दयालु कबूतर
दयालु कबूतर
एक गांव के किनारे एक खेत में चतुर कौवा और एक भोलू कबूतर रहा करते थे कबूतर भोला भाला और सीधा साधा था जबकि कौवा चालाक था। वह स्वार्थी और अहंकारी भी था तथा कभी किसी के सुख-दुख के साथ नहीं रहता था जबकि इसके विपरीत कबूतर दयालु और परोपकारी था और सर्वदा दूसरों के सुख दुख में साथ देता था एक दिन कबूतर को खाने के लिए कुछ नहीं मिला वह भूखा इधर-उधर भटक रहा था। कौवा एक रोटी लेकर आया कबूतर ने सोचा कि संभवत थोड़ी बहुत रोटी उसे दे देगा लेकिन कव्वे ने कबूतर को पूछा तक नहीं थोड़े दिनों के बाद कौवे को खाने के लिए कुछ नहीं मिला और कबूतर के रोटी मिल गई भूख से व्याकुल कैऔ ने जैसे कबूतर के मुंह में रोटी देखी तो वो झट से कबूतर के पास आकर बोला मित्र आज मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है और और अब तो उठने बैठने की हिम्मत भी नहीं ऐसे लगता है जैसे मेरे पेट में कहीं बार-बार चिल्ला रहा है।
मैं कहीं से दवाई लाकर दूं तुझे कबूतर ने बहुत ही सहजता से पूछा नहीं मित्र दवाई की कोई आवश्यकता नहीं मेरी पीड़ा तो रोटी से ही ठीक हो जाएगी कबूतर को दया आ गई उसने वह रोटी को कौए को दे दी और फिर कौवे की आंख में आंसू आ गए वह सोचने लगा कि जब इसके इसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था तो मैंने हमने एक रोटी नहीं दिया और मैं मेरे एक बार मांगने पर उसने मुझे रोटी दी।
