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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror Tragedy Crime

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror Tragedy Crime

खौफ (भाग 2)

खौफ (भाग 2)

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शालू के मन में पचासों तरह के खयाल आ रहे थे। नींद कोसों दूर थी। रात के अंधेरे में जब नींद नहीं आती हो और ऐसे किसी गुंडे मवाली का ध्यान दिमाग में चल रहा हो तो कमरे में रखी हर चीज डरावनी लगती है। हवा के झोंके से झूलता पर्दा भी ऐसे लगता है जैसे उसे कोई झुला रहा हो। सांय सांय चलती हवा धड़कनों की गति तेज कर जाती है। जरा सी कहीं आहट होती है तो मन डर जाता है। पल्स बढ़ जाती है। अनेक खयाल मन में आते हैं। शालू के साथ भी यही हो रहा था। वह जग्गा के खयालों में ही डूबती उतरती रही। उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गयी। 

अगले दिन सुबह के आठ बजे तक शालू सोती रही। मम्मी ने जगाया , नहीं तो आज लेट होने में कोई कसर नहीं थी। वह झट से उठ खड़ी हुई और अपने दैनंदिन कर्मों में व्यस्त हो गई। नाश्ता करके टिफिन लेकर शालू कॉलेज के लिए एक्टिवा से चल दी। 


आज उसका दिल धक धक कर रहा था। कहीं वही कल वाला आदमी , यानि जग्गा आज ना मिल जाये ? उसे यह यकीन तो नहीं था कि वह रास्ते में मिलेगा, मगर इसकी संभावना बहुत कम लग रही थी। कल तो संयोग से मिल गया था और संयोग रोज रोज नहीं होते हैं। इस सोच से उसे कुछ तसल्ली मिली। अपने अंदर के डर पर विजय पाने के लिए उसने एक गीत गुनगुनाना आरंभ कर दिया "ऐ मालिक तेरे बंदे हम , ऐसे हों हमारे करम"। 


वह दिव्या के मकान के सामने पहुंच गयी और गाड़ी खड़ी करके दिव्या का इंतजार करने लगी। उसकी पलकें मुंद गई। जब वह गाना खत्म हो गया तो उसने एकदम से आंखें खोल दीं। देखा तो सामने जग्गा मोटरसाइकिल पर बैठा है और उसे ही देखे जा रहा है। वह एकदम से घबरा गई। डर के मारे चीख भी नहीं निकली। जग्गा उसे लगातार घूरे जा रहा था। उसका मुंह ऐसे चल रहा था जैसे कोई सांड जुगाली कर रहा हो। 


शालू की निगाहें जैसे ही जग्गा की निगाहों से टकराई , एक चिंगारी सी उसके पूरे बदन में दौड़ गई। उसे लगा जैसे कोई पिघला हुआ लावा उसकी आंखों के रास्ते से पूरे शरीर में फैल रहा है। उसका सारा बदन कुंद हो रहा था। डर के मारे उसका बदन सन्निपात के मरीज की तरह थर थर कांपने लगा। इससे पहले कि वह एक्टिवा से नीचे गिर पड़ती , दिव्या आ गई। उसकी हालत देखकर वह चौंकी और चीखकर बोली 

"शालू उ उ। क्या हुआ शालू "? 


दिव्या ने शालू को संभाला। इतने में जग्गा जा चुका था। दिव्या ने पानी के छींटे शालू के चेहरे पर मारे तब जाकर उसे होश आया। दो चार लोग वहां पर आ गए। 

"क्या हुआ शालू ? तबीयत खराब है क्या ? यदि तबीयत खराब थी तो फिर क्यों आई" ? दिव्या ने एक साथ कई सवाल जड़ दिये। 


तब तक शालू संभल चुकी थी। उसने बरबस मुस्कुराने की कोशिश की और कहा "नहीं, ऐसी बात नहीं है दिव्या। मैं ठीक हूं। चलो, चलते हैं। पहले ही लेट हो गए हैं"। 


दिव्या बिना कुछ कहे एक्टिवा पर पीछे बैठ गई और एक्टिवा चल दी। थोड़ी देर तक दोनों खामोश रहीं लेकिन दिव्या ज्यादा देर तक खामोश नहीं रह सकी। 

"एक बात पूछूं, शालू" ? 

"पूछ ना , एक ही क्यों जितनी मरजी हो उतनी पूछ ले"। शालू ने नॉर्मल दिखने के लिए ऐसे कहा। हालांकि शालू ने कह तो दिया मगर उसका दिल ही जानता था कि वह झूठ.बोल रही है। वह नहीं चाहती थी कि दिव्या कोई प्रश्न पूछे। मगर अब तो तीर कमान से छूट चुका था। 


"जग्गा को देखकर तू डर क्यों गई थी" ? 


सीधा सपाट प्रश्न था जिससे बचने का वह प्रयास कर रही थी। इस प्रश्न का जवाब तो वह अभी तक ढूंढ नहीं पाई थी। वह खुद नहीं जानती थी कि जग्गा से उसे इतना डर क्यों लगता है ? जग्गा ने आज तक उसे कुछ नहीं कहा और न ही कोई भद्दे इशारे किये। फिर भी वह इतनी डरती है कि उसे देखते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। उसकी आंखों में हवस ही हवस भरी है। जैसे ही वह उसकी आंखों में देखती है तो उसे लगता है कि वह उसे आंखों से ही जिंदा चबा जायेगा। आग सी भरी हुई है उसकी आंखों में जिसमें जलकर भस्म हो जायेगी वह। चेहरा भी राक्षसों जैसा है उसका। उस पर सबको तुच्छ समझने का भाव। इतना क्या कम है डरने के लिए ? 


"चुप क्यों है , कुछ तो बोल। क्या उसने कुछ कहा तुझे ? क्या उसने तुझे छेड़ा ? अगर ऐसा है तो बोल" ? 


शालू को हैरानी हुई कि दिव्या तो ऐसे कह रही है जैसे उसे डर नहीं लगता हो। और पूछ ऐसे रही है जैसे अगर उसने छेड़ा होगा तो वह उसका इलाज कर सकती है। उसके होंठों पर एक मुस्कान तैर गई। जवाब देने के बजाय उसने प्रति प्रश्न कर लिया 

"तुझे डर नहीं लगता है क्या जग्गा से" ? 

"सच कहूं तो नहीं"। 


इस जवाब से शालू बुरी तरह से चौंकी। ऐसा कैसे हो सकता है ? जिसकी शक्ल ही इतनी भयानक हो उससे दिव्या को डर क्यों नहीं लगता है ? यह तो बड़ी खास बात है। कारण तो पता चले 

"क्यों, तुझे क्यों नहीं लगता है उससे डर" ? 


थोड़ी देर तो दिव्या खामोश रही फिर बोली "पहले लगता था, बहुत ज्यादा लगता था, तेरी तरह। तब जग्गा मौहल्ले की लड़कियों / भाभियों को छेड़ता रहता था। हर किसी को उठा लेता था। एक दिन उसके एकदम पड़ोस की लड़की को उसने सरेआम छेड़ दिया। पूरा मौहल्ला जग्गा के घर के बाहर इकट्ठा हो गया और जग्गा को गाली देना शुरू कर दिया। तब जग्गा घर पर नहीं था। उसके मां बाप ने बीच बचाव करने की कोशिश की। दोनों पक्षों में एक समझौता हो गया। वह समझौता यह था कि जग्गा मौहल्ले की बेटी, बहुओं को नहीं छेड़ेगा। मौहल्ले के अलावा बाकी औरतों को छेड़ने पर मौहल्ले को कोई ऐतराज नहीं होगा। उस दिन से जग्गा ने मौहल्ले की औरतों को छेड़ना बंद कर दिया। अब जग्गा हमारा भैया बन गया। हमें तो अब मौहल्ला क्या पूरे शहर में कोई भी कहीं भी नहीं छेड़ सकता है। अगर किसी को पता नहीं हो और वह हमें छेड़ दे तो हम बस इतना ही कहते हैं कि जग्गा हमारा भैया है। बस इतना कहते ही वह शोहदा पैरों में गिर पड़ता है और बोलता है "माफ करना बहिन जी। गलती हो गई। आगे से नहीं होगी। ये बात जग्गा दादा को मत बताना, मैं आपके पैर पड़ता हूं।" ऐसे शोहदों को बकरी की तरह मिमियाते देखकर बहुत खुशी होती है और जग्गा पर फख्र भी होता है"। एक ही सांस में दिव्या यह सब कह गई। 


शालू को बड़ा आश्चर्य हुआ यह सब जानकर। एक गुंडे पर फख्र ? बड़ी अजीब बात है। ऐसा भी होता है क्या ? मौहल्ला उससे समझौता कर लेता है कि औरों की लड़कियां खूब छेड़ो पर हमारी नहीं। कितने स्वार्थी लोग हैं ये ? अपने को बचाने के लिए किसी के भी साथ होने वाले अपराध की अनदेखी कैसे कर सकते हैं ये लोग ? लेकिन ऐसा हो रहा है और इसी लोकतांत्रिक, सभ्य समाज, देश में हो रहा है। ईमानदार न्याय व्यवस्था की नाक के नीचे हो रहा है। सरकार, पुलिस, न्यायालय सब मौन हैं। वाह री हमारी व्यवस्थाएं ? 


इतने में कॉलेज आ गया। दोनों कक्षा में चली गईं। 


शेष अगले अंक में 

क्रमशः



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