Ekta Rishabh

Tragedy

4.7  

Ekta Rishabh

Tragedy

खामोशियाँ

खामोशियाँ

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हँसते गाते सुनील उसकी आठ महीने की गर्भवती पत्नी सुनैना और तीन साल की बिटिया नैना आइसक्रीम खाने जा रहे थे। पापा लॉन्ग ड्राइव, जब नैना ने अपने पापा से अपनी तोतली ज़बान में ज़िद की तो सुनील मना नहीं कर पाया।

अभी थोड़ा ही तो आगे निकले थे कि "सुनील सुनील सम्भालो... सुनील !!" सुनैना चीखी। ट्रक की हेड लाइट की रोशनी में सुनील की आँखें चुंधिया गईं और उसने नियंत्रण खो दिया।

गाड़ी सीधा जा कर ट्रक से टकराई, एक जोरदार आवाज़ आयी धड़ाम और सुनील झटके से उठ के बैठ गया।

पसीने पसीने हो उठा था फुल एसी में भी। आज भी वही सपना पिछले तीन सालों से रोज़ इसी सपने से नींद खुलती थी ।

एक नज़र सामने दीवार पर डाली सुनैना की बड़ी सी मुस्क़ुरती तस्वीर थी, "जैसे कह रही हो,, अब खुद को माफ़ भी कर दो सुनील। शायद यही हमारी नियति थी, शायद यही भाग्य था हमारा, जो इतना ही साथ लिखा था"। तुम तो सपने में फूल से भी ना मारो मुझे फिर मेरी मौत की वज़ह कब तक खुद को मानते रहोगे।"

आँखों में झलके आंसू पोछ नन्ही सी नैना को देखा सुनील ने। बेफिक्र गहरी नींद में सोई थी नैना। जल्दी से उठ के फ्रेश हुआ और नैना के नाश्ते और लंच की तैयारी शुरू कर दी। बीच बीच में घड़ी भी देखता रहता।

उठो बेटा स्कूल जाना है । मुझे नहीं जाना पापा कुनमुनाती हुई नैना बोली । नैना, उठो बेटा और गुदगुदी कर अपनी लाडली को बाहों में ले लिया सुनील ने, सिर्फ एक नैना ही तो रह गई थी सुनील की जिंदगी में जो उसकी साँसे चल रही थी वरना.... ।

नैना को तैयार करना नास्ता खिलाना और बस में बिठाना साथ ही अपने ऑफिस की तैयारी करना, ये सब सुबह की भाग दौड़ में शामिल था।रोज़ सुबह अपनी मम्मा की तस्वीर से बातें करती नैना "" मम्मा, पापा ने मेरी चोटियां बनाना अच्छे से सीख लिया और पता है राहुल ने मेरी पेंसिल ले ली और भी जाने क्या क्या और जाते जाते एक प्यारी सी क़िस्सी अपनी माँ की तस्वीर को देते जाती ।

पिता और माँ की दोहरी भूमिका थी सुनील की अब तो स्कूल के व्हाट्सप्प ग्रुप में सारी माँओ के साथ वो भी शामिल था शुरू में सब थोड़ा अजीब था लेकिन अब तो आदत हो गई थी । सबने बहुत कहा दूसरी शादी कर लो नैना को माँ मिल जायेगी और तुम्हे पत्नी लेकिन मेरी अर्धांगिनी तो सिर्फ तुम थी कोई और कैसे आती ।

पूरा घर सुनैना की तस्वीरों से भरा था जो हर वक़्त ये अहसास दिलाती की वो पास ही है । बस अभी रसोई से आवाज़ देगी । "" ये क्या सुनील? जल्दी करो नास्ता ठंडा हो रहा है... "" ! आया सुनैना.... ओह्ह....,, कोई नहीं है अब आवाज़ देने को अब सिर्फ खामोशियाँ है.. सिर्फ खामोशियाँ..... ।

""जब आँख खुली तब अस्पताल में था । हाथ से सारी खुशियाँ फिसल गई थी रेत की तरह और रह गए थे तो सिर्फ सुनील और नैना ""। इसे किस्मत का खेल कहे या होनी सुनैना की तरफ ही टक्कर लगी थी । पीछे की सीट पे बैठी नैना को सिर्फ खरोंचे आयी थी और मुझे भी थोड़ी ही चोट थी तो क्या सिर्फ मेरी सुनैना के लिये मौत आयी थी? ये सवाल रोज़ पूछता खुद से ।

मेरा अजन्मा बच्चा भी साथ चला गया अपनी माँ के कोख में ही । बहुत मुश्किल था नैना को संभालना और उससे भी ज्यादा खुद को । आज तुम दोनों होते तो हमारा परिवार पूरा होता ।

""मेरा पहला प्यार हो तुम सुनैना,,, इतनी क्या जल्दी मची थी जाने की। रोज़ शिकायत करता सुनैना की तस्वीरों से लेकिन अब वो कहाँ थी जो रूठती और मैं मनाता "" ।

"अब तो नैना ही जीने का सहारा है। हम दोनों ही एक दूसरे के लिये हैं। ये वादा है सुनैना तुम्हारी बेटी को बिलकुल तुम्हारे जैसा ही बनाऊंगा। सात जन्मो का साथ माँगा करती थी ना मुझसे, अब अगले जन्म में जल्दी ना मचाना"। अब तो आदत हो गई इन खामोशियों के साथ जीने की जीवन का संगीत तुम जो ले गई सुनैना।


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