जंग-ए-ज़िंदगी, भाग-२
जंग-ए-ज़िंदगी, भाग-२
एक गुप्तचर आया ओर बोला, "डाकूरानी को बोलो, अर्जेंट गुप्तचर आया है।"
इस समय में लोग अंग्रेज़ी बोलने की और सीखने का शौक भी रखने लगे हैं। डाकूरानी ने इस गुप्तचर का नाम ही अर्जेंट रख दिया।
डाकूरानी ने अपने डाकू के परिवार में बहुत-सी भाषा के लोगों को रखा है। कोई अपनी मर्ज़ी से आया तो कोई जबरन लाया गया। डाकूरानी अलग-अलग भाषा बोलना, लिखना और जानने का बहुत ही शौक रखती हैं।
वो १५ की आयु में भी बहुत अच्छी संस्कृत लिख सकती हैं, बोल सकती हैं। अपनी मातृभाषा "गुजराती" पर उनकी पकड़ लाजवाब है। हिंदी भी बहुत अच्छी जानती हैं। अंग्रेज़ी भी कुछ-कुछ सीख ली है।
आजकल वो अंग्रेज़ी सीखने की बहुत ही तमन्ना रखती हैं। अंग्रेज़ी के पूरे तीन विद्यमान उनके साथ हैं। समय मिलने पर वो पढ़ने लिखने बैठ जातीं हैं।
एक डाकू, "तुम भी ना,अभी हाल ही में डाकूरानी सोने गईं हैं और तुम आ गए? पहले नहीं आ सकते थे क्या?"
अर्जेंट गुप्तचर बोला, "बेवकुफ, अर्जेंट किसे कहते हैं पता है? अर्जेंट यानी अचानक, तुरंत, जल्द...जो न्यूज़ अचानक आई है, उसे डाकूरानी तक तुरंत और जल्दी ही पहुँचाई जाए।"
डाकू मोहन, "जय श्री कृष्ण, डाकूरानीI"
डाकूरानी, "जी जय श्री कृष्ण। बोलिये क्यूँ तुरंत ही आये, कुछ हुआ क्या?"
मोहन, "अर्जेंट गुप्तचर आया है।"
डाकूरानी, "ठीक है, आने दो।"
अर्जेंट, "जय श्री कृष्ण।डाकूरानीI"
डाकूरानी, "जी, जय श्री कृष्ण। कहियेI"
अर्जेंट, "बापू सादा परिवेश पहनकर ‘भानुपुर’ के किले में जाते हुए नजर आयें हैं। मुझे लगता है आप बुरा मत मानना मगर बापू गद्दारी...I"
डाकूरानी जोर से, "बस...बापू के बारे में और कुछ नहींI"
अर्जेंट, "मगर...I"
डाकूरानी, "तुम्हारा शक जायज है और काम भी अच्छा है। मगर कुछ बिना सोचे समझे तुम हमारे बापू पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते हो।"
अर्जेंट, "वो कैसे?"
डाकूरानी बोली, "ठीक है, एक बात बताओI महाराजा हमारे क्या लगते हैं?"
अर्जेंट, "जी डाकूरानी, बड़े बापूI"
डाकूरानी बोली, "और हम उनकी क्या लगती है?"
अर्जेंट, "बेटीI"
डाकूरानी बोली, "तो बेटी की चिंता किसे होती है?"
अर्जेंट, "बापू को।"
डाकूरानी, "तो मुझे लगता है, अब तुम्हें अपने सारे सवालों के जवाब मिल गये।"
अर्जेंट, "जी डाकूरानीI"
डाकूरानी, "और एक बात सुनो अर्जेंट; याद रखना...बड़े बापू और हमारे बापू कभी एक-दुसरे से लड़ नहीं सकते हैं। वो दोनों भाई-भाई हैं। दोनों में इतना प्यार है कि दो भाई के प्रेम की बीच कोई नहीं आ सकता। मैं भी नहीं। समझे तुम? और एक बात मुझे तो पहले से ही पता है कि ये दोनों भाई राजमहल में अपनी वारिसदारी पर नहीं लड़े वो मेरे लिये क्या ख़ाक लड़ेंगे?"
उसी समय बापू आकर अपने कक्ष में जाकर सो जाते हैं।
बापू को याद आ रहा है सोते-सोते...
बापू 'भानुपुर' के किले में चोरी-चुप्पी से घुसते हैं। महाराजा सूर्यप्रताप बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहें हैं। चंद्र को देखते ही वो बोल उठे, "कैसी है मेरी बच्ची?"
चंद्रप्रताप, "भाई, वो खुश है, आप चिंता मत कीजिये।"
सूर्यप्रताप, "और तू कैसा है?"
चंद्र, "मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप देख तो रहें हैं मुझे भाई। आप पहले सांस तो लीजियेI"
सूर्य, "जिसकी बेटी डाकूरानी बन चुकी हो वो बापू कैसे चैन की सांस ले सकता है?"
वो १४ साल की थी, घर से भाग गई, तुम भी उसके पीछे भागे और मैंने तुम दोनों को गद्दार करारा दे दिया। आज वो १५ साल की हुई उसका जन्मदिन है। और मैं एक बेबस, लाचार...(महाराजा सूर्य बोल रहे हैं।)
बापू अब भी सोच में डूबे हुए हैं। अब भी वो ‘महाराजा’ से हुई बातें याद कर रहें हैं। बाहर पहरेदार पहरा दे रहें हैं। फिर से यादों में खो जाते हैं।
घमासान युद्ध हुवा : १६ माह में ३ बार हुआ। भानुपुर के सैनिक, खजाना और अन्न पर बहुत ही विपरीत असर पड़ा।
वो लोग नलायक की तरह युद्ध करते। युद्ध के एक भी नियम का पालन नहीं करते। यहाँ 'महाराजा सूर्यप्रताप' अपने उसूल पर अड़े हैं। फिर भी युद्ध तो जीत जाते मगर 'भानुपुर युद्ध' से हुई हानि से निपटते इससे पहले फिर से युद्ध हो जाता।
महाराजा सूर्यप्रताप का परिवार ’राज परिवार' कहलाता है।
’राज साम्राज्य’ से दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
एक ’शाही परिवार’ है।
वो ’मुग़ल साम्राज्य’ से दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
दुसरा ‘आदि परिवार’ है।
वो ’आदि जाति साम्राज्य’ से दुनियाभर में विख्यात है।
एक और भी ’राजराज’ परिवार है।
वो ‘राजराज साम्राज्य' से प्रचलित है।
एक ऐसा राज्य जहाँ सत्ता बार-बार पलटती है। उसे 'पलट साम्राज्य' कहते हैं यानि यहाँ सत्ता किसी-भी क्षण पलट सकती है।
कोई भी इस राज्य पर आक्रमण करके जीत हासिल करले और वो वहाँ राज्य करने लगता है। यहाँ की प्रजा बेहाल है। इस राज्य से प्रजा को बाहर भी नहीं जाने दिया जाता है। प्रजा यहाँ त्रस्त हो चुकी है। वो खुद भगवान को अवतार के लिये भीख मांग रही है। मुग़ल अपने खुदा से इल्तिज़ा कर रहे हैं।
हर कोई अपने भगवान को पृथ्वी पर आने का निमंत्रण दे रहा है मगर...व्यर्थ। कुछ भी नहीं हो रहा है। अब मनुष्य को भी लग रहा है कि ये कोई पूर्व जन्म के कर्म के कारण ही हो रहा है।
ये साम्राज्य पर अब डाकुओं की हुकूमत है। इससे पहले मुग़ल थे। इससे पहले हिंदू और इससे पहले आदि साम्राज्य था। अब का समय बहुत ही कठिन है, क्यूँकि डाकू के साम्राज्य से पहले जिसका भी साम्राज्य था वो सब अपनी प्रजा के लिये कुछ न कुछ अवश्य करता मगर डाकू...?
बस प्रजा को लूटते-पीटते और काम ही काम करवाते। सिर्फ दो वक्त की रोटी और कुछ कपड़े ही मिलते काम के बदले। सब कमाई डाकू ही ले जाते। बच्चे, बूढ़े, लड़कियाँ और औरतें सब तंग आ गएँ हैं, इस साम्राज्य से।
बापू ने करवट बदली और फिर से 'राजमहल' याद आया। १४ साल की बच्ची युद्ध देखती, हर बार बड़े बापू से पुछती, "क्यूँ बापू ऐसा क्यूँ ? अगर वो लोग दुष्टता कर सकते हैं तो हम क्यूँ नहीं?"
महाराजा सूर्यप्रताप कहते, "वो लोग करते हैं दुष्टता, उन्हें करने दो, हम नहीं कर सकते।"
राजकुमारी दिशा, "ऐसा क्यूँ बड़े बापू?"
"बेटा! इस दुनिया में सब लोग एक जैसे नहीं होते। कुछ लोग ईश्वर को मानते हैं। वो लोग दुष्टता नहीं करते।"
राजकुमारी दिशा, "मगर बापू अम्मा तो कहती हैं ’जैसे को तैसा’ ही करना चाहिए।"
महाराजा, "बेटा, आप खेलो...आपकी आयु आपके पिता के राजमहल में खेलने की है।"
राजकुमारी दिशा, "जी बापू, तालियाँ बजाकर आप फिर से हार गये, फिर से हार गये।"
महाराजा हँसकर बोले, "वो कैसे?"
दिशा, "आप आज एक बार फिर मेरे प्रश्न के उत्तर में हमें खेलने का आदेश दे दिया बड़े बापू।"
महाराजा, "जी...मगर क्या करूँ? तुम न छोटी हो न बड़ी हो कि मैं तुम्हें कुछ समझा सकूँ।"
दिशा बोली, "ठीक है, बापू।"
अब बापू गहरी नींद में हैं, अचानक उनकी आँखों के सामने 'शक्तिबाग' आने लगा।
दूसरा दिन हुआ....भोर बहुत खूबसूरत निकली, महाराजा सूर्यप्रताप और महारानी सुबह-सुबह टहल रहें हैं। सूर्य और चंद्र दोनों को एक-एक बेटा है। सूर्य का सहदेव और चंद्र का चैतन्य।
वहीं दिशा दौड़ती आई और हाँफती हुई भी।
सहदेव बोला, "क्या हुआ? चैतन्य पानी लाओ...पानी दिया।"
चैतन्य बोला, "अब बोलो क्या है?"
राजकुमारी दिशा बोली, "हमारे राज्य पर हर बार डाकू हमला करते हैं, हैं ना?"
सहदेव बोला, "जी हाँ।"
चैतन्य बोला, "तो क्या हुआ?"
दिशा, "अगर कोई लड़की, डाकू का परिवेश पहन ले तो उसे क्या कहा जाता है भाई? हम कबसे इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे मगर मिल ही नहीं रहा है।"
दोनों भाई हँसकर बोले, ‘’डाकूरानीI’’
दिशा बोली, "ठीक है तो मैं बड़ी होकर 'डाकूरानी' ही बनूँगी।"
सहदेव बोला, "क्या?"
चैतन्य हँसकर बोला, "तुम अपना मुँह आयने में देखकर आओ, जाओI"
सहदेव बोला, "जब डाकू आते हैं तो काकी के पल्लू में छुप जाती है।"
चैतन्य बोला, "बड़ी आई, डाकूरानी बनने वाली...।"
ये सब कुछ महाराजा ओर महारानी सुन रहे थे।
महारानी बोली, "देखा महाराज, राजकुमारी दिशा क्या बोल रही है?"
महाराजा बोले, "जी महारानी।"
"आप मना मत करना मैं फिर से ‘गुरुआश्रम’ जाना चाहती हूँ," महारानी बोली।
महाराजा बोले, "तुम्हारे गुरु के कहने से ही तो मैंने अपनी बेटी को अपना नाम नहीं दिया और वो फिर से कोई नई कहानियाँ सुनायेगा और तुम फिर से...I"
महारानी बोली, "मैं अपनी बच्ची को कुछ नहीं होने दे सकती। महाराज (वो लाचारी दिखाने लगी।) आपने हमारी बच्ची के लिये इतना कुछ किया तो अब क्यूँ ऐसा? महाराज क्यूँ? गुरुजी ने बताया है कि राजकुमारी दिशा के ग्रह बिल्कुल भी ’राजमहल’ में रहने के लिये नहीं बता रहें हैं। और आज वो क्या बोल रही है, वो डाकूरानी बनना चाहती है। आप ही सोचिए, क्या डाकू ’राजमहल’ में रहते हैं?"
तब चंद्र की पत्नी ओर महारानी की छोटी बहन आई और बोली, "भाई जाने दीजिए ना हमें। मना मत कीजिए। हम गुरु-आश्रम हो आयें," हाथ जोड़कर बिनती की।
महाराजा बोले, "ठीक है। तुम दोनों बहनें मिल आओ गुरुजी को।"
राजकुमारी दिशा डाकूरानी कैसे बनी, जानने के लिए जुड़े रहिए मुझसे...
