बंद करो यार नौटंकी तुम्हारी
बंद करो यार नौटंकी तुम्हारी
बार- बार झूठ पे झूठ बोलते हो
भोली भाली जनता को लुटाते हो
अज्ञान का प्रदर्शन सदा सर्वदा
गिरगिट की तरह रंग बदलते हो
भेष बदलते कभी देश बदलते हो
फरेब, मक्कारी, नौटंकी करते हो
तुम मदारी हो, बन्दर पालते हो
खेल तमाशा दिखाते रहते हो
आतंकवाद, घूसखोरी, कोरोना काल
महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुँच चूका
केवल ढेर सारे सपने दिखाते हो
लाखों का पेन, करोड़ का कोट
तानाशाह जैसे व्यवहार तुम्हारा
जुमलों का सरदार बेशक फिर भी
खुद को गरीब, फ़क़ीर कहते हो
ऐसी फकीरी सबको मिले
मेरा क्या झोला उठाऊंगा
निकल जाऊंगा बोलते हो
आखिर क्यों, कब तक ?
भोली भाली जनता को लुटोगे ?
सबका साथ सबका विकास बोलोगे
पूँजीपतियों की दोस्ती निभावोगे
जनता का क्या खाक विश्वास पावोगे
हर वक्त चुनावी मोड़ पर रहते हो
अज्ञान दिखाते फोटो सेशन करते हो
बहुत हो चूका अब उठाओ झोली
बंद करो यार नौटंकी तुम्हारी