जंग जिन्दगी की
जंग जिन्दगी की
मोबाइल की रिंगटोन सुनते ही रीना ने फोन उठाया।कॉल शुभम की थी,उसका स्टूडेंट।बहुत ही ज़हीन और शान्त प्रकीर्ति का लड़का।रीना के नौकरी छोड़ने के बाद भी दोनो मे गुरु ,शिष्य का जुड़ाव बना हुआ था।रीना को आज भी वो दिन भूला नही है ,कैसे पहली बार शुभम को उसने डाँटा था और उसके बाद----- रीना, जैसे ही क्लास मे आई,बच्चों का शोर,हँसी की आवाजें सुनाई पड़ी।क्लास के अंदर आकर उसने देखा एक लड़का अपनी चेयर पर चढ़ कर बैठने के असफल प्रयास मे बार बार गिर रहा है।और दूसरे बच्चे उसका मज़ा ले रहे है।रीना को देख सारे बच्चे चुप हो अपनी अपनी सीट पर जा कर बैठ गये।लेकिन वो लड़का वहीं नीचे बैठा रहा।उसकी इस बद्तमीज़ी पर रीना गुस्से से बोली--"खड़े हो जाओ" लड़का चुपचाप वैसे ही बैठा रहा। "सुनाई नहीं पड़ रहा ।शैतानी कर रहे थे और अब बद्तमीजी भी।मै कह रही हूँ खड़े हो जाओ।क्या नाम है तुम्हारा?" "शुभम "फिर धीरे से बोला"मै खड़ा नही हो सकता।पोलियो है"उसकी आँखे भरी हुई थी। रीना ने देखा क्लास के बाहर,दरवाजे से सटी व्हील चेयर रखी थी।बच्चे को सहारा दे उसने , उसकी सीट पर आहिस्ता से बैठा दिया।ये दस ग्यारह साल के बच्चों की सिक्स 'थ की क्लास थी।उस दिन के बाद कभी बच्चों ने शुभम का मज़ाक नहीं बनाया।वरन उसकी जरुरत के मुताबिक मदद करते।--- फोन पर वो कह रहा था"मेम,मेरा,डिग्री कॉलेज मे असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट पर चयन हुआ है।मैं आज ज्वाईन करने जा रहा हूँ,आशीर्वाद दे" आज की सुबह सार्थक लगी।मन खुशी से भर गया।जिन्दगी की जंग जीत ली शिवम ने।