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Swapnil Kulshreshtha

Drama Tragedy Inspirational

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Swapnil Kulshreshtha

Drama Tragedy Inspirational

अपने तो अपने होते हैं !

अपने तो अपने होते हैं !

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मैं एक प्रायवेट कम्पनी मेंं बाबू हूँ । हमेशा की तरह कम्पनी में काम कर रहा था। मुझे हल्का बुखार आया शाम तक सर्दी भी हो गई पास ही के मेडिकल स्टोर से दवाइया मंगा कर खाई। 

3-4 दिन थोडा ठीक रहा एक दिन अचानक साँस लेने में दिक्कत हुई । ऑक्सीजन कम होने लगा, मेरी पत्नी तत्काल रिक्शा कर मुझे अस्पताल लेकर पहुंची। सरकारी अस्पताल में पलंग फुल चल रहे थे, मैं देख रहा था मेरी पत्नी मेरे इलाज के लिये डाक्टर के सामने गिड़गिड़ा रही थी। अपने परिवार को असहाय सा बस देख ही पा रहा था । मेरी तकलीफ बढती जा रही थी, मेरी पत्नी मुझे हौसला दिला रही थी कह रही थी, "कुछ नहीं होगा हिम्मत रखो" ( यह वही औरत थी जिसे मेंं हमेशा कहता था की तुम बेवकूफ औरत हो तुम्हे क्या पता दुनिया मेंं क्या चल रहा है ।)

उसने एक प्राइवेट अस्पताल मेंं लड़ झगड कर मुझे भर्ती करवाया। फिर अपने भाई याने मेरे साले को फोन लगाकर सारी बातें बताई उसकी उम्र होगी 20 साल करीबन जो मेरी नजर मेंं आवारा और निठल्ला था जिसे मेरे घर आने की इजाजत नहीं थी। वह अक्सर मेरी गैर हाजरी मेंं ही मेरे घर आता जाता था। फिर अपने देवर को याने मेरे छोटे भाई को फोन लगा कर उसने बुलाया जो मेरे साले की उम्र का ही था जो बेरोजगार था और मैं उसे कहता था "काम का ना काज का दुश्मन अनाज का" दोनो घबराते हुए अस्पताल पहुंचे दोनो की आंखो मेंं आंसू थे दोनो कह रहे थे की आप घबराना मत आपको हम कुछ नहीं होने देंगे।

डॉक्टर साहब कह रहे थे कि हम 3-4 घन्टे ही ऑक्सीजन दे पायेंगे । फिर आपको ही ऑक्सीजन के सिलेंडर की व्यवस्था करनी होगी। मेरी पत्नी बोली डाक्टर साहब ये सब हम कहाँ से लायेंगे ??

तभी मेरे भाई और साला बोले हम लायेंगे सिलेंडर आप इलाज शुरु कीजिये। दोनो वहा से रवाना हो गये। मुझ पर बेहोशी छाने लगी और जब होश आया तो मेरे पास ऑक्सीजन सिलेंडर रखा था । मैंने पत्नी से पूछा ये कहा से आया उसने कहा तुम्हारा भाई और मेरा भाई दोनो लेकर आये है। मैंने पूछा कहा से लाये उसने कहा ये तो वो ही जाने।

अचानक मेरा ध्यान पत्नी की खाली कलाइयो पर गया मैंने कहा तुम्हारे कंगन कहा गये? कितने साल से लड़ रही थी कंगन दिलवाओ कंगन दिलवाओ अभी पिछ्ले महीने शादी की सालगिरह पर दिलवाये थे (बोनस मिला था उस समय ) वह बोली आप चुपचाप सो जाइये कंगन यही है । कही नहीं गये, मुझे उसने दवाइया दी और मैं आराम करने लगा नींद आ गई।

जैसे ही नींद खुली क्या देखता हू मेरी पत्नी कई किलो वजनी सिलेंडर को उठा कर ले जा रही थी, जो थोडा सा भी वजनी सामान उठाना होता था मुझे आवाज देती थी । आज कैसे कई किलो वजनी सिलेंडर तीसरी मंजिल से नीचे ले जा रही थी और नीचे से भरा हुआ सिलेंडर ऊपर ला रही थी। मुझे गुस्सा आया मेरे साले और मेरे भाई पर, ये दोनो कहा मर गये फिर सोचा आयेंगे तब फटकारुंगा।

फिर पडौस के बैड पर भी एक सज्जन भर्ती थे । उनसे बाते करने लगा मैंने कहा की अच्छा अस्पताल है । नीचे सिलेंडर आसानी से मिल रहे हैं, उन्होने कहा क्या खाक अच्छा अस्पताल है, यंहा से 40 किलोमिटर दूर बड़े शहर मेंं 7-8 घन्टे लाइन मेंं लगने के बाद बडी मुश्किल से एक सिलेंडर मिल पा रहा है। आज ही अस्पताल मेंं ऑक्सीजन की कमी से 17 मौते हुई है। मैं सुनकर घबरा गया और सोचने लगा की शायद मेरा साला और भाई भी ऐसे ही सिलेंडर ला रहे होंगे । पहली बार दोनो के प्रति सम्मान का भाव जागा था ।

कुछ सोचता इससे पहले पत्नी बड़ा सा खाने का टिफ़िन लेकर आती दिखी पास आकर बोली उठो खाना खा लो। उसने मुझे खाना दिया एक कोर खाते ही मैने कहा ये तो माँ ने बनाया है, उसने कहा हां माँ ने ही बनाया है। माँ कब आई गांव से उसने कहा कल रात को। अरे वो कैसे आ गई, अकेले तो वो कभी नहीं आई शहर। पत्नी बोली बस से उतर कर आटो वाले को घर का पता जो एक पर्चे मेंं लिखा था वह दिखा कर घर पहुंच गई।

मेरी माँ शायद बाबुजी के स्वर्गवास के बाद पहली बार ही अकेले सफर किया होगा। गाँव की जमीन मां बेचने नहीं दे रही थी, तो मेरा मेरी माँ से मन मुटाव चल रहा था कहती थी मेरे मरने के बात जैसा लगे वैसा, करना जीते जी तो नहीं बेचने दूँगी।

पत्नी बोली मुझे भी अभी मेरी मां ने बताया की आपकी माँ रात को आ गई थी, वो ही घर से खाना लेकर आई है, जो आपकी मां ने बनाया है। मैंने कहा पर तुम्हारी मां को तो पैरों मेंं तकलीफ है उन्हे चलते नहीं बनता है। मेरे ससुर के स्वर्गवास के बाद बहुत कम ही घर से निकलती है, पत्नी बोली आप आराम से खाना खाइये, मैं खाना खाने लगा।

कुछ देर बाद मेरे फटीचर दोस्त का फोन आया बोला हमारे लायक कोई काम हो तो बताना। मैंने मन मेंं सोचा जो मुझसे उधार ले रखे हे 3000 रुपये वही वापस नहीं किया, काम क्या बताऊ तुझे। फिर भी मैंने कहा ठीक हे जरुरत होगी तो बता दूगा और मुह बना कर फोन काट दिया ।

16 दिंनों तक मेरी पत्नी सिलेंडर ढोती रही मेरा भाई और साला लाईन मेंं लगकर सिलेंडर लाते रहे, फिर हालत मेंं सुधार हुआ फिर 18 वे दिन मेरी अस्पताल से छुट्टी हुई ।

मुझे खुद पर गर्व था की मैंने कोरोना को हरा दिया मैं फूला नहीं समा रहा था। 

घर पहुंच कर असली कहानी पता चली की मेरे इलाज मेंं बहुत सारा रुपया लगा है। शहर के बड़े अस्पताल का बिल कई लाख था, कितना ये तो नहीं पता पर मेरी पत्नी के सारे जेवर जो उसने मुझ से लड़ लड़ कर बनवाये थे बिक चुके थे।

मेरे साले के गले की चेन बिक चुकी थी जो मेरी पत्नी ने मुझसे साले की जनोई मेंं 15 दिन रूठ कर जबरजस्ती दिलवाई थी, मेरा भाई जिस बाइक को अपनी जान से ज्यादा रखता था वो भी घर मेंं दिखाई नहीं दे रही थी।

मेरी माँ जिस जमीन को जीतेजी नहीं बेचना चाहती थी मेरे स्वर्गीय बाबूजी की आखरी निशानी थी वो भी मेरे इलाज मेंं बिक चुकी थी ।

मेरी पत्नी से लड़ाई होने पर मेंं गुस्से मेंं कहता था की जाओ अपनी माँ के घर चली जाओ वो मेरा ससुराल का घर भी गिरवी रखा जा चुका था, मेरे निठल्ले दोस्त ने जो मुझसे 3000 रुपये लिए थे वो 30,000 वापस करके गया था।      

जिन्हे मेंं किसी काम का नहीं समझता था वे मेरे जीवन को बचाने के लिये पूरे बिक चुके थे मैं अकेला रोये जा रहा था बाकी सब लोग खुश थे।

क्योकी मुझे लग रहा था सब कुछ चला गया, और उन्हे लग रहा था की मुझे बचा कर उन्होने सब कुछ बचा लिया।

अब मुझे कोई भ्रम नहींं था की मैंने कोरोना को हराया है, क्योकी कोरोना को तो मेरे अपनो ने मेरे परिवार ने हराया था ।

सब कुछ बिकने के बाद भी मुझे लग रहा था की आज दुनिया मेंं मुझसे अमीर कोई नहीं है।


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