जंगली
जंगली
हमारे घर के बगल मे एक छोटी सी झोपड़ी में जंगली रहता है, अपनी विधवा माँ के साथ। हर कोई उसको छेडता अरे जंगली तू हर समय माँ का आँचल थाम कर घूमता रहता है। इतना बड़ा हो गया है तुझको लाज नहीं आती जंगली मंद सी हँसी हँसकर कहता कि माँ ही तो हमारी दुनिया है।
पढ़ने लिखने में होशियार गोरा सा सुंदर सा युवक जंगली सबका मन मोह लेता। पढ़ता लिखता और यही उसके जीवन में और कुछ भी नहीं जमाने के इस दौर में जंगली जैसा बेटा शिव सबको दे जहाँ माँ बाप सबके लिये बोझा हो गये है। समय बीता जंगली यानि जीवन कुमार बड़ा अधिकारी भी बन गया , रूनझुन करती बहु भी आ गयी बड़े अमीर घर से थी जीवन को देखकर ससुर जी पता नहीं कौन सा मोहनी पाठ पढ़ा कर जीवनकुमार को अपनी नकचढ़ी बेटी से विवाह करा दिया।
घर का माहौल ही बिगड़ गया नोक झोंक से बात कचहरी तक पहुँच गयी बहु कहती कि अपनी माँ को भगाओ जंगली की दुनिया माँ थी बोला "तुम जाओ पर माँ नहीं जायेगीं" कचहरी में मामला चला रहा है और समझौते कोई गुंजाईश नहीं पर जंगली यानि जीवनकुमार अपने घर को उन माँ का निवास बना दिया उसके सेवा भाव को देखकर मन खुश हो जाता है। अब आप ही लोग बताये जंगलीं कौन ? जो माँ बाप की सेवा करते है या वो जो माँ बाप को निकाल देते है।