जिंदगी अनलिमिटेड !
जिंदगी अनलिमिटेड !
पोते ने सुबह जब अखबार में पढ़ा कि बाजार अब खुल रहे हैं, सभी छोटे बड़े दुकानदार सुबह सुबह दुकान की सफाई करने निकल पड़े, पैसा देने वालों की लेने वालों की सूची बनाना है, माल जो खत्म हुआ है वह मंगवाना है।
तब यह नन्हा बच्चा भागता हुआ घर आया, बोला, " दादू सभी की दुकानें खुल रही है, हमें नहीं चलना है क्या ?"
बूढ़े दादा ने पोते की तरफ उदास नजरों से देखा, फिर भीगी आंखों से उजड़ी मांग वाली बहू की तरफ। अपनी भीगी पलकों को पोछते हुए कहने लगा, "आज तेरा पिता होता तो आज दुकान समय पर खुल जाती।"
फिर कुछ सोच कर वह बूढ़ा बिस्तर से उठा और पोते को बोला, चलो छोटे सेठ, चलो तुम्हें दुकानदारी सिखाता हूं। ठीक वैसे ही जैसे सालों पहले तुम्हारे पिता को सिखाई थी।"
यह कहानी उन सभी को समर्पित, जिन्होंने कोरोना काल में अपनों को खोया है, इस विश्वास के साथ कि जिंदगी का यह चक्र कभी नहीं रुकता। हमेशा गतिमान रहता है, और इसके गतिमान रहने में ही जिंदगी की खूबसूरती मौजूद है।
उन सभी के दुख को मैं अपने ह्रदय में महसूस कर सकता हूं, जिन्होंने अपने परिजनों को खोया है, घरों में जिनके उठने बैठने का स्थान अब उनकी यादें दिलाता है। मैं आप के दर्द में बराबर के हिस्सेदार हूं, किंतु हमारे जो परिजन हमें छोड़ कर गए हैं उनमें शायद ही कोई ऐसा हो जिसने हमें कर्म करने का संदेश न दिया हो।
आंधी आती है,आएंगी।
विपदाएं आती है, आएंगी। और अंधकार छा जाता है, छाने दीजिए।
किंतु, कवि नीरज की इन पंक्तियों के प्रकाश में हमें हमेशा आगे ही बढ़ते रहना है:
"लाखों बार गगरिया फूटी,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियां डूबी,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उम्र बढ़ाने वालों,
लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझर कोशिश,
पर उपवन नहीं मरा करता है,
कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।"
पुनः उठे, और अपने दुख को अपने ह्रदय में समेट कर, अपने कर्मवीर होने का अपना कार्य, और अपनी भूमिका संपन्न करें। याद रखें कितनी ही भयावह रात हो, चाहे कितना ही अंधकार हो, किंतु ऐसा आज तक नहीं हुआ कि कभी अंधेरों ने सुबह ही नहीं होने दी।
सुबह होना सकारात्मकता की नियति है, और हमारे लिए यह हमारे जीवन का एक स्थाई भाव है।
उठो, मेरे सेठ लोगों ! अपनी अपनी दुकान, व्यवसाय, नौकरी, कार्य पर चलो। क्योंकि वही से अब हमारे शेष परिजनों के लिए दो समय का भोजन, और हमारे जीवन का हर कार्य संपन्न करने की शक्ति मिलेगी।
ईश्वर से यह प्रार्थना है कि कोरोना काल में बंद वह हर दुकान खुल जाए, वह हर औद्योगिक इकाई खुल जाए, वे सारे धंधे छोटे बड़े आरंभ हो जाए, जो इनके चलाने वालों के घरों में दो समय चूल्हा जलने में मदद देते हैं, और इन दुकान, धंधों पर आधारित, काम करने वाले सहयोगियों के जीवन में रोज बहार लाते हैं।
ईश्वर हम सबकी प्रार्थना को स्वीकार करें, और सारी बंद दुकानों के तालों को खोलकर इस महामारी पर हमेशा हमेशा के लिए ताला जड़ दे।
