Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Aditi Rai

Romance

3  

Aditi Rai

Romance

कहानी सावन की

कहानी सावन की

17 mins
210



बरसात देखकर आदि और साहिबा को अपनी पहली मुलाकात याद आ गयी..जो आज से 1 साल पहले अजीब गरीब परिस्थितियों में हुई थी.. और उसके बाद शुरू हुआ था दोनों के प्यार का सिलसिला ...


दोनों पठानकोट स्टेशन पर बैठे ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे....आज फिर झमाझम बारिश हो रही थी....आज इस बारिश ने फिर से वो यादें ताज़ा कर दी..ये सोचकर आदि अपनी साहिबा को लेकर खुले आसमान के निचे खड़ा हो गया...

आदि: साहिबा....कुछ याद आया ? कैसे हम यहाँ मिले थे....

साहिबा.. हद्द है, वो मुलाकात भी कोई याद करने वाली है क्या..छी मैं कभी ना याद करूँ....


आदि : अगर हम उस दिन ना मिलते तो शायद कभी नहीं मिल पाते और आज हम साथ ना होते..

साहिबा :जी नहीं हम साथ तब भी होते,जिसका आपसे मिलना नसीब ने तय किया हो वो आपसे मिलके रहता है.. समझे आप..


आदि : अच्छा बाबा ठीक है..चलिए नहीं याद करता मैं पहली मुलाकात को बस, अब चलिए ट्रेन आ गयी..


आदि साहिबा को लेकर ट्रेन में बैठ गया। आज फिर बारिश के कारन ट्रेन काफी धीरे धीरे चल रही थी, पर तसल्ली थी के चल तो रही थी...


साहिबा: आपको पता है आदि वो सावन हमारी नकली शादी का पहला सावन था और ये सावन हमारी असली शादी का..

आदि उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया: अभी तो कह रही थी तुम के तुम्हे याद ही नहीं करना वो दिन ..और अब देखो, तुम खुद याद कर रही हो..


साहिबा : इतनी अजीब मुलाकात थी हमारी कि हम चाहे भी तो नहीं भूल सकते..


दोनों एक दूसरे से बातें करते करते अपने बीते कल में खो गए..


1 साल पहले :


बरसात का दिन था ..और बारिश कहर बनकर टूटी पड़ी थी, मानो मौसम ने साथ देने से मना कर दिया हो..आदि और कबीर दोनों ही दिल्ली के लिए जा रहे थे "अध्यन" की शादी के लिए .. वो दोनों उसे स्टडी बुलाते थे..वो तो शुक्र मानो के ट्रेन लेट थी, भला हो हमारे रेलवे वालों का के आज वो ट्रेन लेट होने के लिए थैंक्स बोल रहे थे वरना तो जिस तरह से बरसात हो रही थी उस तरह से तो पक्का उन्हें स्टेशन पहुंचकर भी कोई लाभ नहीं होता..ये सोचकर आदि अपने मन में ही मुस्कुरा रहा था।


वो बस में बैठे थे, के अचानक से झटका लगा और बस एक दम से ब्रेक के साथ रुकी .. ड्राइवर बहुत ग़ुस्से में बाहर की ओर देख कर गालिया दिए जा रहा था उसे देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा सकता था के बाहर किसी ने अचानक से बस रुकवा दी थी..

देखते ही देखते 2 लड़कियां अपना बैकपैक लिए बस में चढ़ी उनमे से एक ने घुसते ही जो किया, उसे देखकर आधे से ज्यादा लोग बस में शांत हो गए..उस बंदी ने एंटर करते ही अपने कान पकड़ लिए और ड्राइवर के पास जाकर बोली : सॉरी काका हमने इस तरह से बस रुकवाई,क्या करते इतनी बारिश हो रही थी और हमने जो कैब बुक की थी वो ख़राब होने से हम काफी देर से पैदल ही आ रहे थे और कोई भी गाड़ी ऐसे रुकवाते तो दिक्कत हो जाती ना.. इसलिए बस रुकवाई सॉरी..


ड्राइवर मुस्कुराकर बोला : कोई ना छोरी ..अब आ गयी है तो जा बैठ जा जाकर, पता नहीं सीट खाली है के नहीं..पर ऐसा काम ना करियो कभी आगे, किसी बस वाले ने चढ़ा दिया तो बस की जगह 4 कंधे की सवारी करेगी समझी..


लड़की : जी काका..


दोनों लड़कियां अंदर की तरफ आयी सीट देखती हुई..सीट ना मिलने पर दोनों ने तय किया के वो खड़ी होकर ही जाएँगी..और दोनों ही आदि की सीट से थोड़ी आगे के ओर खड़ी थीं, कबीर और आदि दोनों ही उन्हें अच्छे से ताड़ रहे थे। क्या कीजियेगा जवानी के रंग, फिर लड़को की फितरत, ऊपर से दोनों ही कुँवारे तो होना ही था..आदि को तो ये मैडम आधी पसंद ही आ गयी थी समझिये, जिन्होंने एंटर करते ही ड्राइवर का गुस्सा गायब कर दिया था..गजब की आँखे थी बड़ी भी और गहरी सी एक दम नशीली सी..


थोड़ी देर बाद दोनों बन्दों को लगा के उनमे से दूसरी लड़की भी उनकी तरफ काफी देर से देख रही थी, जैसे के अपनी आँखों से ही दोनों को स्कैन कर लेगी पूरी तरह से..थोड़ी देर में साहिबा की आवाज़ आयी - कबीर की ओर गुस्से से देखकर बोली - क्या? ऐसे क्यों देख रहे हो जैसे खाने का सामान दिख गया हो सामने..


कबीर चौंक कर बोला :व्हाट,,,, जी नहीं ऐसा कुछ नहीं है..

ऐसा कहकर कबीर ने आदि की तरफ मुँह घुमा लिया और आँखे गोल गोल घूमाते हुए आदि से बोला :-- बहुत ही खतरनाक आइटम है बॉस..।


आदि को भी उसकी बात सुनकर हंसी आ गयी पर गज़ब का गुस्सा था और साथ ही हिम्मत भी थी, कि उसने सामने वाले से पूछ भी लिया और हड़का भी दिया..इतने में उसकी दोस्त उसके कान में कुछ बोली.. जिसपर उसने कहा - हाँ पता है तू भी उन्हें ऐसे ही देख रही थी ,तो शुक्र मना के मैंने तेरी इज़्ज़त बचा ली, वरना यही प्रश्न वो करते ना तो तू बस से बाहर कूदती हुई नज़र आती..


उसकी बात सुनकर उसकी दोस्त ने शर्म से मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया और उसकी बात सुनकर आदि और कबीर दोनों ही हंस दिए क्यूंकि उसकी दोस्त उन्हें घूर रही थी ये उन्होंने पहले ही नोटिस कर लिया था.. थोड़ी देर बाद कबीर ने सभ्यता की दूकान खोली और उसकी दोस्त को सीट ऑफर की.. जिस पर उसकी दोस्त तो मान गयी, पर इन मैडम ने ये कहकर मना कर दिया के इन्हे खड़े होकर बस में सफर करने में कोई दिक्कत नहीं। इतनी नाज़ुक नहीं हैं, के वो खड़े रहके सफर ना करे.. इस पर कबीर ने आदि को कोहनी मारी खड़े होने के लिए, आदि खड़ा तो हुआ पर मन ही मन उसने कबीर को खूब गलियां दी :साले को खुद जब नहीं खड़ा होना था तो इसने ऑफर ही क्यों की सीट.. खैर आदि जाके मैडम के बगल में खड़ा हो गया.. मैडम तो आदि को ऐसे देख रही थीं के जैसे खा ही जायँगी.. थोड़ी देर बाद कबीर ने मैडम की दोस्त,जो के इस वक़्त कबीर के बगल में बैठी थी उनसे बातें शुरू की.. जब कबीर ने बातें शुरू की तो ये देखकर मैडम को हंसी आ गयी।


आदि ने दूसरी ओर मुँह कर लिया उसे समझ में आ गया था के मैडम सच में काफी खतरनाक हैं. नाम तो दूर, कुछ बोलने को ही राज़ी नहीं.. इतने में दोनों खड़े लोगों ने कबीर की सीट पर देखा तो पता चला के वो दोनों कुछ बात कर रहे थे और कबीर महाराज तो पुरे मूड में थे आज अपने साथ वाली को पटाने के.. इतने में कबीर के कुछ पूछने पर उस बंदी ने रिप्लाई दिया - मैं निम्मी हूँ ये मेरी फ्रेंड स..इतना ही बोली थी बेचारी के, आदि के बगल से मैडम ने उसे आँख दिखाई तो कबीर ने कहा: नाम जान लेने से सफर में बात करने में आसानी होगी..

इस पर मैडम ने कहा:अच्छा.. जी मेरा नाम साहिबा है, ये मैडम निम्मी हैं और बताइये तो ,आपको इनकी कुंडली दे दूँ। फिर आपके लिए पूरी ज़िन्दगी का सफर आसान हो जाएगा.. यही आज ही के सफर में आप प्यार इश्क मोहब्बत शादी बच्चे सब कर लीजिये, है ना ..


आदि को साहिबा की बात सुनकर और कबीर का रिएक्शन देखकर हंसी आ गयी..

निम्मी बोली: अरे यार बस कर

जिस पर साहिबा ने फिर से जवाब दिया : हाँ तो मैंने कब मना किया .. दे ना पर सिर्फ अपना नाम पता.. दूसरों का नहीं .मेरा क्या है, तू अपना नाम ,उम्र पता ,घर का ,गाँव का, बापू का ,खानदान का..अपना ईमेल अपना फेसबुक.. और यहाँ तक की अपने वाई फाई का पासवर्ड सब दे दे.. क्यूंकि तुझे तो चॉक्लेट मिल गया स्टिक में लपेटा हुआ..


साहिबा की लास्ट लाइन आदि की समझ में नहीं आयी, पर निम्मी का रिएक्शन देखकर लगा के वो उसे आँखे दिखाकर चुप रहने का इशारा कर रही थी तो ऑब्वियस्ली कुछ तो था.. पर बाकि बाते सुनकर आदि और कबीर दोनों ही हंस पड़े..


फिर आदि बोला -हाई मै आदित्य सिंह चौहान हूँ . इतनी बड़ी बात भी नहीं है..सिर्फ नाम बता देने में..


आदि को उसके रिएक्शन की उम्मीद नहीं थी, पर उसने जो कहा वो सुनकर सब हंस दिए , उसने अपनी आँखों को बड़ा करते हुए कहा - बड़ा लम्बा नाम है आपका, लोग आपको पूरे नाम के साथ बुलाते हैं क्या?


आदि - इतना भी लम्बा नहीं है, वैसे लोग मुझे शार्ट में आदि कहते हैं..


अभी इतनी ही बात हुई थी के, कंडक्टर ने आवाज़ दी - स्टेशन जिसे जाना है वो यहीं उतर जाये, लड़कों का भाग्य अच्छा था के चारों kकोह स्ततिओ जाना था इसलिए ये चारों और उनके पीछे 5 बन्दे और, उतर गए स्टेशन के लिए..


साहिबा ने निम्मी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने साथ ले गयी.. बिना पीछे मुड़े बिना बाय बोले, वहीँ निम्मी ने उन दोनों को बाय किया.. अजीब बात थी जाना चारों को एक ही जगह था, पर साहिबा ऐसे व्यव्हार कर रही थी के जैसे उसे अलग ही कहीं जाना है..


स्टेशन पर बहुत ही कम लोग थे। एक तो रात के साढ़े दस बज रहे थे, ऊपर से बारिश का मौसम..तो जाहिर है भीड़ कहाँ होती.. और ट्रेन आने में अभी 1.5 घंटे शेष थे ..

कबीर ने कहा - ये साहिबा नाम की बंदी कुछ ज्यादा ही खड़ूस हैं ,है ना..


आदि - क्यूंकि वो बेवकूफ नहीं है.. और मैं बहुत कॉन्फिडेंस से कह सकता हूँ के उसका नाम साहिबा नहीं, कुछ और ही है..


कबीर : तू इतना कन्फर्म कैसे है..


आदि : जब निम्मी इसका नाम बताने वाली थी ,उसी वक़्त इसने उसे रोक दिया और उसके बाद जिस आसानी से इसने अपना नाम बताया उससे तो यही लगता है..


कबीर : ओह्ह तेरा जासूसी दिमाग चल पड़ा.. वैसे ये दोनों दिखाई नहीं दे रही यहाँ स्टेशन पर, अकेले ठीक नहीं है इनके लिए, तेरी अकलदार को ये नहीं पता क्या..


आदि : उसे पता है, बस होंगी यही कहीं के हम उन्हें नहीं देख पा रहे..


आदि इतना बोलकर उठकर टहलने लगा.. भाईसाहब इतनी अच्छी बारिश हो तो बस चाय मिल जाये और एक सिगरेट.. इससे ज्यादा क्या चाहत होगी किसी बन्दे को.. यही सोचकर आदि बाहर की ओर जाने लगा ये देखने, के शायद कोई चाय वाला दुकान खोले बैठा हो.. अभी वो एग्जिट के पास पहुंचा ही था, के उसे किसी के चिल्लाने की आवाज़ आयी -- निम्मी भाग..


उसे समझते देर ना लगी के साहिबा और निम्मी किसी मुसीबत में हैं, आदि ने फ़ौरन ही मुड़कर कबीर को आवाज़ दी -- कबीर ... अल्लेर्ट


कबीर ने फ़ौरन ही दोनों की बंदूके ली,उन्हें फिट करके लोड किया औरआदि की तरफ भागा और आदि उस तरफ जहाँ से आवाज़ आ रही थी.. भागते भागते आदि ने देखा के ये आवाज़ वाशरूम की ओर से आ रही थी..आदि वहां पहुंचा ही था के इतने में निम्मी आकर उससे टकरा गयी.. 


आदि ने उसे संभाला, वो रोती हुई आदि से लिपट गयी और ज़ोर से हाँफती हुई आवाज़ में बोली : प्ली प्लीज़..हे हेल्प ..कबीर ने आकर उसे संभाला ,आदि ने अपनी गन कबीर के हाथ से ली और निम्मी से पूछा के क्या हुआ -- 


उसने जवाब दिया के लेडीज वाशरूम में 5 बन्दे हैं, जो पहले से वहां कुछ कर रहे थे। हमारे वहां जाने पर उन्होंने हमें पकड़ लिया और वो कुछ और बोल पाती ,उसके पहले वाशरूम की तरफ से 2 बन्दे बाहर निकले..उन दोनों के हाथों में भी गन थी .. दोनों आदि और कबीर जल्दी से दूसरी तरफ भागे और निम्मी को अपने पीछे छिपाया.. उसने डर के मारे कबीर को कसकर पकड़ लिया.. वो बन्दे (आतंकवादी) पागलों की तरह उस तरफ दौड़े जहाँ इन लड़कियों का बैगपैक रखा था.. 


कबीर ने गुस्से में कहा - तुम लोग कुछ ज्यादा ही बहादुर समझ रही थी..ज्यादा होशियारी इंसान को भारी पड़ जाती है समझी.. पड़ गयी ना तुम्हारी झाँसी की रानी को हिम्मत भारी..


निम्मी : हम म ..गए ..तो थे ..वाशरूम पर ..वहां वो 5 बन्दे ना ..कुछ अजीब .. सा काम ..कर रहे..थे .. और इस ..पर सा.. को शक हुआ.. उसने मुझे गेट पर रोक दिया और खुद अंदर जाकर उन्हें पूछा ..के वो लोग क्या कर रहे हैं तो इस पर उन लोगों ने बिना कुछ बोले उसे गिरफ्त में ले लिया तो सा.. ने मुझे वहां से भगा दिया..और थैंक ..गॉड कि तुम लोग ग ग .. वो लोग कुछ बहुत सारे सामान और कुछ बिजली का लेके बैठे थे..


आदि और कबीर ने एक दूसरे को देखा और उन्हें समझते देर ना लगी के निम्मी और साहिबा ने क्या देखा.. कबीर और आदि के मुहं से एक साथ निकला - ओह शिट


कबीर : आदि तू वाशरूम की और जा मैं इन (बाहर आये २ आतंकवादियों की ओर देखकर) दोनों को देखता हूँ .. निम्मी वहीं रुको


निम्मी : अरे वो वही 5 बन्दे थे ,जो हमारे साथ बस से उतरे थे, उनमे से 2 बाहर आये हैं और बाकी 3 ने सवव.. को पकड़ रखा है.. (डर के मारे निम्मी ठीक से बोल नहीं पा रही थी, कोई भी उसे देखकर बता सकता था के वो इस वक़्त डर से काँप रही है)


आदि वाशरूम की ओर गया... कबीर बाकि दोनों के पीछे .. इतने में गोली चलने की आवाज़ आयी एक के बाद एक, आदि समझ गया के कबीर ने दोनों को ढेर कर दिया था....स्टेशन पर जो बचे खुचे लोग थे एक्का दुक्का, वो कही ना कहीं छिप गए....इतने में 3 बन्दे साहिबा को लेके बाहरआये.. और खुले आसमान के निचे लेकर गए, जिससे बारिश के चलते अँधेरे में आदि और कबीर को उनका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था ,क्यूंकि उन्होंने गन के साथ साथ शाल भी डाल रखी थी ,जिससे उन्होंने अपना चेहरा ढकने की कोशिश की थी.. साहिबा के सर पर एक ने गन रखी थी और साहिबा के हाथ आगे की ओर करके एक बिजली के तार से बंधे थे.. बाकि के 2 बन्दे उसके पीछे थे ए के 47 के साथ..


आदि देख कर दंग रह गया, सबसे ज्यादा दंग तो वो साहिबा को देखकर था- उसके सर पर मौत खड़ी थी और उसे कोई डर नहीं था। वो बेख़ौफ़ चले आ रही थी, अपनी आँखों में उन बन्दों के लिए नफरत लिए..पर जब उसने आदि को देखा तो वो मुस्कुराकर बोली.. तुम लोग पुलिस वाले हो?


इस पर उसके पीछे खड़ा बंदा बोल पड़ा :ऐ लड़की मुहं बंद रख अपना और हाँ ये पुलिस वाले नहीं ये तो आर्मी के कुत्ते हैं ..


आदिऔर कबीर उसे कोई जवाब देते उसके पहले ही साहिबा बोल पड़ी: अबे ओ हमारे यहाँ आर्मी वालों को शेर बोला जाता है, पर तुम साले खुद ही कुत्ते हो ना तो तुम्हे दूसरे भी अपने जैसे ही लगेंगे ना...


इसपे जिस बन्दे ने उसके सर पर गन रखी थी उसने उसे गुस्से में जोर से थप्पड़ मारा और कहा : चुप साली बहुत बोल ली तू .. और तुम दोनों (आदि और कबीर की तरफ देखकर) अपनी गन निचे करो, वरना ये जाएगी जान से..


वो कुछ और बोल पाती उसके पहले ही उनकी दाहिनी साइड से कुछ आवाज़ आयी और देखते ही देखते साहिबा के पीछे खड़े बन्दों को वहां आई हुई फाॅर्स ने मार गिराया ।आदि ने बिना समय गंवाए साहिबा को अपनी ओर खींच लिया और उस बन्दे पर गोलियां चला दी, जिसने साहिबा के सर पे गन रखी थी। गोली लगते ही वो वहीँ गिर पड़ा.... आदि ने साहिबा को अपनी तरफ मोड़ा, वो कुछ कहता उससे पहले ही साहिबा चिल्ला पड़ी - स्टॉप राईट

आदि ने इतने में निचे गिरे बन्दे का चेहरा देखा, वो साहिबा को देख कर मुस्कुरा रहा था और फिर उसकी आँखे बंद हो गयीं..आदि समझ गया के कुछ गड़बड़ है, आदि ने अपनी जगह से खड़े खड़े साहिबा से पूछा के क्या हुआ ?


साहिबा ने कहा : मेरे कपड़े में, मतलब पीछे टॉप में और आगे की साइड इन सालों ने कुछ अजीब सी रिमोट जैसी चीज़ को सील किया हुआ है... मैंने बहुत कोशिश की पर सालों ने मेरे हाथ और मुँह बांध कर ये सब किया.. I पर मेरे पास आने से पहले यहाँ शायद बॉम्ब प्लांट किये गए हैं..वो पता करो और डिफयूज़ करने की कोशिश करो ।


आदि लोगों के पास स्पेशल स्क्वैड टीम का बाँदा आया और उसने आदि और कबीर को इन्फॉर्म किया: अगर हम साहिबा को बिना हिलाये उसक टॉप फाड़ कर रिमोट को डिफ्यूज कर दे, तो बम सर्च करने और ट्रिगर डीएक्टिवेट करने में आसानी होगी..


ये सुनकर साहिबा चिल्ला पड़ी.. नो.. नो वे


आदि ने साहिबा का रिएक्शन देखकर अपना प्लान टीम के साथ डिसकस किया.. और थोड़े देर बाद वो साहिबा के पास जाकर बोला : देखो साहिबा, मैं तुम्हारा टॉप दोनों साइड से धीरे धीरे कट करूँगा और मैंने निम्मी को बोल दिया है, वो और कबीर शॉल लेकर सर्किल में ऐसे खड़े रहेंगे के तुम्हे कोई नहीं देख पायेगा.. तुम प्लीज टेंशन मत लो और कोआपरेट करो..


साहिबा : आदि क्या ये निम्मी नहीं कर सकती..


आदि: वो खुद डरी हुई है, इसलिए उसे टीम ये करने नहीं देगी, हो सकता है के कोई और आकर करे ये काम - स्पेशल बम स्क्वैड टीम से.. तुम बताओ तुम क्या करना चाहोगी.. तुम बिलकुल भी मूव नहीं कर सकती,अगर मुझे पता होता के उन कमीनो ने ऐसा किय है, तो मैं ऐसे तुम्हे झटके से उस वक़्त नहीं खींचता.. जल्दी करो


साहिबा: ओके.. पर ..ठीक है ..


आदि: डोंट वोरी


इतना कहकर आदि ने अपनी 2 टी-शर्ट कबीर से मंगवाई और दुपट्टा निम्मी से मंगवाया। कबीर और निम्मी वो दुपट्टा लेके घेरा बना के खड़े हो गए, साहिबा के अपोजिट तरफ मुँह करके।


उस घेरे के अंदर आदि और साहिबा थे..साहिबा ने अपने बंधे हांथों से आदि की दोनों टी-शर्ट्स को पकड़ा। आदि ने धीरे धीरे करके साहिबा का टॉप पहले पीछे से इस तरह काटा, कि वो टुकड़ा कपडे के रिमोट की वजह से सीधा निचे गिरने लगा,जिसे आदि ने अपने हाथों में थाम लिया। शर्म के मारे साहिबा ने अपनी आँखे बंद करली और कसकर आदि के टी शर्ट को पकड़ लिया। आदि ने बिना किसी भाव के उसके हाथ से एक टी शर्ट ली और साहिबा की पीठ पर डाल कर, पीछे से उसके बदन के ऊपरी हिस्से को पूरी तरह ढक दिया और फिर अपने हाथ के कपडे के टुकड़े को उसने कबीर की ओर बढ़ा दिया और कबीर ने आगे अपनी टीम को पकड़ा दिया, इसी तरह धीरे से उसने पहले साहिबा के हाथ खोले और फिर उसने आगे का टॉप भी काटकर अपने हाथ में लिया और कबीर को आगे बढ़ा दिया..और फिर बिना समय गंवाए उसने झटके से साहिबा के हाथ से टी शर्ट लेकर उसके गले में डाल दी और साहिबा की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया, साहिबा ने जल्दी से उसकी टी-शर्ट पहन ली।


साहिबा ने धीरे से कहा - थैंक यू आदि जी..


आदि: चलें..


साहिबा और आदि के साथ बाकि दोनों भी पूरी टीम के पास पहुँच गए और साहिबा और निम्मी से कुछ प्रश्न पूछे गए , उसके बाद आदि और कबीर के सीनियर ने आदि से कहा: आदि अब तुम अपनी वाइफ को ले जाओ..  वो बहुत बहादुर है


सीनियर के जाने के बाद आदि फ़ौरन स्टेशन की ओर मुड़ गया और साहिबा सीनियर की बात सुनकर शॉक में आ गयी और फिर चिल्लाती हुई गुस्से में आदि के पीछे भागी.. हे आदि यू .. लिसेन न ...


साहिबा का रिएक्शन देखकर निम्मी और कबीर दोनों हंसने लगे.. स्टेशन पर ट्रेन आ चुकी थी। इत्तेफ़ाक़ की बात के चारो की ट्रेन भी एक ही थी.. चढ़ते हुए आदि ने साहिबा की ओर मुड़कर कहा - मेरा हाथ थाम लीजिये मिसेज आदि..

साहिबा उसे इग्नोर करके ट्रेन में चढ़ गयी,पर बिना उसका हाथ थामे..


ट्रेन में बैठने के बाद आदि ने उसे बताया के स्क्वैड टीम ये काम किसी को नहीं करने देती, बल्कि खुद ही करती पर आदि के ये कहने पर की साहिबा उसकी बीवी है उन्होंने आदि को ये काम करने दिया.. इसे सुनकर साहिबा शर्मा गयी और कुछ ना बोल पायी..


आदि: ओह तो आपको शर्म भी आती है वाओ


निम्मी : ये मत कहिये आदि.. हमारी साहिबा बहुत रोमांटिक है.. अगर इन्होने जॉब की ज़िद नहीं की होती तो इस साल ये यहाँ या शायद कहीं और अपने साजन के साथ शादी के बाद अपना पहला सावन मना रही होती.. (साहिबा की ओर देख कर आँख मारते हुए ) क्यों है ना ...


निम्मी की बात सुनकर कबीर बोला : वैसे देखा जाये तो एक तरह से , ये इसका पहला सावन ही है शादी के बाद का, नकली ही सही .. मतलब आदि की बीवी का अपने पति के साथ.. क्यों साहिबा है ना..


उसकी बात पर साहिबा को छोड़कर सभी मुस्कुरा दिए.. जाते जाते कबीर ने साहिबा से पूछा के उसका असली नाम क्या है? साहिबा मुस्कुराती हुई आदि की तरफ देखकर बोली : क्या फर्क पड़ता है, मुझे अब अपना ये नाम बहुत पसंद है- साहिबा, और देखती हूँ किसी को इंट्रेस्ट है क्या मेरा असली नाम जानने में और हो तो खुद ही पता कर ले ?


आदि साहिबा के करीब जाकर उसके कान में: चैलेंज एक्सेप्टेड साहिबा..


इसके बाद दिल्ली आने के बाद सभी अलग अलग दिशाओ में चले गए और अगले 3 महीनो में ही आदि अपने माँ पिता के साथ साहिबा के घर पहुंच गया रिश्ता लेकर.. और दोनों के घर वालों की मर्ज़ी से उनकी शादी हो गयी..


अभी का समय : 


साहिबा: वैसे ये बताओ, के आपने मेरा असली नाम क्यों नहीं पूछा तब.. कबीर के पूछने पर हमें बहुत गुस्सा आया था और इसलिए हमने आपको अपना नाम नहीं बताया..


आदि : क्यूंकि मैंने निम्मी की बात को सुनकर मन में ये ठान लिया था, के आप का अगला सावन आप सच में मेरे साथ ही बिताएंगी और आपके अगले सावन में आप मेरी बाँहों में होंगी और देखिये आज आप मेरी बाहों में हैं..हमारी असली शादी के बाद का आपका पहला सावन...


साहिबा : मैंने भी सोच लिया था के अगर आपने मेरे बिना बताये मेरा असली नाम पता कर लिया, तो पक्का आप ही होंगे मेरे अगले सावन में मेरे साजन.. वैसे आप हमें हमारे असली नाम से क्यों नहीं बुलाते..


आदि: क्योंकि ये नाम मुझे बहुत पसंद है और ये ऐसा नाम है जिससे आपको सिर्फ मैं बुला सकता हूँ कोई और नहीं..


इस तरह दोनों ने ही अपनी शादी के 2 सावन मनाये - एक नकली शादी के बाद का- पहला सावन जो अनजाने में ही मन गया.. और दूसरा सावन असली शादी के बाद का -पहला सावन ... ..


Rate this content
Log in

More hindi story from Aditi Rai

Similar hindi story from Romance