रसलपुर गाँव का लड़का..!!!
रसलपुर गाँव का लड़का..!!!
मेरे पिता काफी गरीब परिवेश से थे। संयुक्त परिवार था और कम उम्र में शादी कर देने के कारण घर-गृहस्थी का बोझ भी था। पर पढ़ने का काफी शौक था। जहां से भी होता किताबें उधार माँग कर पढ़ लेते थे। स्कूल में काफी अच्छे नम्बर आये तो मास्टर साहब घर आकर बोलकर गए कि इस बच्चे को पटना विश्वविद्यालय भेजो आगे पढ़ाई करने को।
दादाजी तीन भाईयों में सबसे बड़े थे। पर फैसले तीनों भाई मिलकर लेते थे। आखिरकार तय हुआ कि लड़का पटना जा तो सकता है पर खेती के मौसम में वापिस आना पड़ेगा।
नम्बर अच्छे थे, तो पटना विश्वविद्यालय में इकोनॉमिक्स के कोर्स में दाखिला तो मिल गया। पर होस्टल में कमरा न मिल पाया तो एक कामचलाऊ स्टूडेंट लॉज में जगह मिली। छत इतनी की शुरू होते ही खत्म हो जाती थी। घर से पैसे के नाम पर बस दस से बीस रुपये आते थे, तो पॉकेट बचा कर चलना पड़ता था।
अब हुआ ये कि पटना विश्वविद्यालय उस वक़्त में काफी नामी जगह थी। बड़े घरों के बच्चे गाड़ियों से वहां आते थे, क्लास में और बाहर काफी अंग्रेज़ी का माहौल रहता था। गाँव से आये मेरे पिता शायद ही कुछ समझ पाते थे। उन्होंने अपने रूममेट को भी कहा कि ऐसा ही चलता रहा तो वो फेल कर जाएंगे।
जब एक महीना भर गुज़र गया और इकोनॉमिक्स का कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था। अंग्रेज़ी सर के ऊपर से जा रही थी। फिर एक दिन उन्हें कमरे आते वक्त रामकृष्ण मिशन की लाइब्रेरी दिखी। वो वहाँ गए, और बच्चों की अंग्रेजी की किताबें निकाल ली। लाइब्रेरियन ने देखा तो टोक दिया कि बच्चों के सेक्शन में तुम क्या कर रहे हो। तो पापा ने उनसे कहा कि वो चाइल्ड साइकोलॉजी पर रिसर्च कर रहे हैं। ये बहाना काम कर गया, उन्हें रोज़ चाइल्ड सेक्शन की किताबें पढ़ने की परमिशन मिल गयी।
यूँ कर उन्होंने अगले 6 महीने में अपनी अंग्रेज़ी दुरुस्त कर ली। क्लास में अब लेक्चर थोड़े थोड़े समझ में आने लगे। पर भाषा का वो डर मन में बना रहा। लिखते वक्त लगता कि कहीं सब गलत तो नहीं लिख रहे।
खैर वक़्त जल्दी गुज़रा और परीक्षा आ गयी। पापा ने सारे सवालों के जवाब लिखे तो थे, पर उन्हें लगता था कि सब गलत ही लिखा है। बहरहाल रिजल्ट वाले रोज़ वो चुपचाप कॉलेज के पीछे, गंगा के किनारे, जाकर बैठ गए।
पूरे वक़्त ये सोचते रहे कि बढ़िया था कि खेती ही कर लेते। कहाँ चरवाहा परिवार का लड़का पढ़ने निकला था। बिना मतलब परिवार को अपने जिद के चक्कर में और खर्चा करवा दिया। अब आगे और नहीं बस आज बस्ता बांधो और घर निकलो।
आगे पापा के कॉलेज से करीबी रहे उनके दोस्त और हमारे लिए पासवान अंकल, उन्हें ढूंढते हुए आये। और देखते ही बोले कि, "तुम टॉप करके यहाँ क्या नाटक कर रहे हो। चलो कुछ खिलाओ हम लोगों को।"
रसलपुर गाँव का वो लड़का पहले वर्ष में क्लास में टॉप कर चुका था।।
