जीजी माँ
जीजी माँ
आए दिन पढ़ती हूँ बीमारियों की खबरें
दिल बैठ जाता है। जाने क्यों मैं भूल ही नहींं पाती उस राखी के दिन को, दिन भी ऐसा, किसी बहन को भूले ना भुलाए।
अखबार पढ़ती हुई जीजी माँ मन में सोच रही थी। बेल बजती है।
"कौन है?"
"आती हूँ इस उम्र में भी सीढ़ियां कहाँ चढ़ पाती हूँ। लगता है अब बुड्ढी हो गई हूँ"
"मैं रुचि"
"आज इतनी देर क्यों कर दी, आने में?"
"क्या करें स्कूल बुलाए थे। बच्चे का बाप दारू में पैसा उड़ा देता है। 3 महीने की फीस नहींं पटाई। परीक्षा सर पर है, बच्चे बैठने नहींं देंगे पेपर में"
"कौन से स्कूल में है तेरी बिटिया?"
"पास वाले लालबाग वाले"
"अच्छा कितनी फीस देनी है?"
"10,000 जमा करना है"
"तो क्या कर दी?"
"कहाँ से करूँ? झोपड़ी का किराया, बिजली का बिल, बच्चों का कपड़ा, खाना"
"चल मैं बात करती हूँ। जो हुआ कर दूंगी"
"बहुत अच्छे हो आप"
"जल्दी काम कर"
एक समाज सेविका है जिन्हें सब जीजी माँ कहते है।
"सारा दिन फोन, किसका है?"
"हेलो, हाँ जी कैसे हो?"
"बहुत खुश, तुम सब कैसे हो?"
"आपके बिना अधूरे जी आप आए नहींं छुट्टियों में"
"अब क्या आए",
"अरे ऐसा मत बोलो आप लोग नहींं आते तो लगता ही नहींं छुट्टियां है। कभी तो हमें सेवा का मौका दो"
"हाँ अगले हफ्ते जीजा बाहर जाएंगे, आती हूँ। वापसी में लेते जाएंगे"
"जीजी मेरे लिए बनारस की साड़ी लाना"
"और क्या चाहिए लिस्ट बना दो"
"हाँ बना दे। इस बार अचार, पापड़, मुरब्बा सब पहले ही मैंने बना दिया है"
"आप कुछ मत लाना, बनाना भी नहींं"
"हाँ बड़ी सयानी हो गई हो"
"जीजा आपने तो सिखाया था आपके जितना अच्छा तो नहींं बना लेकिन बहुत अच्छा बना है और बताओ जीजी माँ"
"इस बार मेरी क्लास कर"
"हाँ जरूर, मगर एक हफ्ते में क्या क्या करूंगी"
"ज्यादा नहींं बस योगा कर लेना बाकी कुछ करने की जरूरत नहींं"
"आजकल सब डाइटिंग पर है।तली चीजे कोई नहींं खाता, आपको बहुत शौक है ना सबको बना बना कर खिलाने का। बच्चे भी आपनी पसंद का ही खाते है"
"क्या करें बचपन में भाइयों को बना कर देती थी तो लगता है आज भी मौका मिले तो छुटकू को बनाकर दूं प्यार से बनाकर खिलाऊँ। क्या पता के और कितने दिन के मेहमान है"
"जीजी, ऐसा मत कहो, फोन रख देंगे"
"अच्छा बाप रे नहींं कहती"
भाभी मैं जाऊं ?"
"रुचि चलो बड़की बहू फोन रखते है"
"तेरा काम हो गया"
"नहींं छत में कपड़ा उतार कर लाती हूँ"
"बर्तन नहींं माँजी, सामने वाली भाभी का काम करके आती हूँ। उनको मीटिंग में जाना है। आकर करती हूँ आपका काम बाकी बचा',
"चल ठीक है जल्दी आना"
"कहाँ हो? फोन नहींं उठाते"
"मीटिंग में था तो साइलेंट में था"
"चलो कोई नहींं"
"आप कब जा रहे हो। हम भी चलेंगे मायके, उतार देना"
"बुड्ढी हो गई हो मायके का मोह नहींं गया"
दोनों हंसते है।
"क्यों नहीं जाए? तुम भी अपने गांव जाते हो। हम क्यों नहींं जाए बड़की, छुटकी बहू से मिलने?"
"तुम्हारे तो पैरों में दर्द है, कैसी जाओगी ?"
"तब तक ठीक हो जाएंगे। हमारी भी टिकट करा दो"
"बड़की बहू का सामान लेने बाजार जा रहे है। खाना बाहर ही खा लेगें, ह में लेने आ जाना"
जीजी माँ की आदत है मायके जाने से पहले एक हफ्ता शॉपिंग करती है। हर बच्चे, हर बहू सब के लिए कुछ न कुछ लाती है और बहुत अच्छा लाती है। न जाने उन्हें कैसे पता चल जाता है किस को क्या चाहिए रहता है। वह हर रिश्ते को दिल से निभाती है। उनकी खुद की कोई औलाद नहींं। अब दूसरे बच्चों की सेवा में समय निकालती थी। कई लोगों ने उन्हें बोला, बच्चा गोद लो। मगर वह कहती मेरे पास तो इतने सारे बच्चे है एक गोद क्यों लूं? कई आश्रम, अनाथालय स्कूलों से वह कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई है और रोज बनारस के घाटों की सफाई करती है।
न जाने कैसा अजीब सा रिश्ता है एक अलग ही सुकून है घाटों में। हजारों लोग दर्शन के लिए जाना जाने कहाँ कहाँ से आते है।
"बड़की बहु हम निकल रहे है सुबह पहुंच जाएंगे"
"हाँ जीजी स्वागत है क्या बनाऊं"
"कुछ नहींं"
"यह क्या होता है"
"हमको भी नहींं पता"
सुबह पहुंच जाती है। सब जल्दी उठ जाते है उनके स्वागत के लिए। बच्चों की छुट्टियां है मगर आज ना जाने कैसे सब जल्दी उठ गए, जल्दी नाश्ता बन गया।
"खूब स्वादिष्ट खाना बनाती हो। बड़की तुम भी खाना खा लो"
"जी, जीजी माँ खा लेते है तुम इतनी पतली कैसे हो गई?"
"मैदा चावल शक्कर बंद कर दिया है। पहले बहुत खाए है और आपके भाई को खिलाए है अब नहींं"
"तुम क्या खाती हो"
बच्चे कहते है मम्मी फल दूध ज्यादा लेेती है।
"सन्यासी बनोगी क्या?"
"नहींं दीदी, जब से भुगते है हिम्मत नहींं होती है"
"कोई बात नहींं, शाम को हम चलेंगे योगा क्लास। अभी हम अपने कमरे में आराम कर रहे है बच्चे आए तो भेज देना"
"हाँ, जीजी पहले भाई से मिलेंगे"
"हाँ ऊपर मिल लेते छुटकू से",
बच्चे हंसते है। पापा बड़े हो गए है।
"हमारे लिए तो छोटे ही है"
"दवाई खाली?"
"हाँ जीजी आपको कोई तकलीफ तो नहींं हुई आने में"
"बस जीजा खराटे लेते है सो नहींं पाते"
सभी हँसते है। खाना लेकर निकले थे जीजा ना किसी गरीब को देखा तो उसे दे दिया खुद खाए नहींं हमारे लिए थोड़ा बचा है हम भी नहींं खाए। एक बुजुर्ग महिला सफर कर रही थी अकेले टिकट कंफर्म नहींं थी उनकी दो सेट थी 1 सीट में सफर किया एक उन्हें दे दी और जीजा सो गए और हम बैठे रहे।
"छुटकू आराम कर लो"
"आप आराम करो जीजी कुछ लगे तो हमें आवाज दे देना वैसे जीजा के खराटे आपको सोने नहींं देते फिर आप सफर में बैठ कर आई है। आप आराम करे जीजी"
"हाँ बड़की, जीजी चलो हम दूसरे कमरे में बात करते है आराम करते है"
"हम आपका एहसान कभी नहींं भूल पाएंगे। पिछले साल की तो बात है जी आप के कारण तो नया जीवन मिला है"
"अरे तुम सब ही तो हमारा जीवन हो"
"जीजी बचपन से माँ-बाप नहींं देखेे, चाचा चाची ने पाला। माँ होती तो आप की तरह होती हमारी, जीजी आप तो मेरी माँ से बढ़कर हो"
"कितना कुछ बदल गया है।1 साल में बड़की"
"हाँ जीजी"
"हम कह कर थक गए खान-पान का ध्यान दो। मत पीओ, गैस की हमेशा से इनको परेशानी, जब जाए दवाई ले आया फिर कुछ दिन बाद दर्द होता फिर आप के कहने पर चेकअप कराया था हाँ बड़की समय रहते बीमारी पता चल जाए तो इलाज आसानी से होता है"
जीजी क्या क्या नहीं किया, शहर में कितने डॉक्टर को दिखाया था। आखिर जीजा ने बताया हैदराबाद तक जाकर इलाज हुआ है। आईसीयू में थे तो हमारी तो जान ही निकल गई थी। आप नहींं होती तो हम कहाँ रहते है? हमारी तो किडनी खून सब अलग है। आप ने एक नया जीवन दिया है आप ने बिना समय लगाए हाँ कहा और इनको किडनी दी। फिर भी आप एक बार नहींं कहती"
"क्या कहे हम किसी के काम आ गए! क्या ये कम है"
"फोन बज रहा है आपका"
"जी क्या हुआ भाभी जी बिटिया पास हो गई। आप तो फीस पटाई थी नहींं तो मास्टर कहाँ बैठने देता"
"बधाई हो, आकर मिठाई खाएंगे"
"कौन था जीजी",
"वह घर में काम करती है रुचि उसकी तीनों बेटी पास हो गई"
"जीजी राखी में भाई बहन को कुछ देता है। अपने भाई को दे दिया था"
"अरे तुम तो कोशिश की ना"
"दीदी आपने किडनी नहींं घर को जीवनदान दे दिया है"
"अरे तुम ही सब हमारे बच्चे हो तुम्हारे लिए नहींं करेंगे तो किसके लिए करेंगे"
"हम आपके जैसे सच्ची औरत से नहींं मिले। किताब में पढ़ते है औरत का दिल बड़ा होता है, औरतें ईमानदार होतीे है। रिश्तो को दिल से निभाती है मगर देखे नहींं थे। अब लगता है देख लिए किसी देवी से कम नहींं हो जीजी माँ"
"आराम करते है शाम को उठा देना"
शाम होते ही घर में चहल-पहल थी दीदी के आने से और बड़की बहू, जीजी माँ को योगा क्लास ले जाती है। करोड़ों का शरीर ईश्वर ने दिया है मगर उसकी कदर हम सब नहींं करते। जब हमें कोई बड़ी बीमारी होती है, जब कोई बड़ी घटना होती, तब हम इसकी कीमत समझते है। कुछ ऐसा ही कई लोगों के साथ होता है। तभी वह सुधारते है और अपना खानपान सुधारते है। ऐसे हमारे आस पास ना जाने कितने लोग है। कुछ ऐसा ही बदलाव मेरे जीवन में आया। जीजी माँ का हाथ मेरे सर पर था। जीजी माँ की जितनी तारीफ करो उतनी कम है। योगा क्लास के बाद अपने अनुभव सुनाती बड़की बहू के आंसू निकल आते है और हमने योगा क्लास ही जीजी माँ के कहने पर खोली ताकि हम निशुल्क लोगों को जानकारियां दें। उन को होने वाली बीमारियों से बचा सके। जब कोई एक घर का बीमार होता है बाकी सब का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। हमने बहुत करीब से महसूस किया है और हम नहींं चाहते बीमारियों के चलते आए दिन सबके घर परेशानियां हो। इसलिए आज से संकल्प कीजिए कि आप भी हमेशा योगा करेंगे।
औरो को सिखाएंगे ताकि ह में लोगों की दुआएं मिले और अच्छा स्वास्थ्य दे सके।
हम जीजी माँ की तरह हजारों के जीवन को तो ना बदल पाए मगर हम कोशिश जरूर करेंगे कि हमारे पास जितने लोग योगा सीखने आये, उन सब के जीवन में एक अद्भुत बदलाव लाये।
"तन और मन से आज का अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस जीजी माँ को समर्पित है, जिनकी वजह से हम सब यहाँ है"
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता है। अगले ही दिन खबर छपती योग की शक्ति से हर बीमारी का इलाज संभव हुआ। जीजी माँ खबर पढ़ती हुई मन ही मन खुश होती है।
