-'कागज की कश्ती'
-'कागज की कश्ती'
''देखो सुनैना ! दुनिया कितनी खूबसूरत हो गयी है न जब से हम दोनों एक दूसरे के हुए हैं ---।''प्रकाश ने अपनी पत्नि सुनैना का हाथ अपने हाथ में लेकर समुद्र के पानी को पैरों से उछालते हुए कहा।
''हाँ जी मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं होता कि मुझे --मुझे आप जैसा जीवन- साथी मिलेगा --।''सुनैना ने प्रकाश के काँधे पर सिर रखते हुए कहा ।
''काश कि हम यूँ ही ताउम्र एक-दूजे के साथ रहें ।''
प्रकाश ने सुनैना की आंखों में देखते हुए कहा ,तभी एक कागज की बनी हुई नाव ,जिसे किनारे पर बैठे कुछ बच्चे पानी में बहा रहे थे अचानक सुनैना के पैरों के पास से गुजरी तो वह खुशी से चिल्ला उठी--
''वाह !कितनी प्यारी है प्रकाश यह --!''
''हाँ --देखो न कैसे बही जा रही है --बिल्कुल हमारी जिन्दगी की तरह ---।''कहकर दोनो जोरों से हँसने लगे ।
तभी पानी का बहाव तेज हो गया और नाव पानी के भंवर में फँसकर अपना रास्ता भटक गयी और थोड़ा -डूबने उछलने के बाद अंत में डूब गयी। लहरों के साथ न जाने कहाँ बह गयी, किनारों तक पहुँचने से पहले ही उसका अस्तितव समाप्त हो गया।
दोनों बड़े ध्यान से देख रहे थे। एक -दूसरे का हाथ पकड़कर एक स्वर में बोले -''हम जिन्दगी के दुख -सुख रूपी भवरों का मिलकर मुकाबला करेंगे और जिन्दगी के किनारों को हंसकर छुएंगे ---ये भवर तो हिस्सा होता है जिन्दगी का, जो डटकर सामना करते हैं किनारे वही, पहुँचते हैं --।''