कागज़ की नाव
कागज़ की नाव
"ये बारिश भी ना। बहुत परेशान करती हैं। जब जल्दी काम पे जाना हो ना तो हमेशा देर करवाती हैं । "
रसोई ख़तम करके रिशिता फटाफट कपडे सूखने रूममें चली गई
क्यूँ की बारिश थी।
रिशिता। एक जानी मानी कंपनी की आर्किटेक्ट थी।
कंपनी के हेड ऑफ़ थे डिज़ाइन डिपार्टमेंट में शामिल थी कल उसको 3 बड़ी कंपनीके ब्रिजके लेआउट तैयार करने थे।
सो कल रात ही उसने बना दिए थे। सुबह बहोत थक चुकी थी फिर भी ऑफिस तो जाना ही था । घर भी अच्छे से संभालती थी। एक बेटा था 4 साल का। रिषि। बड़ा ही नटखट था मगर बहोत ही प्यारा।
"रिषि। ,टेबलपे खाना रख़ दिया हैं। खा लेना। " "बोलकर रिशिता रूम में चली गई। तैयार हो गई और एक बार कल रातके कामपे और लेआउट
पे एक नज़र डाली। और टेबलपे ही उलटे रख दिए ।
और फिर रिषि को प्यार करके ऑफिस चली गई। बारिश अपना जोर दिखा रही थी ।
आज रिषि की छुट्टी थी। वोह घर पे ही था तभी उसका दोस्त जिनय रेनकोट पहने
हाथ में कागज़ की नाव लिए रिषिके पास आया
वोह दोनों हमेशा साथ खेलते थे, "देख रिषि। आज मैंने नाव बनाई । अपने आप। "जिनय बोला।
"ठहरो। में भी कागज़ लेके आता हु। मुझे भी सिखाओ ।
रिषि ने इर्द _गिर्द देखा मगर जिनय जैसा सफ़ेद कागज़ नहीं मिला।
वोह ऊपर रूम में चला गया। वहां रिशिता
लापरवाहीसे वोह कागज़ वही छोड़ आई थी।
रिषि खुश हो गया कागज़ उलटे रखे थे सो । और ऐसे ही माँ ने रखे होंगे ये सोच कर 6 में से 4 कागज़ उठा लाया। जिनय भी इतना बड़ा नहीं था की कुछ पढ़ सके। बस उसने तो अपने दोस्त रिषि के लिए कागज़ की नाव बना दि।
दोनों रेनकोट पहन दरवाजे तक चले गए और बारिश के पानी में मस्ती के साथ नाव को चलाया ।
पूरा दिन मस्ती की दोनों ने। शाम को जब रिशिता घर आयी तब रिषि उसे लिपट गया। रिषिता ने उसे उठाया और प्यार बरसाया और बोली। "आज मेरे नन्हे शैतान ने क्या किया? तभी रिषि बहोत ख़ुशी से बोल पड़ा "माँ। आज मुझे जिनय ने कागज़ की नाव सिखाई
और उस नाव को बारिश में चलाया। "पता हैं तुम्हारे टेबलपे जो कागज़ थे उसीसे बनाई । "
रिशिता फटाक से खड़ी हो गई और ऊपर रूम में भागी । उसका दिल की धड़कन तेज़ हो चुकी थी। जो सोचा था वही दिखा। टेबलपे सिर्फ 2 ही कागज़ थे उसकी आँखों में आँसू आ गए। पीछे पीछे रिषि भी ऊपर आया। और तब रिशिता चिल्लाई"ये तूने क्या किया शैतान ?"
माँ को रोते देखा तब बड़े मासूमियत से अपनी माँ के आसु पोछे और बड़ी सरलता से बोला। "इस में रोती क्यूँ हो ?"
जिनय के पास ऐसे बहुत सारे कागज़ हैं । में अभी बोलूंगा तो वोह दे जायेगा। और कल तुम ऑफिस ले जाना ! इतनी सी बात पे कोई रोता हैं ? रिशिता अपने बेटे की मासूमियत पे रोती भी रही और फिर हंस पड़ी ।
उसे रिषि को उठाया और बहुत प्यार किया।
और उस रात फिर काम करने लग गई और बाज़ू में सोते हुए मासूम और नटखट रिषि को देखती रही और उसकी मासूमियत और शैतानी पे मुस्कुरा रही थी ।