ज़िन्दगी हैरान करती रहे - मेरी प्रार्थना
ज़िन्दगी हैरान करती रहे - मेरी प्रार्थना
यह चाँद पंक्तियाँ आप बीती हैं और आशा करता हूँ आप को प्रेरित करेंगी। मैं चंडीगढ़ निवासी हूँ और मैं आज आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइनिंग का बिज़नेस कर रहा हूँ और वैदिक ज्योतिष हूँ और मैं मेडिकल ज्योतिष में पीएचडी कर रहा हूँ।
"कर लो कुछ समय और ये नौकरी उसके बाद तो अपना ही बिज़नेस करोगे " ये शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं जब मैं श्री नरिंदर जी को मिलने गया था और उन्होंने मेरी जन्मपत्रिका देखते हुए ये कहा था।
ये बात है सितम्बर २०११ की जब मैं अपनी वर्तमान नौकरी से दुखी था और नौकरी बदलने की सोच रहा था। कभी न सोचा था की अपना खुद का बिज़नेस करूँगा क्यूंकि हमारे परिवार में आज तक किसी ने बिज़नेस में कदम नहीं रखा था। खैर मैं मन ही मन सोचता हुआ और मंद मंद मुस्कुराता हुआ कार में बैठा और घर चला आया। मैं कभी कभार उनसे मिलने चला जाता था और अनजाने में उनसे पूछता रहता था की आप मेरी जन्मपत्रिका में क्या और कैसे देखते हो ये सब और कैसे पता चलता की भविष्य में ऐसा कुछ होने वाला है और मेरी बात सुन के वो धीरे से मुसकुरा देते और कहते मिलते रहो और फिर तुम भी सीख लेना।
खैर बात आयी गयी हो गयी और मैं अपनी दिनचर्या में मस्त हो गया और ऐसे ही कब दो साल बीत गए और कब मेरा मन नौकरी से पूरी तरह से हट गया। इसका कारण सिर्फ एक ही नहीं था बल्कि कई कारण थे।
महत्वपूर्ण कारण था मेरी धर्मपत्नी का अपना नक़्शे बनाने का काम करने का मन में आना। अपनी नौकरी के ओहदे के रहते मुझे अच्छे बिजनेसमैन जान पहचान में आने लगे थे / एक दिन ऐसे ही मुलाकात हुई एक अफसर से जिन्होंने अपना घर का नक्शा बनवाना था। बातें करते करते मैंने उनसे ज़िक्र किया और उन्होंने एक मौका दिया और उनको काम पसंद आ गया और उन्होंने काम के अच्छे पैसे दिए और हमें विश्वास बढ़ गया और हिम्मत आ गयी की अपने काम में हम मेहनत कर सकते हैं और अपने पाँव जमा सकते हैं ।
अनजाने में ये शुरुआत थी मेरी धर्मपत्नी के काम करने की इच्छा की और जल्दी ही मैं इतने काम ले आया की अब बीवी से काम संभाले नहीं सम्भल रहा था। हम ७ दिन मेहनत करने में लगे रहे और हमने शिकायत का मौका नहीं दिया अपने क्लाइंट को। यूँ ही दो साल बीत गए और हम ने अपनी कंपनी की रेगिस्ट्रशन भी करवा ली थी और उसके तहत काम करने लगे थे।
फिर एक शाम धर्मपत्नी ने कहा की अगर आप भी हमारे अपने काम में पूरे पूरे शामिल हो जाओ तो हम और भी अच्छा कर सकते हैं।
उस वक़्त तो नहीं लेकिन शाम को खाना खाते हुए श्री नरिंदर की बातें ज़ेहन में आयी और बिजली की तरह मन में भविष्य को लेकर मैं में ज्वारभाटा चल पड़ा और फिर ऐसे ही चलने लगा सिलसिला सोचों का और ज़िन्दगी एक बार फिर से दोराहों पे खड़ी नज़र आयी। अब थोड़ी हिम्मत आने लगी थी क्यूंकि अपना काम अपना ही था , उसमें न वक़्त की पाबंदी न ही कोई बॉस। अपने बॉस खुद ही बनो और काम करो।
यूँ ही चलते चलते कब ४/५ महीने बीत गए और फिर एक दिन अचानक ही मैं में आया और लिख दिया इस्तीफा पत्र और उसके बाद एक महीने की नोटिस क बाद हमेशा हमेशा क लिए जिंदगी की नयी राह पर चलने को त्यार हो गया इंसान।
वक़्त बीतता गया और हम अपना काम बढ़ाते गए और ज़िन्दगी की ख्वाहिशें पूरी करते रहे। बेटा बढ़ा हो गया और ज़िम्मेवारी कम हो गयी और हम मस्ती भरा जीवन बिताने लगे। लेकिन ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी है ना हमेशा हैरान करती रहती।
अंतर्मन में एक बात घर कर गयी थी की श्री नरिंदर ने वो १२ घर बना के मेरा भविष्य देख लिया था और मैं आज उसी राह पे चल पड़ा हूँ और अच्छे से जीवन जी भी रहा हूँ तो क्यों ना ज्योतिष की दुनिया को समझा जाए और इसमें अपना ज्ञान बढ़ाया जाए। बस फिर क्या था लग गया मैं और शुरू हो गया एक नया silsila नया ज्ञान भण्डार का। श्री नरिंदर ने मुझे थोड़ा समझाया और बाकी मेरा अंतर्मन खुद से ही तैयार था कुछ अलग करने को।
आज आठ साल से मैं अपने काम क साथ वैदिक ज्योतिष प्रेक्टीस कर रहा हूँ और लोगों की उलझन भरी ज़िन्दगी सुलझाने में कार्य रत हूँ।
मैं श्री नरिंदर का दिल से धन्यवाद करता हूँ क्यूंकि उन्होंने ना सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि वक़्त से पहले आने वाले मार्ग पर रौशनी डाली और इस तरह मेरी ज़िन्दगी को न सिर्फ हसीं बनाया बल्कि लोगों की ज़िन्दगी सुधारने में कुछ कर सकूँ इस लायक बनाया।
अंत में यही कहूंगा की अपने अंतर्मन की ज़रूर सुनिए और अपने वक़्त को पहचानें और अपने जीवन को सुखी बनाएं।
धन्यवाद।