले जाता।
इंद्र को अब ये अच्छी तरह समझ आ गया था कि ख़ुशी पैसे की मोहताज़ नहीं होती और शायद अपनों का अपनापन सबसे बड़ी वजह है खुश रहने के लिए। अपनों का प्यार ही ख़ुशी का आधार है।