जुदाई का अहसास 2

जुदाई का अहसास 2

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बात भी करती तो किससे ?  


लेकिन मनोज को कहाँ परवाह थी। उसे सिर्फ़ अपने काम से मतलब होता। ज़रूरत होती तो मंजरी को पुकारता नही तो घर में क्या चल रहा है सबसे बेख़बर बस काम और खुद में व्यस्त रहना। बाहर आना -जाना, दोस्त यही उसका रोज़ का रूटीन था। मंजरी को जानने -समझने, बात करने की फ़ुर्सत कहाँ थी मनोज के पास। नीरसता के बादल घेर रहे थे दोनो की जिन्दगी को। धीरे -२, कब कैसे? रोज -रोज कलह होने लगी, क्यों होती, पता ही ना चलता।


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