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Radha Kano

Drama Thriller

3.4  

Radha Kano

Drama Thriller

जंग-ए-जिंदगी भाग-१

जंग-ए-जिंदगी भाग-१

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पैरों में काले रंग के मजबूत जूते पहने हुए, काला रंग का कुर्ता और पायजामा भी काला|

सिर पर पगड़ी भी काले रंग की पहनी हुई एक डाकूरानी अपने कक्ष से बाहर आई| अपने दोनों हाथ फैलाये, सिर आकाश की ओर ऊंचा लिए अपने मन ही मन बोली...

"कुदरत तू सबसे बड़ा जादूगर है| ये हवा, ये वादियाँ, ये पानी, ये पेड़-पौधे, न जाने... बुरे से बुरे इंसान को भी अच्छा बना देती हैं|"

एक ३३ साल का पुरुष अपने कक्ष से बाहर आया| डाकूरानी (१५साल की है डाकुरानी) के सिर पे हाथ रखकर बोले:

"क्या सोच रही है मेरी राजकुमारी?"

(वो आने वाला पुरुष भी डाकुरानी की तरह डाकू के परिवेश में है)

डाकुरानी: "बापू, मैं राजकुमारी नहीं हूँ|"

बापू: "तू मुझ पे "हुकूमत" नहीं कर सकती, तू मेरी राजकुमारी ही है|"

डाकुरानी: "ठीक है| कहिए राजकुमारी| हम आप पर हुकूमत नहीं करेंगे|"

बापू: "वैसे, तू सोच क्या रही है?"

डाकूरानी बोली, "बापू कुदरत के बारे में सोच रही हूँ| कुदरत,बहुत बड़ा जादूगर है| अपने इस रंगों से बुरे से बुरे आदमी को भी भला बना देता है|"

बापू बोले, "बेटा! यह तुम्हारी सोच है| यह तुम मानती हो, कि यह कुदरत अपने रंगों से दुनिया बदल देता है| लेकिन ऐसा है नहीं| अगर ऐसा होता तो दुनिया में कोई भी बुरा नहीं होता और वैसे भी मेरी प्यारी-सी राजकुमारी को कुदरत बहुत पसंद है और तुम्हें याद है ...वह तुम्हारा बगीचा! राजमहल वाला!"

डाकूरानी बोली, "बस बापू, उस सब को याद करके क्या फायदा? जो मेरे नसीब में ही नहीं है और वैसे भी बड़े महाराजा ने मुझे घर से निकाल दिया है| फिर उन लोगों के बारे में सोचकर क्या फायदा?" बापू बोले, "बेटा वो "महाराजा" नहीं तुम्हारे "बड़े बापू" हैं| तू चाहे अपने आपसे कितनी भी दूर क्यों ना रहे? लेकिन अपनों से दूर नहीं रह सकती है| अपने तो अपने होते हैं|वह अपने लहू में बसे हुए होते हैं| हम उसे भूलकर भी नहीं भूल सकते हैं|

याद रखो बेटा, तुम राजकुमारी हो और राजकुमारी ही रहोगी| तुम चाहे जैसे भी कपड़े पहनो, तुम चाहे जैसे भी काम करो| फिर भी तुम्हें लोग एक राजकुमारी के नाम से ही जानेंगे। याद रखो यह पहचान तुम अपने मां-बाप से लेकर पैदा हुई हो, वह तुम्हारी आख़िरी सांस तक तुम्हारे साथ रहेगी|"

डाकूरानी बोली, "बापू अब बस भी कीजिए| हमें उन सबको याद नहीं करना है|"

बापू बोले, "ठीक है, तुम याद मत करो| लेकिन मैं तो याद करके रहूँगा| तुम्हें याद है वह बगीचे वाली बात?"

दोनों को बीती बातें याद आती हैं| दोनों राजमहल की यादों में खो जाते हैं| राजकुमारी पायल अपनी सेविकाओं के साथ बगीचे में टहल रही है| राजकुमारी पायल ने राजकुमारी दिशा के बगीचे में गुलाब की कली देखी| राजकुमारी पायल से रहा नहीं गया| वह बोली, "सेविका तुम यहाँ खड़ी रहो| हम राजकुमारी दिशा के बगीचे से वह गुलाब की कली चुराकर ले आते हैं|"

सेविका बोली, "राजकुमारी पायल, अगर राजकुमारी दिशा ने देख लिया तो पूरा का पूरा "राजमहल" सिर पर चढ़ाएगी और फिर हंगामा हो जाएगा| आपको तो पता है फिर डांट आपको ही पड़ेगी| क्योंकि आपने गलती की और गलती करने वाले को ही सजा मिलती है|"

राजकुमारी पायल बोली, "तुम सेविका हो, अपनी औकात में रहो| तुम्हारा फर्ज है मेरे हुक्म को बजाना| तुम अपना काम करो ठीक है|"

सेविका बोली, "जी राजकुमारी!"

राजकुमारी पायल चुपके से राजकुमारी दिशा के बगीचे में घुसी| फिर उसने गुलाब की कली को तोड़ लिया| वह बगीचे से बाहर निकलने ही वाली थी तब राजकुमारी दिशा अपनी दोस्त "बंसी" के साथ बगीचे में प्रवेशकर चुकी थी|

राजकुमारी अपनी सेविकाएँ और बंसी के साथ अपने बगीचे की मरम्मत करने लगी| तभी राजकुमारी दिशा की दोस्त बंसी ने राजकुमारी पायल को देख लिया| बंसी ने राजकुमारी पायल को इशारा किया "आप चुपके से निकल जाए" जैसे ही राजकुमारी पायल खड़ी हुई उसकी चुनरी का छोर गुलाब के कांटो में फंस गया|

चुपके से एक सेविका ने निकाला और जैसे ही राजकुमारी पायल भागने लगी, राजकुमारी दिशा ने देख लिया| वह जोर से चिल्लाई, "दीदी! रुक जाओ|" राजकुमारी पायल ने गुलाब की कली अपने पीछे छुपा दी और बोली, "बोल राजकुमारी दिशा क्या है?"

राजकुमारी दिशा बोली, "अपने पीछे क्या छुपाया है?"

राजकुमारी पायल बोले इससे पहले बंसी बोली, "कुछ नहीं दिशा, वह खेल रहे थे ना अपनी गेंद ले कर जा रहे हैं| दीदी हमारी प्यारी पायल जीजी|"

राजकुमारी दिशा जोर से ओर गुस्से में बोली, "बंसी तुम चुप रहो| हम तुमसे बात नहीं कर रहे| अपनी दीदी से बात कर रहे हैं|" बंसी ने अपना मुंह नीचे कर लिया और फिर सेविका भी कुछ नहीं बोली| राजकुमारी दिशा ने राजकुमारी पायल के दोनों हाथ आगे किए| राजकुमारी दिशा ने देखा राजकुमारी पायल के हाथ में गुलाब की कली है और फिर क्या होना था?

हंगामा!!

खड़ा कर दिया पूरा का पूरा महल अपने सिर पर और फिर वही हुआ जो सेविका ने कहा था|दूर से राजकुमारी पायल ने 'महारानी' को देखा। राजकुमारी पायल गिड़गिड़ाने लगी| राजकुमारी दिशा को मनाने लगी| फिर भी राजकुमारी दिशा नहीं मानी और जाकर "मासा" से फरियाद कर दी|

मासा ने बहुत डांट दी राजकुमारी पायल को| फिर वो राजकुमारी दिशा को मनाने लगी| मासा अपने दोनों बच्चियों को लेकर कक्ष में चली गई| फिर तुमने अपनी दोस्त बंसी से भी माफी मांगी|

याद है तुम्हें दिशा बापू बोले?

"हां बापू, मुझे सब कुछ याद है," डाकूरानी बोली। "लेकिन क्या फायदा? महाराजा ने तो हमें घर से ही निकाल दिया| अपने राजमहल से निकाल दिया और अपने दिल में जगह ही नहीं रखी मेरे लिए|"

बापू बोले, "बेटा ऐसा नहीं होता है| मेरी बच्ची वो तुम्हारे बड़े बापू हैं|" डाकूरानी बोली, "जो भी हो,उसके बारे में नहीं सोचना चाहते|" तभी "कदम" एक गुप्तचर लेकर आया| डाकूरानी ने उसे गले से दबोचा और फिर बोली, "क्यों आए हो यहाँ? किसके कहने पर आए हो यहाँ?" गुप्तचर कुछ नहीं बोला|

कदम ने कटार निकाली और उसके हाथ पर लगा दी| गुप्तचर के हाथ से लहू निकलने लगा| फिर उसने कहा, "बताता हूँ, बताता हूँ," और गुप्तचर ने डाकूरानी को सारी हकीकत बयां कर दी| डाकूरानी दयाहीन है| वह किसी को ऐसे ही नहीं छोड़ती| उसने कदम को हुकुम दिया,

"कदम, इस गुप्तचर को वह सामने वाले पर्वत के दूसरी ओर छोड़ आओ और उसके परिवार को भी और हां तुम याद रखना, मैं ऐसा इसलिए करती हूँ कि अगर मैं तुम्हें जिंदा छोड़ दूंगी तो तुम्हें अपना मालिक जिंदा नहीं रखेगा और फिर तुम्हारे परिवार का क्या होगा?

तुम्हारे मां-बाप, तुम्हारी बीवी, तुम्हारे बच्चे| उसकी रखवाली कौन करेगा? इसलिए मैं तुम्हें सुरक्षित पर्वत के उस पार छोड़ती हूँ ताकि तुम्हारा मालिक तुम पर जोर जबरदस्ती ना कर पाए और ऐसा ही नहीं वह तुम्हें ढूंढ ही नहीं पाएगा और सोच लेगा डाकूरानी ने उसे मार डाला ठीक है और फिर सच बताकर तुमने मेरी मदद की तो मैं तुझे मार भी तो नहीं सकती| एक बात हमेशा याद रखना डाकूरानी काफी खतरनाक है| वह किसी को छोड़ती नहीं| खास कर अपने दुश्मन को| उसकी रूह कांप जाए, इतनी सजा देती है और तुम पर्वत के उस पार अपनों के बिना तिल-तिलकर जिएगा समझे| तब तुम डाकूरानी के इस फैसले को समझ पाओगे|"

कदम को हुक्म दिया जाओ अपनी फर्ज निभाओ|

कदम ने बोला, "जी डाकूरानी!"

फिर डाकूरानी चली गई और बापू पीछे से बोले, "राजकुमारी! तुम खुद को कितना ही निष्ठुर, दयाहीन, भावनाहीन समझ लो| मगर तुम्हारे लहू में जो प्यार-मोहब्बत की भावना छीपी है वह बार-बार बाहर आकर रहती है|"

एक डाकू बोला पीछे से, "आपकी बात सच है सरकार| डाकूरानी चाहे अपने आपको कितना ही दयाहीन क्यों ना बताएं, फिर भी राजा आपके और रानी के संस्कार बार बार झलकते हैं|"

शाम होने को है, बापू साधारण व्यक्ति के परिवेश में बहार आए|

डाकूरानी ने यह देखा, वह बोली, "बापू यह परिवेश डाकू को मान्य नहीं है। हम आपको कितनी बार कह चुके हैं, सामान्य व्यक्ति की तरह पोशाक मत पहनिए लेकिन आप हैं कि सुनते ही नहीं|"

बापू की आंखों में पानी आ गया| डाकूरानी के सामने देखने लगे| फिर धीमे स्वर में बोले, "हमें नहीं पता था, हमारी राजकुमारी हम पर हुकूमत चलाएंगी| वरना हम यह पोशाक पहनने की ज़ुर्रत नहीं करते|"

डाकूरानी बोली, "बापू आप हमारी ओर देखिए| हमारी मंशा आपके दिल को ठेस पहुंचाने की नहीं थी| मगर "अब यह साधारण पोशाक पहनकर क्या फायदा? जब हम ही साधारण नहीं हैं। हमने एक अलग ही रास्ता अपना लिया है|"

फिर बापू बोले, "तुमने अपनी भावनाओं को त्याग दिया है| तुमने अपने दिल से मोहब्बत को फेंक दिया है| हमने नहीं| आज भी अपने सीने में साधारण व्यक्ति की तरह मोहब्बत है और बेपनाह मोहब्बत हम तुमसे और हमारे परिवार से करते हैं और तुम भूल चुकी हो| तुम "राजघराने" की हो, हम नहीं भूले| फिर भी अगर तुम्हें पसंद ना आए तो अभी बदल देते हैं|" वह चलने लगते हैं|

डाकूरानी बोली, "बापू रुक जाइए| आपका जी चाहे वह पहनिए| हमें कोई एतराज नहीं है| मगर रात के अंधेरे में, दिन के उजाले में नहीं|"

बापू बोले, "हम तुम्हारे खिलाफ भला कैसे जा सकते हैं? तुम ही बताओ| फिर हंसने लगते हैं|" फिर डाकूरानी भी हंसने लगी| बापू और बेटी एक दूसरे से गले मिले| तब डाकू "मकरंद" आया और बोला, "डाकूरानी खाना तैयार है| खाना लगा दें क्या?" डाकूरानी बोली, "जी लगा दीजिए| हम अभी आते हैं|"

डाकूरानी राजघराने की हैं फिर भी उसकी बोली उसकी भाषा उसका लहजा डाकुओं की तरह हो चुका था| डाकूरानी और बापू और सब डाकू भोजन करने बैठ गए| सब ने मिल जुलकर प्यार से एक दूसरे को बांटते हुए खाना खाया| फिर डाकूरानी और बापू बातें करने लगे और बाकी सब डाकू काम करने लगे| तो कुछ डाकू पहरा देने लगे| रात के अंधेरे में कोई हमला ना कर दे इसलिए| धीरे-धीरे सब काम निपट गया| पहरा देने वाले डाकू जाग रहे और बाकी सब सो गए|

बापू बोले, "बिटिया मेरी राजकुमारी, आप सो जाइए| हम भी सो जाते हैं|"

डाकूरानी बोली, "ठीक है बापू| अपना ख्याल रखना, शुभ रात्रि|" डाकूरानी चली गई| धीरे-धीरे रात का काला अंधेरा घनघोर हो गया| पहरा देने वाले डाकू की निगाहें चुराकर बापू उठे| फिर सबकी नजर चुराते हुए भागने लगे और पहुंच गए अपने मुकाम पर|

अगर आप जानना चाहते हैं कि डाकूरानी के बापू कहां गए? वह किससे मिलने गए? वह कौन हैं? क्या वह डाकूरानी के साथ गद्दारी कर रहे हैं? या फिर कुछ और वजह है? यह जानने के लिए आप जुड़े रहिए मुझसे।


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