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Mohammed Khan

Abstract Classics

4  

Mohammed Khan

Abstract Classics

खामोश भक्त

खामोश भक्त

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मैं खामोश रहेता हूँ क्यूंकी मुझे शोर पसंद नहीं है

मैं भीड़ में शामिल नहीं होता क्यूंकी मुझे शोर पसंद नहीं है

मैने अपने ज़हेन को, हाथो को, और ज़ूबा को ताला लगा लिया है

क्यूँकी मैं किसी भी बेवजह सवालों का जवाब मांगना नहीं चाहता !

मैं इस देश का नागरिक हूँ, मैं सुबह सुबह नौकरी पे निकल जाता हूँ, बस और ट्रैन में दोस्तो के साथ गप्पे मारते हुए मेरा वक़्त बीत जाता है. ऑफिस में य़ा काम पर अपनी सारी ज़िम्मेदारिया निभाता हूँ और बड़ी मेहनत करके शाम को थक हार कर दो पेग दारू की चढ़ाकार अपने परिवार के साथ सुकून से सो जाता हूँ !

मैं एक धार्मिक देश भक्त भी हूँ 15 अगस्त और 26 जनवारी को देश के प्रति मेरा सीना गर्व से फूल का 56 इंच का हो जाता है ! मैं शिवजयंती, आंबेड़कर जयंती, गांधी जयंती ऐसे बहुत सी जयंतियो में बड चढ़कर हिस्सा लेता हूँ ! मैं भारत के सभी सांसकॄतिक त्योहारो को सबके साथ प्यार से मनाता हूँ ! मैं धर्म का प्रचार करता हूँ हिंसा और नफरत से मेरा कोई वाबस्ता नहीं है !

जब मेरे देश में कोई आतंकी हमला होता है तो मुझे उसका बहुत दुख होता है, खास करके तब जब कोई दुसरे मुल्क ने हमारे मुल्क के लोगो को मारा हो, मैं उन्हें बहुत गाली देता हूँ फेसबुक whatsap ऐसे अन्य सोशल ग्रुप में शेयर करता हूँ ताकी मैं अपने देश के लोगो को जागरुक कर सकु और देश की रक्षा कर सकु !

अब जीतना मुझसे होता है वो मैं करता हूँ ! मेरा कर्तव्य भी बनता है ये सब करने का क्यूँकी मैं इस देश का नागरिक जो हूँ !

लेकिन मैं भीड़ में शामिल नहीं होता क्यूँकी मुझे शोर पसंद नहीं है !

मैं उस भीड़ की बात कर रहा हूँ जो कभी भी इंसाफ की लडाई लडने सड़को पे ईकठठा हो जाती है !

मैं उस शोर की बात कर रहा हूँ जो आज़ादी और इंकलाब के नारो से गुंज उठता है !

मैं उस बेवजह सवालों की बात कर रहा हूँ जो हमें अपने ही अधिकारों के लिए मांगने पड़ते है !

इसलिए मैं इस भीड़़ में शामिल नहीं होता और मैंने अपने ज़ेहन को, हाथों को और ज़ूबा को ताला लगा लिया है !


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