एक बूंद
एक बूंद
वह निराश बैठा था और बरसते हुए बादलों को देख रहा था सहसा,
उसे लगा की वर्षा की एक बूंद उससे कुछ कह रही है ,तुम निराश क्यों बैठे हो ?
निराश बैठने से कभी अपनी मंजिल नहीं मिलती। मंजिल तो मेहनत करने और निरंतर आगे बढ़ने से मिलती है।
उठो और आगे बढ़ो और बढ़ते ही रहो।
मेरी तरह तुम भी गतिशील बनो फिर देखो एक ना एक दिन तुम्हें अपनी मंजिल मिल ही जाएगी। और तुम अपनी मंजिल को प्राप्त कर लोगे।
तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाएगा वह उस वर्षा की बूंद को देखता रहा फिर देखते ही देखते वर्षा के आगे बढ़ते हुए इसकी आंखों से ओझल हो गई।
अगले पल खड़ा हुआ और अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया वर्षा की बूंदों से निराश जीवन में उत्साह और उमंग की नई किरण का संचार कर दिया।
अब हो निरंतर आगे बढ़ता ही जा चला जा रहा है वर्षा की बूंदें उसके जीवन को बदल दिया।
