सुरभि रमन शर्मा

Drama

5.0  

सुरभि रमन शर्मा

Drama

जीने दो न हमें भी थोड़ा

जीने दो न हमें भी थोड़ा

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“वाउ!! ममा आप कितनी खूबसूरत लग रही हो इस ड्रेस में अब ऐसे कपड़े क्यों नहीं पहनती आप? कितनी स्मार्ट लग रही है और ये भैया, पापा के बगल में कौन खड़ा है?”


“कोई नहीं आराध्या जा चाय बना ला”


“ऐसे कैसे कोई नहीं, साथ मे है तो पिक में”


“आराध्या हर बात जानना जरूरी नहीं जा चाय बना के ला”


“हुँह आप तो बस मुझे ऑर्डर ही देते रहते हो, जा रही हूँ”


“हाँ जा”


“ममा अंकल की ये तस्वीर रह कैसे गयी फाड़ के फेंको इसे, आराध्या को बिल्कुल पता नहीं चलनी चाहिए ये बातें”


“हाँ बेटा” आँखो में दो बूँद आँसुओं के साथ पिछली बातें भी छलक उठी


“वाह भाभी, आज तो पूरे घर में गर्मागरम पकोड़े की खुशबू फैली है” चेतन ने कहा तो भाभी भी मुस्काते हुए बोली,


“आपके लिए भी बने है देवर जी आइए”, हँसी मजाक का दौर चल रहा था जो आने वाले तूफान से अनजान था


मोबाइल बजा, “अरे यार रचना थोड़े गेस्ट आने वाले है, थोड़ी देर मदद के लिए आ सकती है क्या”,


“हाँ आ तो जाऊँगी पर आराध्या...”


“अरे भाभी आप चिंता मत करो, मैं संभाल लूँगा बच्चों को आप जाओ”, चेतन ने कहा


“ओके देवर जी वैसे भी आराध्या अभी सो रही है पार्थ भी अभी दोस्तों के साथ खेलने चला जाएगा तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी आप टीवी देखिए मैं जल्दी ही आ जाऊँगी”


जब रचना घर लौटी तो उसकी मासूम 3 साल की कली आराध्या को हवस के कांटो से तार तार किया जा रहा था उसे नोचने मसलने के लिए वो उसका थोड़ी देर का रक्षक उसे लूटने के लिए तैयार था रचना को देखते ही उसके होश उड़ गए धक्का दे कर भागना चाहा, पर तब तक पार्थ भी आ चुका था और उस 13 साल के बच्चे को थोड़ी दुनियादारी समझ आने लगी थी उसने बड़ी चालाकी से भागते हुए चेतन को धक्का देकर गिराया और तुरंत पापा और पुलिस को फोन किया फिर वही जो यहाँ इस तरह के केस में होता है साल दर साल मुकदमा और लोगों के सवाल जवाब से बचने और कोई बेटी के दामन पर किचड़ ना उछाले की सोच से जगह बदलाव


अगर बालिग लड़की के साथ ये हादसा हो तो अपराधी के कुत्सित मानसिकता से पहले सवाल लड़कियों के कपड़े पर उठता है, पर अबोध बच्चियों के साथ जब इस तरह की हरकत हो तो दोष किसका?


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