जुदाई का अहसास - 7
जुदाई का अहसास - 7
मैंने बहुत गन्दी बात की है। क्यूँ उसने ग़ुस्से में, ईगो में आकर मंजरी पर लांछन लगाये जिनका कोई आधार नहीं था। बहुत पछता रहा था मनोज अब।
तुम बहुत उज्जवल हो, प्लीज़ मुझे क्षमा कर दो।
तुमने भी तो “मुझे दहेज का लोभी कहा।“
तो मुझसे भी गल्ती में, ग़ुस्से में ये पाप हो गया और कड़वे शब्दों से तुम्हारा मन छलनी कर बैठा।
“हाँ मुझे ग़ुस्से मे ये सब नहीं कहना चाहिये था “। बहुत शर्मिंदा थी मंजरी - कि कितना अच्छा है मनोज पल -पल उसका ख्याल रखने वाला।एक बार वो डूब रही थी तो अपनी जान की परवाह ना करके उसे बचाने आ गया, चाहे उसे तैरना भी नहीं आता था तब भी !
वही मनोज की आँखें रहरह कर भर रही थी जैसे अभी रो देगा।रात -२ भर जागती रहकर उसकी सेवा करती जब भी उसे कुछ होता, हर बात का ख्याल रखती कि कब उसे क्या चाहिये। हर दुख -सुख में साथ देने वाली उसकी मंजरी, कैसे ? उसको कितना ग़लत बोल जाता था शराब के नशे में। पछता रहा था अब ।क्यूँ ? अपनी जान से प्यारी पत्नी को इतना दुख पहुँचाया।कि वो अब सदा -२ के लिये उससे दूर हो जायेगी। कैसे जियेगा उसके बिन अकेले -ये टीस बार -बार उसके दिल को ख़ून के आँसू रूला रही थी।
मनोज अब मंजरी से बार -बार माफ़ी माँगने लगा और कहने लगा कि -बस एक मौक़ा और दे दो मुझे, हम नई जिन्दगी शुरू करेंगे।हम अभी दोस्त बनकर साथ रहेंगे और फिर से विवाह कर नया जीवन शुरू करेंगे। अब हम जीवन-भर साथ रहेंगे। मै तुमसे जुदा होकर ज़िन्दा नहीं रह सकता।
मंजरी भी मनोज के बिना जीवन की कल्पना मात्र से ही सिहर रही थी।मंजरी को तो जैसे जीवन -दान मिल गया हो।
दोनों ने रोते -२ तलाक़ के काग़ज़ वहीं फाड़ कर फैंक दिये और फिर से अपने प्रेम को दोस्ती के नये रगं में रगं साथ -साथ एक ही राह चल दिये। फिर से नया आशियाना बसाने की चाह में अपने उसी घर की और एक प्रेम के सबक़ के साथ, जहाँ से चलकर वो कोर्ट रूम पहुँचे थे।