शुक्रिया
शुक्रिया
जब भी फ़ेसबुक खोलो तो कोई ना कोई एक पोस्ट ज़रूर दिखायी पढ़ती है जिसमें स्त्री की पीढ़ा ( चाहे वो पति के द्वारा दी गयी हो, या घर की सभी ज़िम्मेदारियों को अकेले ही उठाने की हो, या बच्चों को अकेले सम्भालने की हो ) आदि इत्यादि देखने या पढ़ने को मिल ही जाती हैं । जिसे देख कर दुःख होता है कि यूँ तो अब जमाना बहुत बदल गया है पर कहीं ना कहीं स्त्री आज भी पूर्ण रूप से आज़ाद नहीं है। आज का लेख मेरा इन सभी बातों का उपहास करना या इनसे असहमत होना बिल्कुल नहीं है बल्कि मैं ऐसी स्त्रियों की प्रशंशा करती हूँ जो सब कुछ सह कर भी अपने कर्तव्य को बहुत अच्छे से निभाती हैं। पर आज का मेरा लेख स्त्री जीवन में भी सकारात्मकता होती है , ख़ुशियाँ होती हैं, अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन जीने की आज़ादी होती हैं इन्ही सभी बातों पर है और इन्ही से जुड़े खुद के अनुभव को मैं आप सब के साथ साँझा करना चाहती हूँ।
बात 9 मई की है जब शाम को अचानक मेरा पूरा शरीर दुखने लगा और देखते ही देखते थोड़ी देर में मुझे बुख़ार आ गया। डरना ज़ाहिर था क्यूँकि कोरोना का कहर हर जगह है। तुरंत डाक्टर से फ़ोन पर संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि हल्के लक्षण हैं तो हॉस्पिटल जाने की ज़रूरत नहीं है बस जो मैं दवाई बता रहा हूँ वो खाइए और खुद को दो हफ़्तों के लिए आइसोलेट कर लीजिये । अगले ही क्षण पतिदेव सारी दवाइयाँ, आक्सी मीटर,स्टीमर ज़रूरत का सारा सामान ले आए और मैं कमरे में क़ैद हो गयी। पर मन बहुत परेशान और डरा हुआ था क्यूँकि घर में पति के साथ साथ मेरा डेढ़ साल का बच्चा भी है। पूरी रात बस यहीं सोचती रही कि अगर मैं आइसोलेट हो गयी तो बच्चे को कौन देखेगा? घर का काम कौन करेगा? खाना कौन बनाएगा? कैसे काम चलेगा? ऐसे हज़ारों सवाल मन में चलने लगे और मुझे ऐसे लग रहा था कि अगर मैं कमरे में क़ैद हो जाऊँगी तो जैसे सारी दुनिया का काम ही रुक जाएगा। छोटे छोटे ऐसे कई सवालो ने मुझे ऐसे घेरा की कब सुबह हुई पता ना चला।
सुबह जब पति ने तबियत का पूछा तो ना जाने क्यूँ मुझे रोना आ गया क्यूँकि सबसे ज़्यादा चिंता मुझे मेरे बच्चे की थी और उस से जुड़े सभी अच्छे बुरे सवालों भरे सफर को मैं रात में पूरा कर चुकी थी तो इसलिए मन बहुत परेशान था और मुझे इतना परेशान देख पति ने फिर से डॉक्टर से बात की और डॉक्टर ने मुझे ये विश्वास दिलाया की मुझसे मेरे बच्चे को कोई ख़तरा नहीं है बस मुझे हमेशा मास्क पहन कर रखना है, तब जाकर दिल को तसल्ली हुई और एक सकारात्मक सोच के साथ मैंने अपना आइसोलेशन पीरियड जारी रखा, और मात्र चार दिन के बाद से ही मैं काफ़ी अच्छा महसूस करने लगी थी। और दो हफ़्ते स्वस्थ रहकर मैंने अपना आइसोलेशन पूरा किया।
इन दो हफ़्तों में मैं बिल्कुल चिंता मुक्त थी, शांत थी, और खुश थी और इसका पूरा श्रेय मैं अपने पतिदेव को देती हूँ जिन्होंने एक बार फिर ये साबित कर दिया की अच्छा जीवनसाथी आपकी हर परेशानी में आपसे पहले आकर खड़ा रहता है फिर वो चाहे पति हो या पत्नी ।उन्होंने ये साबित कर दिया की अच्छी देखभाल सिर्फ़ एक औरत ही नहीं मर्द भी कर सकता है और ज़रूरत पड़ने पर घर को अच्छे से सम्भाल भी सकता है। ये दो हफ़्ते जिस तरीक़े से उन्होंने मेरी देखभाल की, बच्चे को सम्भाला,घर के रोज़ के छोटे छोटे ज़रूरी काम किए और साथ ही साथ अपना ऑफ़िस किया वो सब क़ाबिले तारीफ़ हैं और शायद इतने अच्छे से तो मैं भी मैनेज ना कर पाती। हर दो घंटे के अंतराल पर मेरा आक्सीजन लेवल,हार्ट रेट.बी पी सब नोट करना, डॉक्टर से लगातार संपर्क में रहना, टाईम से मेरी दवाइयाँ,खाना सब देना, बच्चे के लिए वक़्त निकाल उसके साथ खेलना उसे छत पर ले जाना ये ऐसे बहुत से काम थे जो वो इतने अच्छे से कर रहे थे कि मुझे किसी भी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही महससूस नहीं हुई ।
इन सबके बीच उनका एक काम था जिसकी वजह से शायद मैं बहुत जल्दी ठीक हो रही थी और वो था अपने व्यस्त भरे दिन में से रोज़ थोड़ा सा वक़्त मेरे लिए निकालकर मुझसे बातें करना । कमरे के बाहर मास्क पहने मेरे पति कमरे के अंदर मास्क पहने अपनी बीवी का कई सकारात्मक और हंसी मज़ाक़ भरी बातों से मन लगाए रखते थे और हमेशा मुझे कहते थे कि ये समय बस आराम करने का है घर की चिंता छोड़कर सिर्फ़ आराम करो क्यूँकि दो हफ़्ते लगातार आराम करना किसी भी महिला के लिए मुमकिन नहीं । ये सुन कर बस यहीं सोचती कि बुरे के साथ साथ अच्छे मर्द भी होते हैं जो वाक़ई में औरत को इंसान समझते हैं, उन्हें खुश रखते हैं और मुझे गर्व है कि ऐसी सोच वाला व्यक्ति मेरा पति है।
यक़ीन मानिए कि इन दो हफ़्तों में मैं आइसोलेट होने के बावजूद बहुत खुश थी क्यूँकि इन दिनो मैंने वो सभी काम किए जिन्हें मैं बहुत वक़्त से करना चाहती थी।अपने घर को सजाने के लिए छोटी छोटी चीज़ें बनायी, पेंटिंग करी, किताबें पड़ी ,कवितायें लिखी,अपनी पसंद की पिक्चर देखी और खूब आराम किया।
आज मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ और फिर से अपना घर सम्भाल रही हूँ,पर अब पहले से भी ज़्यादा खुश रहने लगी हूँ क्यूँकि एक बार फिर मेरे पतिदेव ने हमारे रिश्ते के प्यार और विश्वास को और गहरा बनाने में मदद की है। पति पत्नी पर यूँ तो हँसने के कई जोक्स बनते हैं पर सच में इस रिश्ते से खूबसूरत रिश्ता कोई नहीं है ,इस रिश्ते से सच्चा रिश्ता कोई नहीं है।
इस लेख को लिखने का उद्देश्य मेरा बस ये है कि अगर आपके हमसफ़र ने आपके जीवन का सफ़र खूबसूरत बनाने में अपना पूरा योगदान दिया है तो उनके इस सहयोग को हमेशा सराहिए, प्रशंशा कीजिए क्यूँकि जिस तरह किसी बात पर हम अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं उसी तरह समय समय पर उनका शुक्रिया भी ज़ाहिर करना चाहिये।
मेरे पास शायद शब्द तो नहीं हैं अपने पतिदेव का शुक्रिया करने के लिए पर फिर भी आपका बहुत बहुत धन्यवाद और धन्यवाद उस ऊपर वाले का जिसने मुझे आपके जैसा जीवनसाथी दिया।