कौए की समझदारी
कौए की समझदारी
कल छुट्टी थी मोहन बगीचे में बैठा पुस्तक पढ़ रहा था बाग में फूल खिले थे और मीठी सुगंध आ रही थी चिड़िया चहक रही थी और एक पेड़ पर से दूसरे पेड़ पर उड़ा उड़ रही थी मोहन ने देखा कि उसके सामने एक चिड़ा आया है।
और उसकी सोच में रोटी का एक टुकड़ा है चिड़ा रोटी के टुकड़े को तोड़ने की कोशिश कर रहा है भरसक कोशिश कर रहा है पर रोटी का टुकड़ा टूटता नहीं है क्योंकि रोटी का टुकड़ा सूखा और सख्त है वह रोटी के टुकड़े को मोड़ने के लिए जमीन के साथ ठोकरे लगाता है
परंतु टुकड़ा टस से मस नहीं होता आंखें थक गई रोटी के टुकड़े को वहीं छोड़कर पुर्र से उड़ जाता है इतने में मैंना वहां आए वह भी रोटी के टुकड़े को अपनी चोच में लेकर खाने की कोशिश करती रही पर रोटी का टुकड़ा टूटता नहीं वह पत्थर पर बैठ जाती है और रोटी के टुकड़े को पत्थर के साथ देर तक रगडती परंतु फिर भी नहीं टूटा अंत में थक हारकर वह भी उड़ जाती है पेड पर बैठा हुआ कौआ सब कुछ देख रहा होता है।
उड़ कर वह भी पेड़ से नीचे आया और रोटी के टुकड़े को देखने लगा फिर टुकड़े को अपनी सोच में ले लिया फिर उसने टुकड़े को नोचा जमीन के साथ रगड़ा टुकड़ा न टूटे अब वह बोला कव्वे ने आसपास देखा दूर पानी का एक घड़ा था उड़ता हुआ वह घड़ी के पास पहुंच गया रोटी का टुकड़ा लेकर उस ने पानी में डूब है फिर देखा टुकड़ा थोड़ा नरम यह देखा उसका उत्साह बढ़ गया उसने दोबारा रोटी रोटी के टुकड़े को पानी में भिगोया रोटी का टुकड़ा गीला हो गया था वो खुश हो रहा था उसने तीसरी बार रोटी के टुकड़े को पानी मैं डूब गया अब रोटी का टुकड़ा बिल्कुल नरम हो गया था कौवै टुकडे को अपने पांव में पांव तले दबाया और कुडतरकर खाने लगा रोटी का टुकड़ा आसानी से टूट रहा था और कौवे मजे से खा रहा था टुकड़ा जब पूरा खत्म हो गया तब वह घडे़ के पास पहुंच गया उसने पानी या फिर आनंद से कांव-कांव करता हुआ उड़ गया।
मोहन ने अपने मन में कौवे की समझदारी की तारीफ की और घर चला गया। घर आकर उसने कौवे की कहानी अपनी छोटी सी बहन को सुनाएं ।
