Kirti “Deep”

Abstract

4.1  

Kirti “Deep”

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जीतेंगे हम

जीतेंगे हम

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आज यूँ ही बैठे बैठे ख्याल आया की कुदरत का इंसाफ़ तो देखो... वो इंसान जो खुद को इस कलयुग में भगवान से भी ज़्यादा मानने लगा था,जिसे हर घड़ी ये अनुभव होता था कि वो अपने दिमाग़ की शक्ति से इस दुनिया पर राज कर सकता है,वो इंसान जो शायद वक़्त के साथ इतना बदल गया कि वो अपने से छोटे बड़े का, अमीर गरीब का,सही ग़लत का,ईमानदारी बेइमानी का,बेवक़ूफ़ी और समझदारी के बीच का अंतर ही भूल गया। वो इंसान जो इस दुनिया पर सर्व शक्ति के रूप में हावी होना चाहता था,उसे इस प्रक्रति ने एक झटके में जमीं पर पटक दिया और अब शायद प्रक्रति की नाराज़गी इतनी है कि वो इंसान को संभलने का मौक़ा भी नहीं देना चाहती।

और शायद यही न्याय करना प्रक्रति को उचित लग रहा है। कैसे उसने हमें एक पल में सिखा दिया कि ये जीवन हमारे लिए कितना मूल्यवान है। और क्यूँ ना करे प्रक्रति ये न्याय? जब उसकी दी हुई हर चीज़ का हम दुरुपयोग करने लगे हैं,जब उसकी दी हुई शांति की गोद में बैठने के बजाए हम अन्याय के शोर में रहना पसंद करते हैं,जब प्रक्रति के बच्चों के समान जानवरो को हम अपने काम और स्वाद के लिए उपयोग करते हैं,जब चिड़िया के घोंसले वाला पेड़ काट कर हम अपना आशियाँ खड़ा करते हैं,जब पानी की मूल्यता भूल हम व्यर्थ उसे बर्बाद करते हैं,जब गंगा जमुना जैसी पवित्र नदियो को भी गंदा करते है, और जब धीरे धीरे हम प्रक्रति की हर ख़ूबसूरती को मिटाते जा रहे हैं तो फिर क्यूँ वो हमें अपने आँचल में बार बार जीने का मौक़ा देगी? क्यूँ वो हमारी ग़लतियों को हर बार माफ करेगी? क्यूँ ?

खैर प्रक्रति की नाराज़गी ख़त्म तो ज़रूर होगी पर जाते जाते वो हमें बहुत कुछ सिखा कर जाएगी।वो सिखा कर जाएगी कि ये जीवन हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है, ये पेड़ पौधे कितने ज़रूरी हैं, वो साफ़ आसमान कितना ज़रूरी है, खुली हवा में साँस लेने की अहमियत क्या है,

अपनों से मिलने की ख़ुशियाँ क्या है... वो हमें सब सिखा कर जाएगी।

तो चलो साथियों अब इसकी नाराज़गी ख़त्म करने का प्रण लेते हैं।हम प्रण लेते हैं कि फिर से दुनिया में शांति का परचम लहराएँगे, हर जानवर को प्रकृति के बच्चे के रूप में स्वीकारेंगे,अन्याय के ख़िलाफ़ साथ डटकर खड़े रहेंगे,जल ही जीवन का पाठ घर घर में सिखाएँगे, आसमा के नीले रंग को फीका नहीं पड़ने देंगे,गंगा जमुना को फिर से गंदा नहीं होने देंगे।हम प्रण लेते हैं कि प्रक्रति की जो ख़ूबसूरती हमने छीन ली थी उसे फिर से वो वापस लौटाएँगे और उसकी इस ख़ूबसूरती का हमेशा ध्यान रखेंगे। मैं इस प्रण के लिए तैयार हूँ और आप.....?


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