जिंदगी के भगदड़ में
जिंदगी के भगदड़ में
जिंदगी के भगदड़ में
जीना भूल गये हम
सोचता रहता हूँ अक्सर
क्यों ऐसा होता हैं ?
उत्कर्ष तो चाहते हैं हम
मगर कुछ कर नहीं पाते
मतलब कहो या मजबूरी
मानवता की हार निश्चित
रक्तरंजित क्रांती नहीं चाहिये
हमेशा जियो और जीने दो की बात हो
सांस्कृतिक ,प्राकृतिक धरोहर है बचाना
दोस्तों ! न ही सिर्फ करना है उसका ढोंग
अच्छा इंसान बने रहना है अब तो
सबके दिलो में राज करना है
चलो फिर से बनाना है
मनमोहक प्यारीसी दुनिया!