जीबी रोड
जीबी रोड
रोज़ की तरह आज की शाम भी बहुत प्यारी थी।दिल्ली की सड़कों पर चक्कर काटते हुए राजन को आज कुछ साल बीत गए थे।इन्हीं सड़कों और गलियों से उसकी बहुत पुरानी पहचान थी।अचानक प्रीत विहार के बस स्टैंड पर एक युवती की झलक उसे दिखाई दी,चेहरा भी कुछ उसे जाना पहचाना सा लगा था। वह अपनी कार को सड़क के किनारे लगाकर उसे देखना चाहता था परन्तु बस के लिए लाइनों में लगे लोगों के हुजूम में वो कभी छिप जाती कभी नज़र आ जाती थी।राजन ने सोचा मैं अनायास ही क्यों ऐसी हरकत कर बैठता हूँ? किसी अनजान को देखने के लिए इतना अधीर क्यों हो जाता हूँ?इसी उधेड़बुन के साथ वो कार में बैठ कर अपने घर की ओर चल पड़ा।
राजन श्रीपति मिश्र की इकलौती संतान था जो कि अपने समय में रईसी की मिसाल माने मने जाते थे।ऐसे में पुत्र का मनचला होना कोई बड़ी बात नहीं थी।राजन नलिनी का पड़ोसी भी था।दोनों साथ-साथ पढ़े लिखे और प्रीत विहार की गलियों में साथ साथ खेला भी करते थे।
नलिनी के पिता का देहांत बहुत पहले हो चुका था इसलिए उनके पास राजन की तरह आलिशान महल तो नहीं था पर सर छुपाने को टूटी-फूटी ही सही छोटी सी झोंपड़ी तो थी ही।वह अपनी माँ के साथ रहती थी।उनके पास बहुत पैसा तो नहीं पर स्वाभिमान की दौलत ज़रूर थी।नलिनी भी अपने माँ-बाप की अकेली संतान थी।जीवन की बगिया भरी पूरी थी।अचानक उस बगिया के माली यानि पिता की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया।हर एक निगाह भौंरा बनकर उसे चूस लेना चाहती थी।हर एक हाथ उसे दबोच लेने और मसल देने को तैयार पड़ा था।नलिनी नाम के अनुरूप ही बला की खूबसूरत भी थी। जवानी की दहलीज़ पर खडी़ नलिनी प्यासों को शरबत सी लगती थी।उसके हुस्न का जाम पीने के लिये लोग आहें भरते उसकी दहलीज़ के चक्कर काटते दिखाई देते थे।ईश्वर ने उसे रूप का खज़ाना दे दिया था,बला की खूबसूरत थी वो।एक तो पिता का साया नहीं और ऊपर से यह रूप।उसका जीना दुश्वार सा हो गया था।लोगों की नज़रों से बचाती,छुपती-छुपाती कैसे भी अपने को सुरक्षित रखने की हर मुमकिन उसकी कोशिश होती थी।पिता एक दुकान में मुनीम थे,उन्हीं की कमाई से घर का सारा खर्च चलता था।अब वे रहे नहीं मजबूरी में माँ ने दूसरों के घरों में साफ़ सफ़ाई का काम करने का बीडा़ उठाया।नलिनी भी अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन दे लेती थी जिससे माँ बेटी की आमदनी से दो जून का खाना,कपडा़,दवा मयस्सर हो जाता था।नलिनी ने कई बार अपनी पढ़ाई रोकनी चाही पर पढ़ने की ललक ने उसे ऐसा करने नहीं दिया।जैसे ही नलिनी ने अपनी उम्र का सोलहवां बसंत पार किया उसकी माँ ने उसे राजन से ज़्यादा मिलने को भी मना कर दिया,वो नहीं चाहती थी कि बेटी पर कुछ दाग़ आए।बडे़ घर के बच्चे केवल अपनी मौज मस्ती के लिये ही ग़रीबों का इस्तेमाल करते हैं।यह नलिनी की माँ हमेशा कहा करती थी।पर होनी को किसने रोका है और नसीब के लिखे को किसने बदला है।इसी तरह राजन और नलिनी के बीच प्यार के बीज अंकुरित होते रहे थे।
पढ़ाई के साथ-साथ कमसिनी का प्यार भी परवान चढ़ने लगा।अंततः 12 वीं की परीक्षा भी आ गई गयी दोनों अपनी-अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गए।परीक्षा ख़त्म होते ही और रिजल्ट निकलने के दरमियान जो भी वक़्त मिला दोनों बेहद क़रीब आ गए।कुछ दिनों बाद रिजल्ट भी आ गया,दोनों ने अव्वल नंबर से पास किया था।
राजन के माता-पिता के आदेशानुसार राजन को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाना पड़ा परन्तु नलिनी के पास आगे पढ़ाई के लिए कोई ज़रिया नहीं था।ऐसे में नलिनी ने घर के बाहर भी जाकर ट्यूशन लेना शुरू कर दिया।एक तो ग़रीबी और उपर से उम्र की बीमारी ने नलिनी की माँ को तोड़ कर रख दिया था।एक दिन बीमारी और लाचारी से जूझती हुई वो दुनिया से चल बसी।माँ के बिना नलिनी बे-सहारा और राजन से दूरी को लेकर खुदको पहले से ज़्यादा असुरक्षित महसूस करने लगी।प्यार का वो सिलसिला खतों तक सिमट कर रह गया।धीरे-धीरे एक दिन वो भी समाप्त हो गया। इस भीड़ भरी दुनिया में नलिनी अकेली रह गई गयी।राजन का इंतज़ार करते-करते नलिनी पूरी तरह अकेली होकर टूट गयी।उसके चारों तरफ़ सिर्फ़ दलदल थे ज़रा सी चूक और वो उस दलदल में डूब सकती थी।
किसी तरह ट्यूशन पढ़ा कर गुज़ारा और ख़तों के ज़रिये अपना दुख लिखती और पते पर भेजती रही परंतु कोई जवाब नहीं आया।कभी-कभी अपनी यादों के राजकुमार को सीने से लगाए ख़ुश हो लेती थी। नलिनी की ज़िंदगी में अंधेरों के सिवा कुछ भी नहीं बचा था अब।वो उस इंतज़ार में अपने को दुनिया से बचाए प्यार के वादों के साथ सिसक सिसक जीती रही।
एक दिन उसे पता चला कि राजन वापस भारत लौट आया है परंतु उसने अपनी दिल की बस्ती में किसी रईसजा़दी विदेशी को बसा लिया है।नलिनी शीशे की तरह चटख कर टूट बिखर गई।
उसे सबके घर जा जाकर टियूशन पढ़ाना पड़ता था।एक बच्ची के पिता उसे हमेशा गन्दी नज़रों से देखा करते थे,पर लाचार और बेबस उसकी ज़िंदगी की गाडी़ भी तो इसी ट्यूशन की पटरी पर ही दौडा़ करती थी।
अगस्त का महीना था काफी तेज़ बारिश हो रही थी, नलिनी उस बारिश में जब उस बच्ची के घर में ट्यूशन के लिये पहुंची तो नलिनी बुरी तरह से भीग चुकी थी।पूरा कपडा़ उसकी देह से चिपक गया था,देह और कपडे़ का फर्क ही नहीं दिखता था।आज घर में मैमसाहिबा भी नहीं थी।वो घर लौट आने के लिये जैसे ही पलटी उस बच्ची के पिता ने उसे रुक कर जाने और कपडे़ सूखने तक ठहर जाने के लिये कहा।बारिश हलकी हो जाने के इंतजा़र में नलिनी बैठ तो गई पर उसकी निगाहों ने किसी अनहोनी को भांप लिया था,वो सतर्क थी।बारिश थमी तो वो अपना बैग उठाये मेन दरवाज़े की तरफ़ बढी़।अचानक एक मज़बूत पंजे ने उसे अपनी ओर खींच कर दबोच लिया।एक चीख़ के साथ वो बेहोश थी।जब तक उसे होश आया उसकी अस्मत तार-तार हो चुकी थी।वो खुदको समेटे पुलिस कम्प्लेन भी करने गई,तो वहां भी उस पर बदकार-बदचलन का लेबल लगा कर भगा दिया गया।
उसने फैसला किया ऐसे जीने से तो मर जाना बेहतर है।घंटों रोड के किनारे गुमसुम दर्द से जूझती बैठी रहने के बाद,वो अचानक तेज़ कदमों से मेट्रो रेल लाइन की तरफ़ चल पड़ी।
जैसे ही नलिनी ने पटरी पर कूदना चाहा,एक औरत ने उसे लपक लिया और एक जो़रदार थप्पड़ उसके गालों पर जड़ दिया।उसने कड़क आवाज़ में पूछा,ये क्या करने जा रही थी तुम? ज़िंदगी अनमोल है ये मिलती नहीं, इसे जीना सीखो।इतना सुनते ही नलिनी उसके गले से लग कर काफ़ी देर तक रोती रही और अपनी सारी आप-बीती उस महिला को सुना डाली।
कुछ देर बाद उस महिला ने जिसका नाम सन्नो था उसने नलिनी से पूछा क्या तुम मेरे साथ चलोगी?नलिनी ने पूछा कहाँ? उसने उत्तर दिया जहां प्यार और सुकून के लिए बोलियाँ लगती हैं।जहाँ दुखों के मुँह पर दौलत की जूतियाँ बरसतीं हैं। वहाँ,चलोगी? नलिनी आश्चर्य में डूबी लेकिन कुछ देर सोचने के बाद बोली हाँ।सन्नो ने कहा नलिनी जिसे दुनिया जी.बी.रोड के नाम से जानती हैं वहीं हमारा ठिकाना है चलो चलें।यहां इन गलियों में लोग पैसे देकर कुछ देर के लिए प्यार ख़रीदते और इस्तेमाल करते हैं।यहाँ प्यार महसूस नहीं किया जाता,प्यार बेचा और ख़रीदा जाता है।
नलिनी के पास बचा लेने के लिये कुछ था भी नहीं।वहां उसके पास एक महफूज़ आशियाना था और सन्नो भी।वो चल पड़ी सन्नो के साथ। कालचक्र वक़्त के साथ आगे बढ़ता रहा और ज़िंदगी की गाडी़ आगे सरकती रही।
एक शाम ग्राहक के इंतज़ार में नलिनी को बस स्टैंड पर टहलते राजन मिला।वो अपने मनचले स्वभाव की वजह से जैसा था उसी अंदाज़ में मचलता उसके करीब जैसे ही आया चौंक पडा़।उसके मुँह से अचानक निकल पड़ा नलिनी तुम? नलिनी ने भी पलट कर रुखे लहजे में कहा, हाँ मैं !और फिर नलिनी ने अपना मुँह दूसरी तरफ़ फेर लिया।राजन को मानो बिजली का एक जो़रदार झटका लगा हो,उसकी सारी करतूतें उसे कोसने लगीं।राजन गिड़गिड़ाने लगा प्लीज़ माफ़ कर दो मुझे नलिनी।मैं आज तक सच्ची मुहब्बत के लिये परिवार वाला होकर भी तरस रहा हूँ।देखो नलिनी आज ईश्वर ने फिर से मिलवा दिया हमें।नलिनी ने कडे़ लहजे में जवाब दिया तुम किसके लिये तरस रहे हो? उसी नलिनी के लिये,जिसे तुमने खिलौने की तरह खेला,तोडा़ और फेंक कर चले गये?
राजन गिड़गिडा़ता रहा,मुझे माफ़ कर दो प्लीज नलिनी,देखो तुम्हारी बद-दुआ ही लगी है कि आज भी मैं दुखी हूँ। दौलत है,शोहरत है पर शान्ति नहीं।
नलिनी ने पैर पटकते हुए झुंझलाकर कहा,बकबास बंद करो,अब इन घटिया बातों में मैं अपना वक़्त बर्बाद नहीं करती और ना इनके लिए मेरे पास वक़्त है,चले जाओ दफा़ हो जाओ।
अब मुझे तुम्हारी कोई ज़रुरत नहीं है।मेरे पास प्यार वालों का हुजूम है,बेशुमार लोग हैं और दौलत भी है।
यह जवाब सुन कर हैरानी जाहिर करते हुए राजन ने तपाक से पूछा कैसे? तुम इतनी खु़श मेरे बगै़र कैसे रह सकती हो? क्या काम करती हो तुम? जिससे तुम्हें इतना सुकून मिलता है?
नलिनी ने उसकी आश्चर्य से फटी आँखों की तरफ देखते हुए कहा चलो बता देती हूँ तुम्हें। सुनो मैं प्यार बेचती हूँ,चंद घंटों के सुकून की बोली लगाती हूँ और इसके बदले मुँहमांगी पैसा लेती हूँ।मैं सौदागर हूँ प्यार और सुकून की, तुम जैसे रईस इसे ख़रीदते हैं उँचे दाम पर समझे।
राजन के उपर मानो पूरा पहाड़ ढह गया हो।उसकी आँखों पे अन्धेरा सा छा गया हो।राजन पथराई आँखों से नलिनी को तकता वहीं धम्म से ज़मीन पर बैठ गया।
नलिनी के सामने उसी वक़्त एक कार आकर रुकी, वो राजन को बीच से धकेलते हुए कार में जाकर बैठ गई गयी।वो निकल चुकी थी फिर किसी के लिये प्यार और सुकून की डिलीवरी देने !
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